Maharastra Corona vaccine: देश की सबसे पुराने वैक्सीन उत्पादक संस्था हाफकिन की कोवैक्सीन आने में लगेंगे आठ महीने
देश की सबसे पुराने वैक्सीन उत्पादक संस्था हाफकिन इंस्टीट्यूट फार ट्रेनिंग रिसर्च एवं टेस्टिंग को भारत सरकार की ओर से भारत बायोटेक द्वारा विकसित पूर्णतया स्वदेशी कोवैक्सीन के उत्पादन की अनुमति मिल गई है। उत्पादन शुरू हो जाने के बाद इंस्टीट्यूट कोवैक्सीन की प्रतिवर्ष 22.8 करोड़ खुराकें तैयार कर सकेगा।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। मुंबई के हाफकिन इंस्टीट्यूट को भारत बायोटेक की कोवैक्सीन का उत्पादन शुरू करने में अभी कम से कम आठ महीने लगेंगे। उत्पादन शुरू हो जाने के बाद इंस्टीट्यूट कोवैक्सीन की प्रतिवर्ष 22.8 करोड़ खुराकें तैयार कर सकेगा। देश की सबसे पुराने वैक्सीन उत्पादक संस्था हाफकिन इंस्टीट्यूट फार ट्रेनिंग, रिसर्च एवं टेस्टिंग को भारत सरकार की ओर से भारत बायोटेक द्वारा विकसित पूर्णतया स्वदेशी कोवैक्सीन के उत्पादन की अनुमति मिल गई है।
हाफकिन इंस्टीट्यूट के प्रबंध निदेशक डॉ.संदीप राठोड़ ने दैनिक जागरण से बात करते हुए कहा कि केंद्र से अनुमति मिलने के बाद संस्थान कोरोना वैक्सीन के उत्पादन की तैयारियों में जुट गया है। इसके लिए बायो सेफ्टी लेवल (बीएसएल)-3 लैबोरेटरी तैयार की जा रही है। यह लैबोरेटरी तैयार करने में वैसे तो कई वर्ष लग सकते हैं। लेकिन हाफकिन इंस्टीट्यूट कोरोना महामारी को देखते हुए युद्ध स्तर पर काम करके अगले आठ महीनों में बीएसएल-3 लैब तैयार कर लेगा। लैबोरेटरी तैयार करने पर करीब 154 करोड़ रुपयों का खर्च आने की उम्मीद है। डॉ.संदीप राठोड़ के अनुसार लैबोरेटरी तैयार होने के बाद वैक्सीन उत्पादन का काम दो चरणों में किया जाएगा। पहले कच्चा माल तैयार किया जाएगा। उसके बाद वैक्सीन तैयार कर उसे वायल्स में भरने का काम किया जाएगा।
राठोड़ बताते हैं कि हाफकिन इंस्टीट्यूट वैक्सीन की प्रतिवर्ष करीब 22.8 करोड़ खुराकें तैयार करेगी। इसका उपयोग कहां और किस प्रकार किया जाएगा, इसका निर्णय बाद में केंद्र एवं राज्य सरकारें मिलकर करेंगी। बता दें कि हाफकिन इंस्टीट्यूट द्वारा कोवैक्सीन तैयार करने के लिए केंद्र सरकार ने कोविड सुरक्षा योजना के तहत संस्थान को 65 करोड़ रुपए देने की घोषणा की है। जबकि महाराष्ट्र सरकार ने इस कार्य के लिए 94 करोड़ रुपए का अनुदान देने की घोषणा की है। हाफकिन इंस्टीट्यूट महाराष्ट्र सरकार का ही सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है।
करीब दो माह पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाफकिन इंस्टीट्यूट में भारत बायोटेक द्वारा विकसित स्वदेशी वैक्सीन के उत्पादन की अनुमति मांगी थी। केंद्र सरकार ने जल्दी ही उसे यह अनुमति प्रदान भी कर दी थी। बता दें कि हाफकिन देश की सबसे पुरानी वैक्सीन उत्पादक संस्था है। पहली बार 1896 में इसी संस्थान ने देश को प्लेग का टीका बनाकर दिया था। हाफकिन इंस्टीट्यूट तभी से संक्रमण से फैलनेवाली तमाम बीमारियों पर शोध, प्रशिक्षण एवं टेस्टिंग के लिए जाना जाता है।
निजी क्षेत्र की वैक्सीन निर्माता कंपनियों के अस्तित्व में आने के काफी पहले से मुंबई के परेल इलाके में स्थित यह संस्था देश की टीका जरूरतों को पूरा करती आ रही है। कालरा, टिटनेस, डिप्थीरिया, पर्ट्यूसिस जैसी बीमारियों के टीके यहां बनते रहे हैं। एंटी रैबीज सीरम एवं एंटी स्नेक वेनम सीरम भी इसी संस्थान ने तैयार किए हैं। यहां तक कि पिछले कई वर्षों से देशभर में बच्चों को दी जा रही पोलियो की ओरल वैक्सीन का उत्पादक भी हाफकिन इंस्टीट्यूट ही कर रहा है। फिलहाल यह संस्था एड्स के संक्रमण पर भी शोध कर रही है। इन दिनों देश में रेमडेसिविर जैसी दवाओं के कच्चे माल की भी बेहद कमी महसूस की जा रही है।
लेकिन डॉ.संदीप राठोड़ का कहना है कि वैक्सीन के मामले में कच्चे माल की कोई कमी नहीं होने पाएगी। इसके लिए कच्चा माल भी संस्थान में ही तैयार किया जाएगा। पर्याप्त कच्चे माल का इंतजाम करके ही हाफकिन इंस्टीट्यूट कोवैक्सीन का उत्पादन शुरू करेगा।