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Indian Navy: ‘विक्रांत’ की तरह ‘विराट’ भी बिका कबाड़ियों के हाथ

Indian Navy आइएनएस विक्रांत की तरह आइएनएस विराट भी एशिया का पहला और एकमात्र मैरीटाइम म्यूजियम बनाने की योजना सफल नहीं हो सकी।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Fri, 18 Sep 2020 09:22 PM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2020 06:32 AM (IST)
Indian Navy: ‘विक्रांत’ की तरह ‘विराट’ भी बिका कबाड़ियों के हाथ
Indian Navy: ‘विक्रांत’ की तरह ‘विराट’ भी बिका कबाड़ियों के हाथ

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। Indian Navy: भारतीय नौसेना का सेवानिवृत्त विमानवाहक पोत ‘विराट’ शनिवार को मुंबई से अपनी अंतिम यात्रा पर रवाना होगा। इसे गुजरात के भावनगर स्थित अलंग ले जाया जा रहा है, जहां दुनिया के सबसे बड़ा शिप ब्रेकिंग यार्ड में इसे तोड़ दिया जाएगा। इससे पहले ‘विक्रांत’ की तरह इसे भी एशिया का पहला और एकमात्र मैरीटाइम म्यूजियम बनाने की योजना सफल नहीं हो सकी। करीब 30 साल भारतीय नौसेना की शान रहे आइएनएस विराट को छह मार्च, 2017 को भारतीय नेवी की सेवा से मुक्त कर दिया गया था। 226 मीटर लंबा यह जहाज भारत से पहले ब्रिटेन की रॉयल नेवी में एचएमएस हर्मिस के रूप में 25 साल अपनी सेवाएं दे चुका था।

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1984 में रॉयल नेवी से सेवानिवृत्त होने के बाद इसे 1984 में ही भारतीय नौसेना ने खरीदा और 1987 में इसे आइएनएस विराट के नाम से भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। भारतीय नौसेना में यह विशालकाय पोत यहां पहले से मौजूद आइएनएस विक्रांत का जोड़ीदार बनकर भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा में तैनात रहा। 1997 में विक्रांत की सेवानिवृत्ति के बाद करीब 20 साल यह अकेले ही भारत की समुद्री सीमाओं का प्रहरी बना रहा। ब्रिटेन की रॉयल नेवी का हिस्सा रहने के दौरान प्रिंस चार्ल्स ने इसी पोत पर नौसेना अधिकारी की अपनी ट्रेनिंग पूरी की थी। फॉकलैंड युद्ध में ब्रिटिश नेवी की तरफ से इस पोत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारतीय नौसेना का हिस्सा रहते पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन पराक्रम व श्रीलंका भेजी गई भारत की शांति सेना में आइएनएस विराट की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

भारतीय नौसेना से सेवानिवृत्त होने के बाद ‘विक्रांत’ की भांति ही इस विशाल जहाज को भी मैरीटाइम म्यूजियम बनाने के प्रयास हुए, लेकिन ये प्रयास सफल नहीं हो सके। नवंबर 2018 में महाराष्ट्र की देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने इस पोत को मैरीटाइम म्यूजियम बनाने के लिए 852 करोड़ रुपये मंजूर भी कर दिए थे। यह म्यूजियम महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र स्थित सिंधुदुर्ग में बनाने का प्रस्ताव था, ताकि गोवा आनेवाले पर्यटक भी इस तक आसानी से पहुंच सकें। यदि यह योजना सफल होती, तो यह एशिया का पहला समुद्र में खड़ा मैरीटाइम म्यूजियम होता। मई 2019 में महाराष्ट्र मैरीटाइम बोर्ड (एमएमबी) ने भी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर इसे पर्यटन के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास किया। उसकी योजना समुद्र में खड़े इस पोत पर शानदार रेस्टोरेंट व हेलीपैड शुरू करने की थी, लेकिन यह योजना भी अंजाम तक नहीं पहुंच सकी।

अंततः विक्रांत की तरह इसे भी मेटल स्क्रैप ट्रेडिंग कार्पोरेशन (एमएसटीसी) के जरिए कबाड़ के भाव बेचने का निर्णय कर लिया गया। मात्र 38 करोड़ में गुजरात के श्री राम ग्रुप ने खरीद लिया है। शनिवार सुबह मुंबई से रवाना होकर अगले दो दिनों में यह भावनगर के अलंग शिप ब्रेकिंग यार्ड पहुंच जाएगा। इससे पहले बंगलादेश मुक्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा चुके आइएनएस विक्रांत को भी सेवानिवृत्ति के बाद मैरीटाइम म्यूजियम में बदलने के प्रयास हुए थे। उस समय तो इस आस में विक्रांत को 10 वर्ष से अधिक समय तक यहां-वहां खड़ा रखा गया। देश की तीन बड़ी शख्सियतें, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेपी, तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीज व शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे तीनों ‘विक्रांत’ को टूटते हुए नहीं देखना चाहते थे। इसके बावजूद ‘विक्रांत’ को भी कबाड़े के भाव में बिकना पड़ा था। अब वही अंजाम ‘विराट’ का भी होने जा रहा है। 


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