Remedisvir Scam: सीवीसी ने दिए रेमडेसिविर घोटाले की जांच के आदेश
Remedisvir Scam वकील विनोद तिवारी की अपील पर मुख्य सतर्कता आयुक्त ने रेमडेसिविर घोटाले की जांच के आदेश दे दिए हैं। सीवीसी ने इसकी जांच रसायन व उर्वरक मंत्रालय के मुख्य सतर्कता अधिकारी को करने के आदेश दिए हैं।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। Remedisvir Scam: महाराष्ट्र के एक वकील विनोद तिवारी की अपील पर मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) ने रेमडेसिविर घोटाले की जांच के आदेश दे दिए हैं। सीवीसी ने इसकी जांच रसायन व उर्वरक मंत्रालय के मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) को करने के आदेश दिए हैं। विनोद तिवारी ने करीब एक माह पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित रसायन व उर्वरक मंत्री को पत्र लिखकर कोरोना के इलाज में काम आ रहे रेमडेसिविर इंजेक्शन की बनावटी किल्लत की शिकायत की थी। उन्होंने यह पत्र केंद्रीय सतर्कता आयुक्त व नेशनल फार्मा प्राइस अथारिटी को भी भेजा था। इसमें उन्होंने रेमडेसिविर की जमाखोरी, कालाबाजारी व इसके अधिक दाम वसूले जाने को लेकर कई सवाल उठाए थे व पूरे प्रकरण की जांच की मांग उठाई थी।
तिवारी ने आशंका जताई थी कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान रेमडेसिविर की बनावटी किल्लत दिखा कर जो घोटाला किया गया है, वह एक लाख करोड़ रुपयों से भी अधिक का हो सकता है। मुख्य सतर्कता आयुक्त ने यह शिकायत रसायन व उर्वरक मंत्रालय के मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) को भेजते हुए इसकी जांच के आदेश दिए हैं। सीवीसी ने सीवीओ को एक माह के अंदर इस मामले की जांच कर यह बताने को कहा है कि इस मामले में किसी कार्रवाई की जरूरत है या नहीं। तिवारी ने सीवीसी को लिखे अपने पत्र में कहा है कि कोरोना महामारी के कठिन काल में फार्मा माफिया द्वारा संगठित रूप से किया जा रहा रेमडेसिविर तथा अन्य दवाओं का घोटाला बोफोर्स, 2जी एवं कोयला घोटाले से भी बड़ा हो सकता है।
तिवारी ने जिस समय यह पत्र लिखा था, उस समय उन्होंने असहाय मरीजों की जेब से 57,000 करोड़ रुपये निकाले जाने की आशंका जताई थी। लेकिन अब उनका मानना है कि यह घोटाला एक लाख करोड़ से भी ऊपर का हो सकता है। वह इस बात पर आश्चर्य जताते हैं कि नेशनल फार्मा प्राइस अथारिटी (एनपीपीए) ने कोविड काल में रेमडेसिविर की जरूरत को समझते हुए भी 11 महीनों तक ड्रग्स प्राइस कंट्रोल आर्डर (डीपीसीओ) के शेड्यूल से बाहर क्यों रखा? इस कारण इन जरूरी दवाओं के उत्पादन, भंडारण, वितरण, कीमत एवं बिक्री पर कोई नियंत्रण नहीं रखा जा सका और ये दवाइयां अनियंत्रित रूप से कालाबाजारी में बिकती रहीं। उनके अनुसार भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से रेमडेसिविर के पैकेट के ऊपर 4,500 रुपये से 5,400 रुपये तक दाम लिखकर बेचा गया, जबकि दवा की वास्तविक कीमत 900 रुपये से अधिक नहीं हो सकती थी।