महाराष्ट्रः दुधारू गाय बना सहकारिता क्षेत्र, जानें कौन है इसका अग्रदूत
Cooperative Sector in Maharashtra. भाजपानीत सरकार में मंत्री बने राधाकृष्ण विखे पाटिल के बाबा विट्ठलराव विखे पाटिल को महाराष्ट्र में सहकारिता का अग्रदूत माना जाता है।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र के 70 से ज्यादा नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर सहकारी बैंक घोटाले में उनकी जांच का आदेश देकर एक तरह से महाराष्ट्र की सियासत चूलें हिला दी हैं, क्योंकि यह जांच आगे बढ़ी तो न जाने कितने 'चिदंबरम' फंसते नजर आएंगे और न जाने कितनों की राजनीति खत्म हो जाएगी।
महाराष्ट्र राज्य सहकारिता का अनुपम उदाहरण रहा है। हाल ही में कांग्रेस से नेता विरोधीदल का पद छोड़कर भाजपानीत सरकार में मंत्री बने राधाकृष्ण विखे पाटिल के बाबा विट्ठलराव विखे पाटिल को महाराष्ट्र में सहकारिता का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने ही अहमदनगर के लोनी में राज्य का पहला सहकारी शक्कर कारखाना शुरू किया। उनकी इसी उपलब्धि के कारण उन्हें भारत सरकार ने 1961 में चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' से सम्मानित किया था।
उनकी देखादेखी और सहयोग से महाराष्ट्र के अन्य क्षेत्रों में भी सहकारी शक्कर कारखानों की शुरुआत होने लगी और किसानों का भला होने लगा। चूंकि उन दिनों महाराष्ट्र में कांग्रेस का ही बोलबाला था, इसलिए कांग्रेस के ज्यादातर दिग्गज नेताओं ने अपने-अपने क्षेत्रों में सहकारी शक्कर कारखाने लगाने शुरू किए। चूंकि ये नेता ज्यादातर पश्चिम महाराष्ट्र के थे, इसलिए पूरा पश्चिम महाराष्ट्र 'शुगर बेल्ट' के नाम से जाना जाने लगा। गन्ने की खेती और शक्कर कारखानों के कारण समृद्धि ऐसी आई कि कोल्हापुर-सांगली जैसे नगर प्रति व्यक्ति आय के मामले में देश में शिखर पर पहुंच गए। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी भले रहा हो, लेकिन मर्सिडीज कारें मुंबई से ज्यादा कोल्हापुर में हुआ करती थीं।
राज्य के सहकारी शक्कर कारखानों का सालाना कारोबार 5,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा है। देश की 40 फीसद चीनी की जरूरतें महाराष्ट्र से पूरी होती हैं। इसका लाभ किसानों को भी होता है। सहकारी चीनी कारखानों में किसान भी भागीदार होते हैं। कांग्रेस को इस क्षेत्र में जब अपनी मजबूती का अहसास हुआ, तो उसने अपने शासनकाल में सहकारी क्षेत्र को भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया। दूसरी ओर सहकारिता की परंपरा शक्कर कारखानों तक ही सीमित नहीं रही। यह दुग्ध उत्पादन व सूत कताई मिलों के रूप में भी विकसित होने लगी। लेकिन इसका लाभ भी ज्यादातर पश्चिम महाराष्ट्र को ही मिला। विदर्भ और मराठवाड़ा इनसे भी वंचित रहे।
कपास की खेती सबसे ज्यादा विदर्भ और मराठवाड़ा में होती है। लेकिन इन क्षेत्रों में कद्दावर नेतृत्व की कमी ने इन्हें सहकारिता के लाभ से वंचित रखा। वर्ष 1995 में पहली बार राज्य में शिवसेना-भाजपा सरकार बनने के बाद उसमें उपमुख्यमंत्री रहे गोपीनाथ मुंडे अपना खुद का शक्कर कारखाना जरूर लगाने में कामयाब रहे, लेकिन सहकारिता क्षेत्र में उनकी भी दाल नहीं गल पाई। लेकिन शिवसेना-भाजपा सरकार ने सहकारिता कानूनों में कुछ बदलाव कर 'शुगर लॉबी' पर नियंत्रण की कोशिश जरूर की।
दुर्भाग्य से शिवसेना-भाजपा की सरकार साढ़े चार साल ही रही। संयोग से उसके जाने के साथ ही महाराष्ट्र में कांग्रेस भी दोफाड़ हो गई, और लगभग पूरी की पूरी 'शुगर लॉबी' शरद पवार के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से जुड़ गई। ये 'शुगर लॉबी' की ही ताकत है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी शरद पवार के पास चार लोकसभा सीटें हैं, तो कांग्रेस के पास सिर्फ एक। वर्ष 1999 के बाद आई कांग्रेस- राकांपा की सरकार का ही दौर था, जिसमें सहकारी बैंकों को चूना लगाकर खुद को लाभ पहुंचाने का खुलासा नाबार्ड की लेखा परीक्षित रिपोर्ट में हुआ है।
इसी के आधार पर गुरुवार को मुंबई उच्च न्यायालय ने 70 से ज्यादा नेताओं के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने के आदेश मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा को दिए हैं। दरअसल, जब कोई नेता सहकारी चीनी मिल, सूत मिल या डेयरी फॉर्म खोलना चाहता है, तो उसे राज्य सरकार की बैंक गारंटी के साथ-साथ महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक से आसान कर्ज भी उपलब्ध होता है। लेकिन ये कर्ज लौटाने की फिक्र किसी को नहीं होती। इससे जहां एक ओर सहकारी कारखाने डूबते हैं, वहीं बैंकों का पैसा भी डूबता है और राज्य सरकार को भी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे ही हजारों करोड़ का नुकसान इस मामले में भी हुआ है, जिसकी ओर नाबार्ड ने इशारा मात्र किया है।
सहकारिता क्षेत्र की इस दुधारू गाय को दुहते रहने के लिए नेताओं का सत्ता के साथ बने रहना भी जरूरी होता है। इसकी एक झलक पूर्व की शिवसेना- भाजपा सरकार में भी देखी गई थी, और अब देवेंद्र फड़नवीस की सरकार में भी दिखाई देने लगी है। वर्ष 1995 की शिवसेना-भाजपा सरकार में भी 'शुगर बेल्ट' के नेताओं ने गठबंधन सरकार के साथ तैरने का मन बना लिया था। उस समय उपमुख्यमंत्री गोपीनाथ मुंडे द्वारा निकाली गई 'परिवर्तन यात्रा' ज्यादातर उन्हीं क्षेत्रों से निकली थी, जिसे शुगर बेल्ट के नाम से जाना जाता था। तब शुगर बेल्ट में उस यात्रा का न सिर्फ जबर्दस्त स्वागत हुआ था, बल्कि 'शुगर किंग' के नाम से जाने जानेवाले कई नेता उस दौरान भाजपा या शिवसेना के साथ जुड़ गए थे।
राधाकृष्ण विखे पाटिल व उनके पिता बालासाहब विखे पाटिल तथा विजयसिंह मोहिते पाटिल के छोटे भाई प्रतापसिंह मोहिते पाटिल ऐसे ही नेताओं में थे। करीब 24 साल बाद भी स्थिति बदली नहीं है। एक तरफ मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की 'महाजनादेश यात्रा' निकल रही है, तो उसके साथ-साथ शुगर बेल्ट के कई दिग्गजों का भाजपा की ओर आगमन भी होता जा रहा है। मजे की बात यह कि इस बार भी राह विखे पाटिल और मोहिते पाटिल परिवार ही दिखा रहा है, जो सहकारी शक्कर कारखानों के क्षेत्र में अगुआ रहा है।