Maharashtra Politics: क्या विवादित बयानों के जरिये महाराष्ट्र में कांग्रेस को राजनीतिक जमीन वापस दिला पाएंगे नाना पटोले
महाराष्ट्र में कांग्रेस की स्थिति ऐसी है कि वह सत्ता में साझीदार होने के कारण न तो जनता से जुड़े मुद्दों पर उसके साथ खड़ी दिख सकती है न ही सत्ता में रहने के बावजूद उसे शिवसेना एवं राकांपा जैसा लाभ एवं सम्मान मिल पा रहा है।
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। एक कहावत है कि नया मुल्ला जोर की बांग देता है। इसी तर्ज पर महाराष्ट्र कांग्रेस के नए बने अध्यक्ष नाना पटोले अपनी पहचान जगजाहिर करने के लिए अमिताभ बच्चन एवं अक्षय कुमार को धमकियां देते दिखाई दे रहे हैं। उनका कहना है कि ईंधन की बढ़ती कीमतों पर कुछ न बोलने वाले इन कलाकारों की शूटिंग वह महाराष्ट्र में नहीं होने देंगे। नाना पटोले उसी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, जो महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार में शामिल है। इसके मुखिया उद्धव ठाकरे को बहुत बुरा लगता है, जब यूपी के मुख्यमंत्री ग्रेटर नोएडा में नई फिल्म सिटी बनाने की बात करते हैं। उन्हें लगता है कि अन्य प्रदेश का कोई नेता उनके प्रदेश का फिल्म सिटी उठाए लिए जा रहा है।
सवाल यह है कि नाना पटोले कौन हैं, और वे ऐसे ऊल-जलूल बयान क्यों दे रहे हैं? नाना पटोले विदर्भ क्षेत्र की गोंदिया संसदीय सीट के अंतर्गत आनेवाले साकोली विधानसभा क्षेत्र से राजनीति करनेवाले नेता हैं। उनकी सियासत की बुनियाद लंबे समय तक गोंदिया के सांसद रहे राकांपा नेता प्रफुल पटेल के विरोध पर टिकी रही है। वर्ष 2014 में उनके इसी गुण ने भाजपा को आकर्षति किया और वह भाजपा में आ गए। भाजपा के टिकट पर प्रफुल पटेल के विरुद्ध लोकसभा चुनाव लड़े और मोदी लहर में जीत भी गए। लेकिन कांग्रेसी संस्कृति में पले-बढ़े नाना को भाजपा रास नहीं आई। कार्यकाल पूरा होने के पहले ही संसद सदस्यता एवं भाजपा की प्राथमिक सदस्यता दोनों से इस्तीफा दे दिया। फिर जहां से आए थे, वहीं लौट गए। वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने नागपुर से कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के दिग्गज नेता नितिन गडकरी के विरुद्ध लड़ा और पराजित हुए। चंद महीनों बाद ही हुए विधानसभा चुनाव में वह फिर अपनी परंपरागत साखोली विधानसभा सीट से जीतकर विधायक बन गए। संयोग से चुनाव के बाद राज्य में कांग्रेस-राकांपा-शिवसेना की मिली-जुली सरकार बनी और नाना पटोले को विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया।
लेकिन एक तो नाना पटोले को विधानसभा अध्यक्ष जैसा निष्क्रिय पद रास नहीं आ रहा था, दूसरे कांग्रेस आलाकमान को महाराष्ट्र के नेतृत्व में बदलाव की जरूरत महसूस हो रही थी। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बालासाहब थोरात राजस्व मंत्री का पद संभाल रहे थे। वह वैसे भी कांग्रेस में रहते हुए शरद पवार की हां में हां मिलाने वाले शांत प्रकृति के नेता के रूप में जाने जाते हैं। जबकि कांग्रेस को एक ऐसे प्रदेश अध्यक्ष की जरूरत थी, जो न सिर्फ भाजपा के विरुद्ध, बल्कि जरूरत पड़ने पर राकांपा और शिवसेना के विरुद्ध भी बोल सके। इसलिए उन्हें ही यह जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय किया गया।
दरअसल महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी की सरकार बनने के बाद से ही कांग्रेस सरकार में रहते हुए भी खुद को दोयम दर्जे पर ही पा रही है। न तो उसे कोई ढंग का मंत्रलय मिला है, न ही उसकी कोई बात सुनी जाती है। उलटे शिवसेना के मुखपत्र सामना में उसे गाहे-बगाहे खरी-खोटी ही सुनाई जाती रही है। पूर्व अध्यक्ष बालासाहब थोरात ने एक बार किसी मुद्दे पर जरा सी आवाज उठाई थी, तो सामना के संपादकीय में कांग्रेस को चर्र-मर्र करनेवाली पुरानी खाट बता कर उसका मजाक उड़ाया गया था।
अब नाना पटोले अध्यक्ष तो बन गए हैं। लेकिन प्रदेश कांग्रेस के अन्य नेताओं की तुलना में वह बहुत कनिष्ठ हैं। महाराष्ट्र कांग्रेस में सुशील कुमार शिंदे, पृथ्वीराज चह्वाण और अशोक चह्वाण जैसे तीन-तीन पूर्व मुख्यमंत्री बैठे हैं। माणिकराव ठाकरे एवं बालासाहब थोरात जैसे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बैठे हैं। इनके बीच अपनी पहचान स्थापित करना आसान नहीं है। साथ ही, दिल्ली में बैठे आलाकमान को उनसे यह उम्मीद भी है कि वह लगातार रसातल में जा रही कांग्रेस को थोड़ा मजबूत भी करेंगे। जबकि उनकी क्षेत्रीय पृष्ठभूमि ऐसी नहीं है कि वह महाराष्ट्र के अन्य क्षेत्रों में बहुत कारगर साबित हो सकें। वह विदर्भ के सीमावर्ती क्षेत्र से आते हैं। जहां पार्टी के तौर पर कांग्रेस कभी मजबूत नहीं रही। दूसरी ओर कांग्रेस में क्षेत्रीय छत्रपों की कमी नहीं है। अशोक चह्वाण, सुशील कुमार शिंदे, पृथ्वीराज चह्वाण, बालासाहब थोरात आदि नेताओं की मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में अच्छी पैठ रही है। ये अपने दम पर कई-कई सीटों पर जीत-हार का फैसला करवाते रहे हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में राजीव सातव की जीत वास्तव में अशोक चह्वाण की ही देन थी।
ऐसी स्थिति में नाना पटोले को नए मिले पद पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए कुछ तो करना ही है। तो बोल बचन ही सही। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में मुद्दों की कमी है। सरकार की नाकामियों का ठीकरा तो उसके सिर पर भी फूटना तय है। ऐसे में नाना बोल बचन के सहारे ही महाराष्ट्र में कांग्रेस को जिंदा रखने का प्रयास कर रहे हैं।
[मुंबई ब्यूरो प्रमुख]