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अहम मामलों में सूचना लीक करने पर सीबीआइ और पुलिस को फटकार

अहम मामलों की सूचनाएं प्रेस को दिए जाने पर गुरुवार को महाराष्ट्र पुलिस एवं सीबीआइ को बांबे हाई कोर्ट की फटकार झेलनी पड़ी।

By Vikas JangraEdited By: Published: Fri, 07 Sep 2018 12:13 AM (IST)Updated: Fri, 07 Sep 2018 08:01 AM (IST)
अहम मामलों में सूचना लीक करने पर सीबीआइ और पुलिस को फटकार
अहम मामलों में सूचना लीक करने पर सीबीआइ और पुलिस को फटकार

मुंबई [राज्य ब्यूरो]। अहम मामलों की सूचनाएं प्रेस को दिए जाने पर गुरुवार को महाराष्ट्र पुलिस एवं सीबीआइ को बांबे हाई कोर्ट की फटकार झेलनी पड़ी। कोर्ट ने यह फटकार दाभोलकर एवं पनसारे हत्याकांड से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए लगाई।

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न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी एवं जस्टिस बीपी कुलाबावाला की पीठ नरेंद्र दाभोलकर एवं गोविंद पनसारे के परिजनों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह याचिका कोर्ट की निगरानी में जांच कराए जाने को लेकर दायर की गई है।

गुरुवार को दाभोलकर मामले की प्रगति रिपोर्ट सीबीआइ एवं पनसारे मामले की प्रगति रिपोर्ट सीआइडी ने पेश की। इसको देखने के बाद पीठ ने कहा कि इन महत्वपूर्ण मामलों से जुड़ी सूचनाएं रोज मीडिया को लीक की जा रही हैं। यह अतिउत्साह घातक हो सकता है। जस्टिस धर्माधिकारी ने सवाल किया कि रोज अखबारों में ऐसे महत्वपूर्ण मामलों से जुड़ी खबरें पढ़ने को मिल रही हैं। ये किसके द्वारा दी जा रही हैं?

हालांकि गुरुवार की सुनवाई का माओवादियों से रिश्ते के आरोप में गिरफ्तार कुछ वामपंथी कार्यकर्ताओं के मामले से कोई संबंध नहीं था। इसके बावजूद जस्टिस धर्माधिकारी ने पिछले सप्ताह इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक परमबीर सिंह द्वारा की गई प्रेस कांफ्रेंस का उल्लेख किया।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पुलिस द्वारा किए गए खुलासे पर काफी हो-हल्ला मच रहा है। यह पूरी तरह से अपरिपक्वता दर्शाता है। पुलिस द्वारा इस प्रकार अपनी प्रशंसा करना कतई उचित नहीं कहा जा सकता। न्यायमूर्ति ने सीबीआइ की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल सिंह से कहा कि ऐसी प्रेस कांफ्रेंस करनेवाले पुलिस अधिकारियों से कहिए कि वे स्वयं कोर्ट में आकर देखें कि आरोपियों को सजा दिलवाना कितना मुश्किल होता है।

भीमा-कोरेगांव कांड में आयोग ने बयान दर्ज करना शुरू किया

पुणे में भीमा-कोरेगांव हिंसा कांड की जांच के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा गठित दो सदस्यीय न्यायिक आयोग ने इस मामले से जुड़े गवाहों के बयान दर्ज करने शुरू कर दिए हैं। इस सिलसिले में उक्त हिंसा की शिकार एक पीडि़त महिला का बयान गुरुवार को दर्ज किया गया।

जांच आयोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही सामाजिक कार्यकर्ता संजय लाखे पाटिल ने अर्जी दाखिल कर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को बतौर गवाह बुलाने की मांग की। उनका कहना था कि चूंकि फड़नवीस राज्य के गृह मंत्री भी हैं, इसलिए उन्हें आयोग के समक्ष बुलाया जाना चाहिए।

आयोग ने पाटिल को निर्देश दिया कि वह मुख्यमंत्री के विरुद्ध साक्ष्य प्रस्तुत करें, तभी आयोग निर्णय करेगा कि उन्हें बुलाना है या नहीं। ध्यान रहे कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएन पटेल की अध्यक्षता में गठित दो सदस्यीय न्यायिक आयोग को भीमा-कोरेगांव हिंसा के कारणों की जांच करनी है। पिछले वर्ष 31 दिसंबर को भड़की इस हिंसा में एक युवक की मौत हो गई थी।


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