Move to Jagran APP

Maharashtra: मुंबई पुलिस को बदनाम करने की कोशिश में रिपब्लिक टीवी न्यूज चैनल के चार पत्रकारों पर एफआइआर

मुंबई पुलिस को बदनाम करने की कोशिश करने के आरोप में रिपब्लिक टीवी न्यूज चैनल के चार पत्रकारों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई है। पुलिस मामले की जांच कर रही है। अभी इस संबंध में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 07:17 PM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 07:17 PM (IST)
Maharashtra: मुंबई पुलिस को बदनाम करने की कोशिश में रिपब्लिक टीवी न्यूज चैनल के चार पत्रकारों पर एफआइआर
मुंबई पुलिस को बदनाम करने में रिपब्लिक टीवी न्यूज चैनल के चार पत्रकारों के खिलाफ एफआइआर।

मुंबई, प्रेट्र। मुंबई पुलिस को बदनाम करने की कोशिश करने के आरोप में रिपब्लिक टीवी न्यूज चैनल के चार पत्रकारों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई है। पुलिस मामले की जांच कर रही है। अभी इस संबंध में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। इधर, बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले में रिपब्लिक टीवी की रिपोर्टिंग व उसकी शैली पर बांबे हाई कोर्ट ने बुधवार को कई तीखी टिप्पणियां कीं थी। उच्च न्यायालय ने सवाल किया कि जिस मामले की जांच चल रही हो, उसमें दर्शकों से पूछना कि किसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए एवं किसी व्यक्ति को सीधे आरोपित करना कहां की खोजी पत्रकारिता है? न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता व जीएस कुलकर्णी की पीठ उन कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो सुशांत मामले में मीडिया ट्रायल रोकने के लिए उच्च न्यायालय में दायर की गई हैं।

prime article banner

कोर्ट ने चैनल द्वारा चलाए गए हैशटैग अरेस्ट रिया पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने चैनल की वकील मालविका त्रिवेदी से सवाल किया कि इस हैशटैग को लेकर शिकायत की जा रही है। यह रिपब्लिक टीवी की खबर क्यों थी? चैनल ने शव की तस्वीरें दिखा कर यह कयास क्यों लगाया कि यह आत्महत्या थी या हत्या? जब मामले की जांच चल रही हो तो एक चैनल द्वारा सीधे-सीधे उसे हत्या साबित करना कहां की खोजी पत्रकारिता है? याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में मीडिया ट्रायल रोकने की भी मांग की थी। इस पर कोर्ट ने सभी पक्षों से पूछा कि इस स्थिति को रोकने के लिए किसी नियामक संस्था की भी जरूरत है क्या? रिपब्लिक टीवी ने इसका जवाब देते हुए कहा कि चैनल द्वारा सुशांत मामले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं की जानकारी दी गई है।

जनभावनाओं को सामने लाना एवं सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है। यह जरूरी नहीं है कि हमारे द्वारा दिखाई जा रही खबर या विचार सबको पसंद ही आए। यदि खबर से कोई तबका असहज होता है तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। कोर्ट ने इस पर भी चैनल को नसीहत देते हुए कहा कि हम सामान्य पत्रकारिता सिद्धांतों की बात कर रहे हैं, जिनका आत्महत्या जैसे विषय की रिपोìटग में पालन किया जाना चाहिए था। हेडलाइन सनसनीखेज नहीं होनी चाहिए। एक ही बात बार-बार नहीं दिखाई जानी चाहिए।

गवाहों को जाने दीजिए, आपने तो मृतक को भी नहीं छोड़ा।पिछले सप्ताह हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया था कि वह न्यूज ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड एसोसिएशन (एनबीएसए) जैसी गैरसरकारी संस्थाओं के नियमों में बदलाव कर उन्हें ठीक से लागू क्यों नहीं करवाती। सरकार की तरफ से बुधवार को इसका जवाब देते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं है कि गलतियां करने वाले चैनलों पर कार्रवाई नहीं की जाती या बनाई गई व्यवस्था काम नहीं कर रही है। हो सकता है कि एक-दो चैनल नियमों का ठीक से पालन नहीं करते हों, लेकिन ज्यादातर चैनल नियमानुसार ही काम कर रहे हैं। सिंह ने बताया कि नियमों के उल्लंघन में मंत्रालय द्वारा 2013 से अब तक 214 चैनलों पर कार्रवाई की जा चुकी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.