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तीन माओवादी कार्यकर्ताओं की जमानत अर्जी रद्द, फरेरा और गोंसाल्विस गिरफ्तार

पुणे की एक विशेष अदालत ने माओवादी कार्यकर्ताओं सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा एवं वर्नन गोंसाल्विस की जमानत अर्जी ठुकरा दी है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 27 Oct 2018 10:48 AM (IST)Updated: Sat, 27 Oct 2018 10:48 AM (IST)
तीन माओवादी कार्यकर्ताओं की जमानत अर्जी रद्द, फरेरा और गोंसाल्विस गिरफ्तार
तीन माओवादी कार्यकर्ताओं की जमानत अर्जी रद्द, फरेरा और गोंसाल्विस गिरफ्तार

मुंबई, राज्य ब्यूरो। पुणे की एक विशेष अदालत ने माओवादी कार्यकर्ताओं सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा एवं वर्नन गोंसाल्विस की जमानत अर्जी ठुकरा दी है। इसके तुरंत बाद अरुण फरेरा एवं वर्नन गोंसाल्विस को गिरफ्तार कर लिया गया है। सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी शनिवार को हो सकती है। 

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पुणे के एलगार परिषद मामले में पुणे पुलिस ने 28 अगस्त को सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वर्नन गोंसाल्विस के साथ हैदराबाद से वरवर राव एवं दिल्ली से गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया था। बाद में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर इन सभी को उनके घरों में ही नजरबंद कर दिया गया था।

सुधा, अरुण और वर्नन ने पुणे की जिला एवं सत्र अदालत में विशेष जज के.डी.वदने के सामने जमानत के लिए याचिका दायर की थी। क्योंकि इन तीनों की नजरबंदी 26 अक्तूबर को समाप्त हो रही थी। कोर्ट द्वारा जमानत याचिका खारिज होने के बाद बचाव पक्ष के वकीलों ने इस फैसले को उच्च अदालत में चुनौती देने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा। लेकिन जज द्वारा यह समय देने से इंकार किए जाने के बाद तीन में से दो माओवादियों को गिरफ्तार कर लिया गया। जबकि सुधा भारद्वाज को शनिवार को फरीदाबाद स्थित उसके घर से गिरफ्तार किए जाने की संभावना है।

उक्त तीनों माओवादी कार्यकर्ताओं की जमानत अर्जी खारिज करते हुए विशेष जज के.डी.वदने ने कहा कि यह निर्विवाद है कि सुधा भारद्वाज नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। फरेरा एक वकील और कार्टूनिस्ट हैं, और वर्नन गोंसाल्विस एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। ये तीनों मानवाधिकारों के लिए काम भी करते हैं। लेकिन इस प्रकार के समाज सेवा एवं मानवाधिकारों के लिए संघर्ष की आड़ में ये तीनों एक प्रतिबंधित संगठन (सीपीआई-माओवादी) के लिए भी काम करते रहे हैं।

उनकी ये गतिविधियां भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा बन रही हैं। ऐसी स्थिति में जांच अधिकारी द्वारा इकट्ठा किए गए सबूतों के आधार प्रथमदृष्ट्या यह साबित होता है कि इन सभी के संबंध प्रतिबंधित संगठन से हैं। जज के अनुसार इनकी गतिविधियां, न सिर्फ कानून-व्यवस्था को बिगाड़ सकती हैं, बल्कि ऐसी राष्ट्रविरोधी गतिविधियां देश की एकता-संप्रभुता एवं इसकी लोकतांत्रिक नीतियों के लिए भी खतरा बन सकती हैं।

बचाव पक्ष के वकीलों द्वारा दलीलें दी गईं कि उक्त तीनों मानवाधिकारों के लिए काम करते हैं, और उनकी गिरफ्तारी करते समय पुलिस ने निर्धारित कानूनों का भी पालन नहीं किया। लेकिन जज ने उनकी दलीलें ठुकरा दीं। जज ने वकीलों की इस दलील को भी ठुकरा दिया कि भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार दक्षिणपंथी कार्यकर्ता मिलिंद एकबोटे को जमानत मिल चुकी है, जिसके आधार पर सुधा, अरुण फरेरा और वर्नन गोंसाल्विस को भी जमानत मिलनी चाहिए। जज ने साफ कर दिया कि दोनों मामले बिल्कुल अलग हैं।

जांच अधिकारी सहायक पुलिस आयुक्त शिवाजी पवार के अनुसार आरोपितों की जमानत अर्जी खारिज हो जाने के बाद अरुण फरेरा एवं वर्नन गोंसाल्विस को गिरफ्तार कर लिया गया है। सुधा भारद्वाज को कल उनके फरीदाबाद स्थित घर से गिरफ्तार किया जा सकता है। 28 अगस्त को इन तीनों के साथ हैदराबाद से वरवर राव एवं दिल्ली से गौतम नवलखा को भी गिरफ्तार किया गया था।

वरवर राव की नजरबंदी गुरुवार को हैदराबाद उच्चन्यायालय ने तीन सप्ताह के लिए बढ़ा दी है। जबकि गौतम नवलखा के विरुद्ध दायर मामले को खत्म करने की अर्जी पर फैसला एक नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय में होना है। इसलिए इन दोनों की गिरफ्तारी के लिए पुणे पुलिस को नई रणनीति के साथ पहल करनी होगी। लेकिन यह तय है कि पुणे की अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों ने शहरी नक्सली के रूप में बदनाम इन माओवादियों की मुसीबत बढ़ा दी है।  


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