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अब अमेरिका या इजराइल नहीं, हमारी नई पीढ़ी के बनाए स्वदेशी ड्रोन करेंगे सीमाओं की निगहबानी

अक्सर खबरें आती हैं कि पाकिस्तान चीनी ड्रोन की मदद से हथियार या दूसर सामान सीमा पार भेजता रहता है। क्या ये ड्रोन इस कार्य में भी उपयोगी हो सकते हैं? इसका जवाब देते हुए अंकित कहते हैं कि उनकी कंपनी ने कैरियर ड्रोन भी विकसित किए हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 16 Jan 2021 11:25 AM (IST)Updated: Sat, 16 Jan 2021 01:35 PM (IST)
अब अमेरिका या इजराइल नहीं, हमारी नई पीढ़ी के बनाए स्वदेशी ड्रोन करेंगे सीमाओं की निगहबानी
हम एंटी सेटेलाइट मिसाइल बना सकते हैं तो स्वदेशी ड्रोन क्यों नहीं?

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। सेना दिवस के मौके पर दो खबरें एक साथ सामने आई और दोनों का विषय भी एक ही है..ड्रोन। एक ओर जहां भारतीय सेना ने आइआइटी के युवाओं द्वारा तैयार ड्रोन से सीमा सुरक्षा करने का फैसला करते हुए बड़ा करार किया। वहीं शुक्रवार को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में स्वार्म ड्रोन (झुंड ड्रोन) का प्रदर्शन कर दुनिया को यह बता दिया कि भारत युद्ध मैदान में भी नई तकनीक से लैस है। यह ड्रोन दुश्मनों की सीमा में 50 किमी तक घुसकर न सिर्फ जानकारी इकट्टा कर सकता है बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) की मदद से लक्ष्य को भी भेद सकता है। जैसे, भारतीय सेना ने बालाकोट में किया था।

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अब अमेरिका, रूस या इजराइल नहीं, बल्कि हमारी नई पीढ़ी के बनाए स्वदेशी ड्रोन ही हमारी सीमाओं की निगरानी करेंगे। आइआइटी मुंबई के तीन युवाओं की कंपनी आइडियाफोर्ज टेक्नोलॉजी के साथ हाल ही में भारतीय सेना ने 130 करोड़ रुपये का करार किया है। सेना इनके बनाए ड्रोन खरीदेगी। इस कंपनी के 37 वर्षीय सीईओ अंकित मेहता बताते हैं कि वर्ष 2005-06 में आइआइटी मुंबई से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने से पहले ही उन्होंने ड्रोन बनाना शुरू कर दिया था। क्योंकि जुनून था कुछ नया करने का। इसलिए पढ़ाई के दौरान ही नई-नई चीजें बनाते रहते थे।

आइआइटी मुंबई ऐसे नए प्रयोगों के लिए आर्थिक मदद भी मुहैया कराता था, जिससे कुछ नया करने में मदद मिलती थी। फिर वर्ष 2007 में कंपनी शुरू की। उनके साथ आए आइआइटी मुंबई के ही उनके दो कनिष्ठ साथी राहुल सिंह एवं आशीष भट्ट। स्विट्जरलैंड से एमबीए की डिग्री लेकर लौटे अंकित के बचपन के साथी विपुल जोशी भी इस टीम में उनके साथ आ गए। वर्ष 2008 में जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ तो अंकित मेहता की टीम ने सोचा कि हमें लोगों की सुरक्षा के लिए कुछ करना चाहिए और सुरक्षाबलों के लिए ड्रोन बनाने की शुरूआत की। अंकित बताते हैं कि वर्ष 2009 में आई फिल्म थ्री इडियट्स में दिखाया गया ड्रोन भी उन्हीं की टीम का बनाया हुआ था। इन्हें आइआइटी मुंबई का पिछले वर्ष का यंग एल्यूम्नी अचीवर्स अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है।

अंकित मेहता (बीच में) के साथ राहुल सिंह, आशीष भट्ट और विपुल जोशी। सौ: अंकित

आइडियाफोर्ज 2010 से अपने उत्पाद बेचने की स्थिति में आ गई थी। तब से अब तक कई राज्यों की पुलिस फोर्स एवं अन्य सुरक्षा बल उनसे ड्रोन खरीद चुके हैं। उनका इस्तेमाल भी सफलतापूर्वक किया जा रहा है। आज ड्रोन बाजार में देश का 80 से 90 फीसद मार्केट शेयर आइडियाफोर्ज का है। उनकी सफलता को देखते हुए कई वेंचर कैपिटल कंपनियां भी उनके साथ जुड़ीं।

हाल ही में जब गलवन घाटी में चीनी घुसपैठ के बाद भारतीय सेना को अपनी सीमाओं पर तकनीकी निगरानी बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई एवं सेना को आपातकालीन खरीदी की अनुमति मिली तो उसने आइडियाफोर्ज के साथ 130 करोड़ रुपये के ड्रोन खरीदी का करार कर लिया। आइडियाफोर्ज के बनाए ये अनमैंड एरियल व्हीकल (यूएवी) फिक्स्ड विंग वीटीओएल (वर्टकिल टेक आफ एंड लैंडिंग) क्राफ्ट के नाम से जाने जाते हैं। यानी ये बिना दौड़े उड़ान भर सकते हैं और नीचे उतर सकते हैं। ये दिन और रात दोनों स्थितियों में काफी ऊंचाई पर रहते हुए सीमा की निगहबानी कर सकते हैं। विशेषकर ये ड्रोन सिर्फ सीमाओं की निगरानी में सहायक होंगे। वह मानते हैं कि यदि नई पीढ़ी के नए आइडियाज को समय पर आर्थिक मदद भी मिले तो भारत को बहुत कुछ नया मिल सकता है।

सेवानिवृत्त, वीर चक्र प्राप्त एयर मार्शल हरीश मसंद ने बताया कि हम एंटी सेटेलाइट मिसाइल बना सकते हैं तो स्वदेशी ड्रोन क्यों नहीं? हमें इस तरह की तकनीक पर और काम करना चाहिए। सुरक्षा मामलों में हम दूसरे देशों पर जितने निर्भर रहेंगे, कमतर ही रहेंगे। क्योंकि जो भी देश हमें हथियार या तकनीक देगा, वो पूरी तरह एडवांस टेक्नोलॉजी नहीं देगा।

सेवानिवृत्त वायु सेना के एयरमार्शल जयंत आप्टे ने बताया कि यह सामरिक हथियार है। ड्रोन या एआइ तकनीक अब हर क्षेत्र की जरूरत बन चुके हैं। जो ड्रोन सेना दिवस पर प्रदर्शित किया गया, वो छोटे युद्ध मैदानों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। इससे दुश्मन की स्थिति और भौगोलिक परिस्थितियों की निगरानी व लक्ष्य तय करने में मदद मिलेगी। यह झुंड में उड़ता है इसलिए दुश्मन के रडार पर एक भ्रम पैदा कर सकता है। इस तकनीक से हर रेजिमेंट के पास अपना ड्रोन होगा और वह अपने इलाके में दुश्मनों पर नजर रख सकेगा। ऐसे में छोटे ऑपरेशन्स स्थानीय आर्मी ही ऑपरेट कर सकेगी।


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