Maharashtra: खोई जमीन पाने के लिए पलटी सरपंचों के सीधे चुनाव की पद्धति
महाराष्ट्र की शिवसेनानीत महाविकास आघाड़ी सरकार ने सरपंचों के सीधे चुनाव की पद्धति को समाप्त कर दिया है अब पंचायत सदस्य ही सरपंच का चुनाव करेंगे।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। शिवसेनानीत महाविकास आघाड़ी सरकार ने सरपंचों के सीधे चुनाव की पद्धति समाप्त कर दी है। अब जनता द्वारा चुने गए पंचायत सदस्य ही सरपंच का चुनाव करेंगे। सीधे चुनाव कराने का निर्णय पूर्व की फड़नवीस सरकार लाई थी। महाविकास आघाड़ी सरकार का यह निर्णय कांग्रेस-राकांपा को ग्रामीण स्तर पर पांव जमाने में मददगार साबित होगा।
मंगलवार को महाराष्ट्र ग्राम पंचायत कानून में बदलाव का प्रस्ताव महाविकास आघाड़ी सरकार ने पेश किया, जो उसी दिन बहुमत से पास भी हो गया। इसके अनुसार, अब ग्रामवासी पहले पंचायत सदस्यों का चुनाव करेंगे। फिर चुने गए पंचायत सदस्य सरपंच का चुनाव करेंगे। ग्राम विकास मंत्री हसन मुश्रिफ ने इस बदलाव का कारण बताते हुए कहा है कि भारत ने लोकतांत्रिक पद्धति अपनाई है। जिसमें इसी प्रकार का चुनाव होता है। जबकि पहले अपनाई गई पद्धति राष्ट्रपति प्रणाली की तरह थी, जो अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव में इस्तेमाल होती है। मुश्रिफ का कहना है कि पिछली सरकार द्वारा अपनाई गई सरपंचों के सीधे चुनाव की प्रणाली में यदि सरपंच एक पार्टी का एवं शेष सदस्य दूसरी पार्टी के हुए तो निर्णय करने में दिक्कत आती थी और विकास प्रभावित होता था। इस आशय की तमाम शिकायतें आ रही थीं, इसलिए इस प्रणाली में बदलाव का निर्णय करना पड़ा।
मुश्रिफ यह तर्क सिक्के का एक पहलू दर्शाता है। असल बात यह है कि कांग्रेस-राकांपा सरपंच चुनाव प्रणाली में बदलाव कर अपनी खोई जमीन फिर से प्राप्त करना चाहती हैं। महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस-राकांपा का मजबूत आधार रहा है। सहकारी चीनी मिलों, सूत मिलों एवं दुग्ध संघों पर कांग्रेस-राकांपा नेताओं का वर्चस्व होने के कारण उनकी पहुंच घर-घर तक रहती आई है। किंतु 2014 में आम जनमानस मोदीमय हुआ तो इसका लाभ लेने के लिए प्रदेश में नई-नई आई फड़नवीस सरकार ने सरपंचों के सीधे चुनाव की प्रणाली को मान्यता दे दी।
जिसके कारण अगले कुछ वर्षों में महाराष्ट्र के पंचायत चुनावों में भी भाजपा का डंका बजने लगा। इसका सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस-राकांपा को हुआ। अब कांग्रेस-राकांपा उसी निर्णय को पलट कर अपना खोया जनाधार फिर से पाना चाहती हैं। जबकि इसका बहुत कम लाभ शिवसेना को मिलेगा। क्योंकि ग्रामीण महाराष्ट्र में उसका जनाधार पहले से कमजोर है।
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