Tablighi Jamaat: मुंबई हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने माना, विदेशी जमातियों को बनाया गया बलि का बकरा
इस साल मार्च में दिल्ली में हुए तबलीगी जमात मर्कज में आए विदेशी जमातियों को कोविड-19 महामारी फैलाने का आरोप लगाकर उन्हें ‘बलि का बकरा’ बनाया गया।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। मुंबई उच्चन्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ ने माना है कि इस साल मार्च में दिल्ली में हुए तबलीगी जमात मर्कज में आए विदेशी जमातियों को कोविड-19 महामारी फैलाने का आरोप लगाकर उन्हें ‘बलि का बकरा’ बनाया गया। उच्चन्यायालय ने ये विचार कुछ जमातियों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए व्यक्त किए, और उनके विरुद्ध दर्ज एफआईआर खारिज कर दी।
मुंबई उच्चन्यायालय की औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्तिद्वय टी.वी.नलावड़े एवं एम.जी.शेवलीकर ने इस मामले को बढ़ाचढ़ाकर पेश करने के लिए प्रचार माध्यमों को भी लताड़ लगाई है। उन्होंने अपने 56 पृष्ठों के फैसले में कहा है कि प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस मामले को ऐसे पेश किया, जैसे दिल्ली मरकज में आनेवाले विदेशी ही देश में कोविड-19 संक्रमण फैलाने के लिए जिम्मेदार हों। इसी प्रकार एक राजनीतिक सरकार ने एक महामारी के दौरान इन विदेशियों को बलि का बकरा बनाने की कोशिश की। उच्चन्यायालय के अनुसार पहले बताई गई परिस्थितियां एवं कोरोना मरीजों के आज के आंकड़े देखते हुए कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं के ऊपर उस समय यह कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी। उच्चन्यायालय के अनुसार उस समय की गई इस कार्रवाई पर पुनर्विचार करते हुए कुछ सकारात्मक कदम उठाकर इस गलती में सुधार करने की जरूरत है।
न्यायमूर्ति नलावड़े एवं शेवलीकर ने यह फैसला 35 लोगों द्वारा दायर तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुनाया है। याचिकाकर्ताओं मे छह भारतीय एवं इंडोनेशिया, घाना, ईरान, बेनिन, तंजानिया, ब्रुनेई एवं आइवरी कोस्ट के 29 विदेशी नागरिक शामिल हैं। इन याचिकाकर्ताओं पर महाराष्ट्र पुलिस द्वारा पर्यटक वीजा पर दिल्ली में मरकज में भाग लेने के कारण आईपीसी, डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, महामारी अधिनियम एवं महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गए थे। ये एफआईआर खारिज करवाने के लिए लिए इन जमातियों द्वारा मुंबई उच्चन्यायालय की औरंगाबाद पीठ में याचिका दायर की गई थी। उच्चन्यायालय ने माना है कि इस कथित धार्मिक गतिविधि (तबलीगी जमात) को लेकर वितंडा खड़ा करना गैरजरूरी था। न्यायालय के अनुसार यह गतिविधि 50 साल से अधिक समय से चलती आ रही है, और साल भर चलती है। न्यायमूर्ति के अनुसार भारतीय संविधान की धारा 25 एवं धारा 21 के अनुसार जब विदेशियों को वीजा दिया जाता है, तो उन्हें मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ने की मनाही नहीं होती।