कंगना रनोट के ऑफिस में तोड़फोड़ के मामले में संजय राउत भी पक्षकार होंगे
कंगना रनोट का बांद्रा स्थित कार्यालय तोड़े जाने के मामले में अब शिवसेना नेता संजय राउत व मुंबई महानगरपालिका के उस अधिकारी को भी पक्षकार बनना पड़ेगा जिसने कंगना का कार्यालय तोड़ने के आदेश दिया था। इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में अगली सुनवाई बुधवार को होनी है।
मुंबई, राज्य ब्यूरो। बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनोट का बांद्रा स्थित कार्यालय तोड़े जाने के मामले में अब शिवसेना नेता संजय राउत व मुंबई महानगरपालिका के उस अधिकारी को भी पक्षकार बनना पड़ेगा, जिसने कंगना का कार्यालय तोड़ने के आदेश दिया था। इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में अगली सुनवाई बुधवार को होनी है। संजय राउत के साथ चली लंबी बहस के बाद ही बीएमसी ने अचानक कंगना का कार्यालय अवैध निर्माण बताकर तोड़ दिया था। अभिनेत्री कंगना रनोट का बांद्रा स्थित कार्यालय नौ सितंबर को तोड़ा गया था। इस तोड़फोड़ के दौरान ही कंगना के वकील ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए तोड़फोड़ पर स्थगन आदेश जारी करने की अपील की थी। कोर्ट ने यह आदेश जारी करते हुए इसे राजनीतिक दबाव में की गई कार्रवाई करार दिया था, जबकि बीएमसी का कहना था कि कंगना ने कार्यालय में अवैध निर्माण किया था।
इस तोड़फोड़ के अगले ही दिन शिवसेना के मुखपत्र सामना ने लिखा था ‘उखाड़ लिया’। इससे पहले संजय राउत के साथ करीब एक सप्ताह चली बहस में कंगना ने चुनौती दी थी मैं नौ सितंबर को मुंबई आ रही हूं। जो उखाड़ना हो, उखाड़ लो। माना जा रहा है कि उच्च न्यायालय ने बीएमसी की कार्रवाई के बाद आई सामना की इस टिप्पणी को जोड़ते हुए ही संजय राऊत एवं बीएमसी के उस अधिकारी को पक्षकार बनाने का निर्णय किया है। कंगना ने इस मामले में बीएमसी से दो करोड़ रुपयों का हर्जाना भी दिलवाने की मांग कर रखी है। जबकि बीएमसी कंगना से ही अवैध निर्माण के एवज में जुर्माना वसूलना चाहती है।
बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) ने हाल ही में उच्च न्यायालय में एक और हलफनामा दायर किया था, जिसमें कंगना के ऑफिस में तोड़फोड़ के खिलाफ याचिका दायर करने और दो करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की गई थी। कंगना के ऑफिस को कुछ दिन पहले बीएमसी ने अवैध बताते हुए तोड़ दिया था। सोमवार को हुई सुनवाई में कंगना ने इस बात से इनकार किया था कि उन्होंने इस इस इमारत में कुछ ढांचागत बदलाव किए थे।इस कार्यालय के हिस्सों को बीएमसी ने अवैध बताते हुए नौ सितंबर को तोड़ दिया था।