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उम्रकैद में बदली मृत्युदंड की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

महाराष्ट्र (Maharashtra) में साल 2013 में 2 वर्षीय बच्‍ची के साथ दुष्‍कर्म कर उसकी हत्‍या करने वाले दो‍षी की मृत्युदंड (Death Penalty) की सजा को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आजीवन कारावास (life imprisonment) में बदल दिया है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 02 Nov 2020 02:03 PM (IST)Updated: Mon, 02 Nov 2020 02:23 PM (IST)
उम्रकैद में बदली मृत्युदंड की सजा, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
दुष्‍कर्म के बाद हत्‍या के दो‍षी की मृत्युदंड की सजा को उम्रकैद में बदला

मुंबई, एएनआइ। दो साल की बच्‍ची से दुष्‍कर्म करने के बाद उसकी हत्‍या करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दोषी की मृत्युदंड (Death Penalty) की सजा को आजीवन कारावास (life imprisonment) में बदल दिया है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र (Maharashtra) में साल 2013 में दोषी ने दो साल की मासूम बच्‍ची से दुष्‍कर्म करने के बाद उसकी हत्‍या कर दी थी। 

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न्‍यायधीश यूयू ललित (UU Lalit), इंदु मल्होत्रा (Indu Malhotra) और कृष्ण मुरारी (Krishna Murari) की तीन जजों वाली बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) द्वारा दुष्‍कर्म और हत्‍या के दोषी शत्रुघ्न बबन मेश्राम (Shatrughna Baban Meshram) को दी गई सजा को सही ठहराया। बता दें कि जजों की बेंच ने हत्या के जुर्म में मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया और दुष्‍कर्म जैसे अपराध के लिए 25 साल की कठोर सजा सुनाई।.घटना के दिन पीड़ित बच्‍ची अपने दादा के साथ थी। दोषी पिता से मिलवाने का बहाना बनाकर बचची को दादा से दूर ले गया और उसका दुष्‍कर्म कर हत्‍या कर दी। दोषी मेश्राम पीड़िता के दादा के चचेरे भाई का बेटा है। 

 जिस समय घटना हुई तब पीड़िता का पिता धार्मिक समारोह में गया हुआ था और बच्‍ची भी लापता थी। वहां से लौटने पर दादा ने सारी बात बतायी और बच्‍ची की खोजबीन शुरु की गई। बाद में बच्‍ची का शव एक निर्माणाधीन आंगनवाड़ी की इमारत में जमीन पर पड़ा हुआ मिला। पीड़ित बच्‍ची के शरीर पर गंभीर चोटें थीं। उसके निजी अंगों पर भी सूजन और चोट के निशान थे। उसे तुरंत इलाज के लिए डॉक्‍टर के पास ले जाया गया। जहां डॉक्‍टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।    

शत्रुघ्न बबन मेश्राम को दोषी ठहराते हुए यवतमाल के सत्र न्यायालय ने मौत की सजा सुनाई।  12 अक्टूबर 2015 को भी बॉम्बे हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने दोषी को दी हुइ सजा को बरकरार रखा, जिसके बाद दोषी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।


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