जानिए कौन है स्विट्जरलैंड के सांसद निकोलस सैम्युअल गुग्गर, उठा रहे भारत की आवाज
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनने के बाद भारत ने लोकतंत्र और मानवता को बढ़ावा देने की बात कही। इसकी दुनियाभर में सराहना हो रही है। अलग-अलग देशों के सांसदों का एक समूह डेमोक्रेसी विथआउट बॉर्डर के सदस्यों में एक स्वीट्जरलैंड के सांसद निकोलस गुग्गर।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। करीब 50 वर्ष पहले कर्नाटक के उडुपी शहर के सीएसआई लोम्बार्ड अस्पताल में एक बच्चे का जन्म हुआ। किसी मजबूरीवश नवजात शिशु की मां ने उसे डॉक्टर को यह कहते हुए सौंप दिया कि इसे किसी जरूरतमंद को दत्तक दे दीजिए, ताकि इसका सही पालन-पोषण हो सके। उन्हीं दिनों स्वीट्जरलैंड से वहां आए एक दंपत्ति फ्रिट्ज एवं एलिजाबेथ ने उस बच्चे को गोद ले लिया। फ्रिट्ज यहां भारत-स्विस मैत्री संधि के तहत केरल के तटीय तलशेरी कस्बे में स्थित नाटूर टेक्निकल ट्रेनिंग फाउंडेशन (एनटीटीएफ) में तकनीकी शिक्षा देने आए थे। जबकि उनकी पत्नी एलिजाबेथ वहीं अंग्रेजी एवं जर्मन भाषा की शिक्षिका थीं। दत्तक माता-पिता ने अपने बेटे का नाम निकोलस सैम्युअल गुग्गर रखा। निकोलस अपने नए माता-पिता के साथ करीब चार साल केरल में रहे। उसके बाद उन्हीं के साथ स्वीट्जरलैंड चले गए।
वहां प्रारंभिक शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करना उनके लिए आसान नहीं था। माता-पिता उनके भोजन एवं वस्त्रों का खर्च तो उठा सकते थे, लेकिन उच्च शिक्षा का नहीं। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्होंने ट्रक चलाए। माली का काम किया। यह सब करते हुए उन्होंने पहले मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। फिर मनोविज्ञान एवं प्रबंधन में उच्च शिक्षा ग्रहण की और बकायदा सामाजिक कार्यो की पढ़ाई करके समाज सेवा में उतर गए। उनकी समाज सेवा भी रंग लाई। वर्ष 2002 में वह जर्मनी से सटे विंटरथूर इलाके से टाउन काउंसिलर चुने गए और नवंबर 2017 में पहली बार स्वीट्जरलैंड के ज्यूरिक क्षेत्र से सांसद चुन लिए गए। स्वीट्जरलैंड की संसद में पहुंचने वाले वह भारतीय मूल के पहले व्यक्ति थे। वर्ष 2018 में उन्होंने स्विस-इंडियन पार्लियामेंट्री ग्रुप का गठन कर लिया।
'ईश्वर ने मुझे इस विशेष कार्य के लिए चुना है'
भारत को स्वीट्जरलैंड एवं यूरोप से जोड़ने की प्रेरणा आपको कहां से मिली और आपने स्विस इंडियन पार्लियामेंट्री ग्रुप कैसे बनाया?
- इसका श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है। उन्होंने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि मैं उस देश के प्रति कृतज्ञ रहूं, जहां मेरा जन्म हुआ। मैंने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कि इन दोनों देशों की सुंदर संस्कृति को एक-दूसरे के निकट लाया जाए। मुङो इस बात का आभास हो गया कि ईश्वर ने मुङो इस विशेष कार्य के लिए चुना है। सांसद बनने के बाद मैंने देखा कि सांसदों ने कई देशों को लेकर ऐसे संगठन बनाए हुए हैं। लेकिन भारत से जुड़ा ऐसा कोई भी संगठन नहीं था। इसी विचार से मैंने स्विस इंडियन पार्लियामेंट्री ग्रुप की शुरुआत की। जिसमें आज 50 से ज्यादा स्विस सांसद जुड़े हुए हैं। अब हम कह सकते हैं कि भारत की स्वीट्जरलैंड में एक मजबूत आवाज मौजूद है।
स्विस सरकार के लिए आपके क्या सुझाव हैं, जिससे भारत के साथ के संबंध और सुदृढ़ हो सकें ?
- एक सांसद एवं फॉरेन कमीशन का सदस्य होने के नाते मैं समय-समय पर स्विस प्रशासन को भारत के साथ संबंध मजबूत करने को लेकर अपने सुझाव देता रहता हूं। इन दोनों देशों ने वर्ष 1948 में बकायदा मित्रता संधि पर हस्ताक्षर किए थे और वर्ष 2018 में हमने उसकी 70वीं सालगिरह भी मनाई।
भारत को स्वीट्जरलैंड एवं यूरोप में एक मजबूत मंच प्रदान करने के लिए आप क्या कर रहे हैं ?
- स्वीट्जरलैंड में भारत से जुड़ी कई संस्थाएं सक्रिय हैं। वे जब भी मुङो आमंत्रित करती हैं, तो मैं उनके कार्यक्रम में जरूर जाता हूं। भारतीय दूतावास का कोई भी कार्यक्रम मेरी प्राथमिकता पर होता है। कोई भी विशिष्ट अतिथि भारत से आता है तो मैं उन्हें स्विस संसद में आमंत्रित करता हूं और विशिष्ट लोगों से उनकी मुलाकात भी करवाता हूं।
भारत और स्वीट्जरलैंड के बीच मुक्त व्यापार को लेकर प्रकाश डालिए?
- यह मेरा सबसे बड़ा सपना है कि भारत और स्वीट्जरलैंड वर्ष 2022-23 तक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर लें। वर्ष 2020 की शुरुआत में मैंने स्विस इंडियन चैंबर आफ कामर्स एवं स्विस इंडियन पाíलयामेंटरी ग्रुप के संयुक्त तत्वावधान में एक बड़ा कार्यक्रम भी आयोजित किया था। इसका मुख्य उद्देश्य यही था कि मुक्त व्यापार समझौते की राह में जो भी अड़चनें आ रही हैं, उन्हें दूर किया जाए।
भारत की युवा पीढ़ी के प्रति आपका नजरिया क्या है ?
- भारत एक युवा देश है। यहां अपार संभावनाएं हैं। मुङो लगता है कि यदि स्वीट्जरलैंड जैसी तकनीकी शिक्षा प्रणाली को भारत में भी शुरू करने में सफल होते हैं, तो इसके परिणाम चमत्कारी हो सकते हैं।
कुछ ऐसे उदाहरण साझा करें, जहां भारतीयों एवं भारतीय समुदाय को विशेष मदद की हो।
- यहां रह रहे प्रवासी भारतीयों को जब भी कभी किसी प्रकार की सहायता की जरूरत होती है, तो मैं वहां उपस्थित रहता हूं। जैसे कि पिछले साल वल्र्ड इकॉनामिक फोरम की दावोस में हुई वार्षकि बैठक में कर्नाटक सरकार के लिए मैं सह-मेजबान की भूमिका में था। स्वीट्जरलैंड में जो भारतीय मूल के उद्यमियों को परामर्श देता हूं।