Maharashtra: सीबीआइ को ठेंगा दिखाने वाली उद्धव सरकार अब उसी के फंदे में
Maharashtra महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ही अब सीबीआइ के फंदे में आती दिखाई दे रही है। यदि मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के आरोप तथ्यपूर्ण निकले तो न सिर्फ पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख बल्कि पूरी उद्धव सरकार संकट में पड़ सकती है।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। Maharashtra: सीबीआइ के लिए महाराष्ट्र में बिना अनुमति आने पर नो इंट्री का बोर्ड लगाने वाली महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ही अब सीबीआइ के फंदे में आती दिखाई दे रही है। यदि मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के आरोप तथ्यपूर्ण निकले, तो न सिर्फ पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख, बल्कि पूरी उद्धव सरकार संकट में पड़ सकती है। राज्य में महाविकास अघाड़ी सरकार बनने के कुछ ही महीनों बाद मुंबई के पड़ोसी जनपद पालघर में दो साधुओं की निर्मम हत्या कर दी गई थी। चूंकि इस मामले में सत्तारूढ़ पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के ही कुछ स्थानीय नेता आरोपित थे, और गृहमंत्री अनिल देशमुख भी राकांपा के ही नेता हैं, इसलिए विपक्ष चाहता था कि इस मामले जांच सीबीआइ से करवाई जाए। लेकिन देशमुख तैयार नहीं हुए। जांच सीआइडी को दे दी गई।
इसके कुछ दिन बाद ही मुंबई में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। मुंबई पुलिस ने इस मामले की एक्सीडेंटल डेथ रिपोर्ट (एटीआर) दर्ज कर जांच शुरू की। जांच को गलत दिशा में जाते देख सुशांत के परिवार ने करीब 40 दिन बाद इस मामले की रिपोर्ट पटना में भी दर्ज करवा दी। पटना पुलिस की टीम को मुंबई में सहयोग न मिलते देख परिवार ने सीबीआइ जांच की मांग की तो बिहार सरकार यह जांच सीबीआइ को सौंपने पर राजी हो गई। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मामले पर सुनवाई करते हुए जांच सीबीआइ को सौंप दी। सीबीआइ ने अभी तक उस मामले में कोई अंतिम रिपोर्ट पेश नहीं की है। लेकिन गृहमंत्री रहते हुए अनिल देशमुख कई बार सुशांत मामले में सीबीआइ की नाकामी पर टिप्पणी कर चुके हैं।
अक्टूर, 2020 में महाराष्ट्र सरकार ने फैसला किया कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना सीबीआइ महाराष्ट्र के किसी मामले की जांच नहीं कर सकेगी। दरअसल, उद्धव ठाकरे यह आदेश निकालकर उन राज्यों के क्लब में शामिल होना चाहते थे, जिन्होंने पहले से ही अपने यहां सीबीआइ का प्रवेश प्रतिबंधित कर रखा था। सीबीआइ को प्रतिबंधित करने का एक और प्रमुख कारण उन्हीं दिनों सामने आए टीआरपी घोटाले की जांच सीबीआई के हाथ में जाने से बचाना भी था। क्योंकि इस मामले टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी विभिन्न कारणों से राज्य सरकार के निशाने पर थे। संभवतः वह इस मामले में मुंबई पुलिस के जरिए अर्नब को सबक सिखाना चाहती थी। टीआरपी घोटाले की जांच भी उस समय सीआइयू के प्रभारी एपीआइ सचिन वाझे को ही सौंपी गई थी, जो आज अंटीलिया प्रकरण व मनसुख हत्या प्रकरण में एनआईए की गिरफ्त में हैं।
दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश सरकार कई राज्यों से जुड़े इस मामले की जांच सीबीआइ से करवाने की सिफारिश कर चुकी थी। उद्धव सरकार को डर था कि कहीं उत्तर प्रदेश की सिफारिश मानते हुए सीबीआइ अपने आप ही महाराष्ट्र का टीआरपी घोटाला भी अपने हाथ में न ले ले। इसलिए उसने किसी भी मामले में बिना राज्य सरकार की अनुमति जांच शुरू करने पर प्रतिबंध लगा दिया। शिवसेना नेता संजय राउत अक्सर यह आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए राज्यों के नेताओं को फंसाने का काम करती है। उनके अनुसार, इनमें प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआइ, एनआइए जैसी एजेंसियां शामिल हैं।
ताजा अंटीलिया प्रकरण में भी जब जांच एनआइए को सौंपी गई, तो राज्य सरकार को केंद्र का यह निर्णय कतई पसंद नहीं आया। क्योंकि वह इस मामले की जांच भी अपने चहेते पुलिस अधिकारी सचिन वाझे को सौंप चुकी थी। यहां तक मनसुख हत्या प्रकरण में भी एनआइए को जांच सौंपे जाने के बावजूद एटीएस वह मामला एनआइए को सौंपने को तैयार नहीं थी। ठाणे सत्र न्यायालय की फटकार के बाद ही एटीएस ने इस मामले के कागजात एनआइए को सौंपे। संयोग देखिए कि अब मुंबई उच्च न्यायालय ने ही एक ऐसे मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी है, जिसमें पूरी उद्धव सरकार कटघरे में खड़ी दिखाई दे रही है। उच्च न्यायालय का यह निर्णय महाविकास अघाड़ी सरकार की मुसीबत बढ़ाने वाला साबित हो सकता है।