इंदौर में प्रोजेक्ट तो बहुत मंजूर हो गए लेकिन अब समन्वय जरूरी
इंदौर का ज्यादातर पुराना इलाका व्यावसायिक हो चुका है, जहां सुबह से रात तक व्यापारिक गतिविधियां होती रहती हैं।
शहर में बिजली, ड्रेनेज, जलप्रदाय और सड़कों को लेकर हजारों करोड़ रुपए के काम हो रहे हैं। स्मार्ट सिटी, अमृत योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना और मुख्यमंत्री अधोसंरचना फंड के तहत इंदौर को केंद्र और राज्य सरकार से करोड़ों रुपए की राशि मिल रही है।
यह पहला मौका है जब हर तरफ विकास देखा जा सकता है। सारे काम अच्छे से पूरे हों, इसके लिए सभी विभागों में समन्वय जरूरी है। ऐसा नहीं हुआ तो बहुत नुकसान होंगे। विभागीय समन्वय नहीं होने से काम में देरी तो होती ही है, जनता को भी काफी परेशानी होती है।
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स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 750 एकड़ से ज्यादा क्षेत्रफल के शहर में बीसियों काम होना हैं। इनमें मास्टर प्लान के अनुरूप सड़क चौड़ीकरण, रिवर फ्रंट डेवलपमेंट, नए पार्किंग एरिया का विकास, नए बगीचों का निर्माण, नई सब्जी और अन्य तरह की मंडियों का निर्माण, राजवाड़ा और स्मार्ट सिटी मिशन में शामिल इलाकों में बिजली के खंभे और तार हटाकर भूमिगत केबल डालने का काम शामिल है।
नए इलाके में काम करना बहुत आसान होता है, क्योंकि वहां किसी तरह की बाधा नहीं होती। इसके विपरीत पुराने शहर में काम करना उतना ही दुरूह है। जगह-जगह पुरानी सर्विस लाइन, अतिक्रमण और अन्य तरह की बाधाएं होती हैं।
इंदौर का ज्यादातर पुराना इलाका व्यावसायिक हो चुका है, जहां सुबह से रात तक व्यापारिक गतिविधियां होती रहती हैं। ऐसे क्षेत्र में जब भी काम करना हो तो विभागीय समन्वय मजबूत होना बेहद जरूरी है। काम से दुकानदारों का व्यापार प्रभावित होगा, क्योंकि खुदाई के कारण उनके यहां ग्राहक आ-जा नहीं सकते। जाहिर है, ऐसे काम तय समय सीमा में होना चाहिए।
खुदाई में ड्रेनेज, वाटर लाइन, टेलीफोन केबल, गैस लाइन या बिजली संबंधी विभागों के साथ पूरा समन्वय होगा तो काम के दौरान होने वाली परेशानियों से तत्काल नियंत्रण पाया जा सकता है। समन्वय नहीं होने और लेटलतीफी से काम की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
मराठे के मुताबिक स्ट्रीट डिजाइन भी बेहतर प्लानिंग के साथ की जाना चाहिए। केवल सड़कें चौड़ी करना मकसद नहीं होना चाहिए बल्कि हर छोटी-छोटी कमी दूर करने पर ध्यान देना चाहिए। विकास कार्यों के साथ शहर में नए पार्किंग स्थलों की तलाश बहुत जरूरी है। इंदौर में पार्किंग बड़ी समस्या बनती जा रही है।
भविष्य के लिहाज से छोटे-छोटे पार्किंग लॉट्स तलाशकर उनका विकास किया जाना चाहिए। बारिश में शहर में बड़े पैमाने पर पौधारोपण होता है। नगर निगम और पौधारोपण करने वाली संस्थाओं को सुनिश्चित करना चाहिए कि पौधे मास्टर प्लान की तय रोड चौड़ाई के बाद लगाए जाएं ताकि बाद में पेड़ों को काटने की नौबत न आए। यही काम बिजली कंपनी को नए खंभे लगाते समय करना चाहिए। उसे मास्टर प्लान सीमा के बाहर खंभे लगाना चाहिए ताकि बाद में उनकी शिफ्टिंग पर करोड़ों रुपए खर्च न करना पड़ें।
इसके लिए निगम, आईडीए और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से संपर्क कर पौधारोपण या नए खंभे लगाना चाहिए। समन्वय का एक बेहतर तरीका यह भी है कि जो विभाग नया प्रोजेक्ट ला रहा है, वह सभी संबंधित विभागों को प्रोजेक्ट की जानकारी दे दे और उसकी विधिवत अनुमति ले।
इससे फायदा यह होगा कि पेड़ हटाने से पर्यावरणप्रेमी और शहर की जनता नाराज नहीं होगी और विरोध के कारण प्रोजेक्ट में अनावश्यक देरी नहीं होगी। इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर समन्वय समिति बनाई जा सकती है।
- विजय मराठे, पूर्व टाउन प्लानर, आईडीए