आज के प्रचलित चिकित्सा शास्त्र का विकल्प बनने की क्षमता है आयुर्वेद में
आयुर्वेद की क्षमताओं पर सवाल उठाए जाने पर वैद्य डॉ. बेंडाले कहते हैं प्रधानमंत्री ने कहा था कि आयुर्वेद के ज्ञान को दुनिया की भाषा में दुनिया के सामने लाने की जरूरत है। यदि हम ऐसा कर सकें तो दुनिया का कोई डॉक्टर हमारी पद्धति से इंकार नहीं कर सकती।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। कैंसर के इलाज पर काम करने वाली कनाडा की एक अंतरराष्ट्रीय संस्था मल्टीनेशनल एसोसिएशन आफ सपोर्टवि केयर इन कैंसर (एमएएससीसी) ने बुजुर्ग कैंसर रोगियों के इलाज के लिए बनाए गए अपने स्टडी ग्रुप का उपाध्यक्ष भारत के वैद्य योगेश बेंडाले को नियुक्त किया है। वैद्य बेंडाले को आयुर्वेद पद्धति से जेरियाटिक यानी जराशास्त्र (बुजुर्गो के इलाज) में विशेषज्ञता हासिल है। वह कहते हैं कि आज अरबों रुपए खर्च करके किए गए शोध के बावजूद तमाम अंग्रेजी दवाओं को अक्सर बाजार से वापस लेना पड़ जाता है। इससे पता चलता है कि दुनिया को एक नए चिकित्साशास्त्र की जरूरत है, और यह खालीपन भरने की क्षमता आयुर्वेद में है।
एमएएससीसी के स्टडी ग्रुप में उपाध्यक्ष के रूप में वैद्य बेंडाले की नियुक्ति अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल्स में प्रकाशित उनके शोधपत्रों के आधार पर हुई है। उन्हें कैंसर सहित कई गंभीर बीमारियों के आयुर्वेद पद्धति से उपचार के लिए 40 से अधिक अंतरराष्ट्रीय पेटेंट्स हासिल हैं। पुणे विश्वविद्यालय से आयुर्वेदिक फार्मेकोलाजी में गोल्ड मेडल प्राप्त बेंडाले करीब चार दशक से पुणो में अपने रसायु समूह के जरिए आयुर्वेद पद्धति से विभिन्न रोगों, विशेषकर कैंसर का इलाज करते आ रहे हैं। 1997-98 से जर्मनी में भी उनका 175 बिस्तरों का एक आयुर्वेदिक अस्पताल चल रहा है। वह कहते हैं कि पश्चिम के उन्नत देश आयुर्वेद पद्धति से इलाज के लिए दीवाने रहते हैं। वहां इतनी मांग है कि जाने पर लोगों के लिए समय कम पड़ जाता है। इससे आयुर्वेद की क्षमता सिद्ध होती है, जो सिर्फ भारत के पास है। इसे आगे ले जाने के लिए हमें एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए।
हाल ही में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा आयुर्वेद की क्षमताओं पर सवाल उठाए जाने पर बेंडाले कहते हैं कि सवाल तो कोई भी कर सकता है। लेकिन सवाल करने से पहले आयुर्वेद को समझ तो लीजिए। वह कहते हैं कि आधुनिक शास्त्र (एलोपैथी) की दवाएं 15-20 वर्ष के शोध के बाद तैयार होती हैं। फिर उनका इस्तेमाल पूरी दुनिया के लोग करते हैं। हमारे देश के डाक्टर भी उन्हीं दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने अपने देशवासियों के लिए अपना क्या बनाया है आजतक जिन लोगों ने अपने देश के लिए खुद कुछ नहीं किया है, वो हमारी संस्कृति से जुड़े इतने बड़े शास्त्र पर किस हक से उंगली उठा सकते हैं? जबकि इसकी मांग पूरी दुनिया में हो रही है।
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र एवं आयुर्वेद की तुलना करते हुए बेंडाले कहते हैं कि आज तमाम शोध के बाद तैयार अंग्रेजी दवाएं भी अक्सर वापस लेनी पड़ जाती हैं। क्योंकि इससे पता चलता है कि दुनिया को नए चिकित्सा शास्त्र की जरूरत है। यह खालीपन भरने की क्षमता हमारे आयुर्वेद में ही है। बेंडाले मानते हैं कि अब तक एक कमी जरूर रही कि हमने अपनी इतनी प्राचीन चिकित्सा पद्धति का डाटा नहीं रखा। हमारा शास्त्र काफी विकसित है।