प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर पुलिस को हाईकोर्ट की फटकार
कोर्ट ने सवाल किया कि जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, तो पुलिस उससे संबंधित विषय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कैसे कर सकती है।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। एलगार परिषद एवं प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश मामले में दो दिन पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस करना महाराष्ट्र पुलिस को भारी पड़ रहा है। ऐसा करने के लिए मुंबई उच्चन्यायालय ने पुलिस को फटकार लगाई है।
उच्च न्यायालय आज एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। खुद को भीमा-कोरेगांव हिंसा का शिकार बताने वाले सतीश गायकवाड ने यह याचिका दायर कर भीमा-कोरेगांव हिंसा की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से कराने की मांग की है। गायकवाड का कहना है कि एक ओर महाराष्ट्र पुलिस इस मामले की सुनवाई इन कैमरा करवाना चाह रही है, दूसरी ओर वह स्वयं गिरफ्तार माओवादी कार्यकर्ताओं की चिट्ठियों का खुलासा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर रही है।
आज इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति भाटकर ने महाराष्ट्र पुलिस को फटकारते हुए सवाल किया कि जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, तो पुलिस उससे संबंधित विषय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कैसे कर सकती है ? भाटकर ने कहा कि ऐसे मामलों में तथ्यों का खुलासा करना गलत है। अदालत ने इस याचिका पर सुनवाई 7 अगस्त तक के लिए टाल दी है। क्योंकि याचिका की प्रतियां सभी पक्षों को मुहैया नहीं कराई जा सकी हैं।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र पुलिस ने शुक्रवार को यह प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। जिसमें राज्य पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) परमवीर सिंह ने कई तथ्य पेश करते हुए दावा किया था कि पिछले सप्ताह की गई माओवादी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियां ठोस सबूतों के आधार पर की गई हैं। सिंह ने कुछ पत्रों का हवाला देते हुए गिरफ्तार किए गए माओवादी कार्यकर्ताओं का संबंध नक्सलियों एवं कश्मीरी आतंकवादियों से बताया था।
वरवर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, अरुण परेरा एवं वर्नन गोंसाल्विस की गिरफ्तारियां 28 अगस्त को की गई थीं। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर इन पांचों को पुलिस की हिरासत में देने के बजाय उनके घरों में ही नजरबंद करने के आदेश दिए गए हैं। इन सभी कार्यकर्ताओं को नजरबंद किए जाने के बाद इनकी गिरफ्तारी को गलत बताते हुए पुलिस पर चौतरफा हमले शुरू हो गए थे। जिस पर अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए शुक्रवार को पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस का सहारा लिया था।