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Sushant Singh Rajput Case: मुंबई हाईकोर्ट ने रिपब्लिक टीवी की रिपोर्ट पर उठाए सवाल, ये कहां की खोजी पत्रकारिता?

Sushant Singh Rajput Case सुशांत सिंह राजपूत मामले में रिपब्लिकन टीवी की रिपोर्टिंग व उसकी शैली पर मुंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कई टिप्पणियां कीं। न्यायालय ने सीधा सवाल किया कि जिस मामले की जांच चल रही हो उसमें दर्शकों से पूछना की किसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए?

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 09:27 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 10:30 PM (IST)
Sushant Singh Rajput Case: मुंबई हाईकोर्ट ने रिपब्लिक टीवी की रिपोर्ट पर उठाए सवाल, ये कहां की खोजी पत्रकारिता?
सुशांत केस मे मुंबई हाईकोर्ट ने रिपब्लिक टीवी की रिपोर्ट पर सवाल उठाए।

राज्य ब्यूरो, मुंबई। Sushant Singh Rajput Case: बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत मामले में रिपब्लिकन टीवी की रिपोर्टिंग व उसकी शैली पर मुंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कई तीखी टिप्पणियां कीं। उच्च न्यायालय ने सीधा सवाल किया कि जिस मामले की जांच चल रही हो, उसमें दर्शकों से पूछना की किसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए? किसी व्यक्ति को सीधे आरोपित करना कहां की ‘खोजी पत्रकारिता’ है ? न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता व जीएस कुलकर्णी की पीठ उन कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जो सुशांत सिंह राजपूत मामले में मीडिया ट्रायल रोकने के लिए मुंबई उच्च न्यायालय में दायर की गई है। कोर्ट ने उक्त चैनल द्वारा चलाए गए हैशटैग अरेस्ट रिया पर भी सवाल उठाए।

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कोर्ट ने चैनल की वकील मालविका त्रिवेदी से सवाल किया कि इस हैशटैग के लेकर शिकायत की जा रही है। ये रिपब्लिक टीवी चैनल की खबर क्यों थी? चैनल ने मृतक के शरीर की तस्वीरें दिखा कर ये कयास क्यों लगाए कि ये आत्महत्या थी, या हत्या? जब एक मामले की जांच चल रही हो कि यह मामला आत्महत्या का है या मानव हत्या का, तो एक चैनल द्वारा सीधे-सीधे उसे हत्या साबित करना कहां की खोजी पत्रकारिता है? याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में मीडिया ट्रायल रोकने की भी मांग कोर्ट से की थी। इस पर कोर्ट ने सभी पक्षों से यह भी पूछा कि इस स्थिति को रोकने के लिए किसी नियामक संस्था की भी जरूरत है क्या?

रिपब्लिक टीवी की ओर से इसका जवाब देते हुए कहा गया कि रिपब्लिक चैनल द्वारा सुशांत मामले में अपनी रिपोर्टिंग से कई महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का खुलासा किया गया है। जनभावनाओं को सामने लाना न सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है। यह जरूरी नहीं है कि हमारे द्वारा दिखाई जा रही खबर या विचार सबको पसंद ही आएं। यदि खबर से कोई तबका असहज होता है, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। कोर्ट ने इस पर भी चैनल को नसीहत देते हुए कहा कि हम सामान्य पत्रकारिता सिद्धांतों की बात कर रहे हैं। जिनका आत्महत्या जैसे विषय की रिपोर्टिंग में पालन किया जाना चाहिए था। हेडलाइन सनसनीखेज नहीं होनी चाहिए। एक ही बात बार-बार नहीं दिखाई जानी चाहिए। गवाहों को जाने दीजिए, आपने तो मृतक को भी नहीं छोड़ा।

इससे पहले पिछले सप्ताह ही कोर्ट केंद्र सरकार से भी यह सवाल कर चुका है कि वह न्यूज ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड एसोसिएशन (एनबीएसए) जैसी गैरसरकारी संस्थाओं के नियमों में बदलाव कर उन्हें ठीक से लागू क्यों नहीं करवाती। सरकार की तरफ से आज इसका जवाब देते हुए एडीशनल सॉलीसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं है कि गलतियां करने वाले चैनलों पर कार्रवाई नहीं की जाती या बनाई गई व्यवस्था काम नहीं कर रही है। हो सकता है, एक-दो चैनल नियमों का ठीक से पालन न करते हों, लेकिन ज्यादातर चैनल नियमानुसार ही काम कर रहे हैं। सिंह ने बताया कि प्रोग्राम कोड कोर्ट के उल्लंघन में मंत्रालय द्वारा 2013 से अब तक 214 चैनलों पर कार्रवाई की जा चुकी है। 


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