कोरोना संक्रमण काल में नुकसानदायक हो सकती है लिवर रोग की अनदेखी, ऐसे रखें खास ख्याल
मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल के लिवर ट्रांसप्लांटेशन विशेषज्ञ ने बताया कि कोरोना संक्रमणकाल में कई अन्य रोगों की अनदेखी भी हुई है जिसके दुष्परिणाम देखने को मिले हैं। इसलिए यदि लिवर रोग से पीड़ित हैं तो उपचार में न करें देरी...
मुंबई, जेएनएन। लिवर मानव शरीर के प्रमुख अंगों में से एक है, जो हमारे दैनिक आहार के पोषक तत्वों को ऐसे पदार्थों में परिवर्तित करने का काम करता है जिनका शरीर द्वारा उपयुक्त रूप से उपयोग किया जा सके। यह इन पदार्थों को एकत्र भी करता है और आवश्यकतानुसार कोशिकाओं को इनकी आपूर्ति करता है। लिवर विषाक्त पदार्थों को भी हानिरहित पदार्थों में परिवर्तित करता है और उन्हें शरीर से बाहर निकालता है। लिवर ऐसे प्रोटीन का भी निर्माण करता है, जो रक्त का थक्का बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आमतौर पर अल्कोहल के सेवन और हेपेटाइटिस के चलते लिवर की बीमारियां होती हैं। हालांकि अल्कोहल तो सबसे आम कारणों में से एक होता ही है, लेकिन नॉन-अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज या नॉन-अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस, जो डायबिटीज का द्वितीयक रूप है और मोटापा अब भारत में लिवर सिरोसिस के एक प्रमुख कारण के रूप में उभर रहा है।
लिवर खराब होने के लक्षण
- मुंह का स्वाद खराब होना
- शरीर में आलसपन और कमजोरी
- छाती में जलन और भारीपन होना
- लिवर वाली जगह पर दबाने से दर्द होना
- भूख न लगना, बदहजमी व पेट में गैस बनना
- लिवर बड़ा हो जाता है तो पेट में सूजन आने लगती है
खुद करता है अपनी मरम्मत: लिवर ऐसा अनूठा अंग है, जो अपनी मरम्मत और स्वयं को रिजनरेट करने में सक्षम होता है। जब किसी व्यक्ति के लिवर की सर्जरी होती है या व्यक्ति लिवर का कोई हिस्सा डोनेट करता है तो लिवर का शेष हिस्सा छह हफ्ते में अपने सामान्य आकार में आ जाता है। इसी तरह यदि लिवर को कोई नुकसान पहुंचता है तो शुरू में इसका पता नहीं चलता है, क्योंकि इसका कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है और लिवर अपनी मरम्मत स्वयं करता रहता है, लेकिन जब स्वयं की मरम्मत करने में लिवर अक्षम हो जाता है तो लिवर रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं और लिवर सिरोसिस का पता चलता है। यही कारण है कि इसे साइलेंट किलर के रूप में जाना जाता है, क्योंकि रोग का लक्षण दिखाई देने के समय तक इसे काफी नुकसान पहुंच चुका होता है।
ट्रांसप्लांट का है विकल्प: जब लिवर बहळ्त अधिक अस्वस्थ हो जाता है तो लिवर ट्रांसप्लांट का विकल्प आता है। लिवर ट्रांसप्लांट का मतलब है सर्जरी के जरिए खराब लिवर की जगह नए लिवर का प्रत्यारोपण। रोगी के परिवार का जीवित व्यक्ति नया लिवर (लिवर का एक हिस्सा) दान कर सकता है या फिर इसे ब्रेन डेथ डोनर से लिया जा सकता है। ट्रांसप्लांटेशन कराने वाले अधिकांश रोगियों को आजीवन दवाओं का सेवन करना पड़ता है। हालांकि सरकारी हस्तक्षेप के चलते, इन दवाओं की कीमत काफी कम कर दी गई है। जीवित डोनर सर्जरी बहळ्त सुरक्षित सर्जरी होती है और डोनर्स को लंबे समय तक दवा लेने की जरूरत भी नहीं पड़ती है। लिवर बहळ्त ही संवेदी अंग है फिर भी यह अच्छी बात है कि लिवर डोनर्स सर्जरी के तुरंत बाद ही सामान्य जिंदगी जी सकते हैं।
ध्यान रखें
- धूमपान से दूर रहें
- अल्कोहल का सेवन न करें
- शरीर के मध्य भाग में चर्बी न बढ़ने दें
- ऐसी चीजों का सेवन करें, जिनमें फाइबर, विटामिंस, एंटीऑक्सीडेंट्स और मिनरल्स की मात्रा अधिक हो
- समय-समय पर ब्लड टेस्ट कराते रहें, जिससे रक्त में वसा, कोलेस्ट्रॉल और ग्लूकोज के स्तर का पता चलता रहे
लिवर को रखिए विकारयुक्त: जीवनशैली में बदलाव लाकर कई विकारों को नियंत्रित किया जा सकता है। अल्कोहल के सेवन को कम करके और हेपेटाइटिस बी के टीकाकरण से लिवर सिरोसिस से बचा जा सकता है। बचपन से ही आहार पर ध्यान देकर और दिनचर्या में योग-व्यायाम को शामिल करके भी लिवर को नुकसान से बचाने में मदद मिलती है।