गंगा डॉल्फिन खतरे में, चम्बल में सिर्फ 58 बचीं
ग्वालियर। गंगा डॉल्फिन को भले ही राष्ट्रीय जल जीव घोषित किया जा चुका हो मगर उसके अस्तित्व की किसी को चिंता नहीं है। यही कारण है कि चम्बल नदी में गंगा डॉल्फिन की लगातार संख्या कम होती जा रही है। यह खुलासा हाल ही में हुई गणना से हुआ है।
गंगा डॉल्फिन मूल रुप से गंगा के अलावा गंगा में मिलने वाली नदियों में पाई जाती है और इसे सूस भी कहा जाता है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से होकर निकलने वाली चम्बल नदी में भी गंगा डॉल्फिन पाई जाती है। इस इलाके में डॉल्फिन की हर साल गणना कराई जाती है। इस वर्ष मई-जून 2012 में भारतीय वन्यप्राणी संस्थान और विश्व वन्यप्राणी महासंघ (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) ने मध्य प्रदेश व राजस्थान के वन अधिकारियों के साथ मिलकर गणना की।
संयुक्त अभियान के जरिए की गई गणना ने सभी को हैरत में डाल दिया है, क्योंकि बीते छह सालों में गंगा डॉल्फिन की संख्या 175 से घटकर सिर्फ 58 रह गई है। आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि वर्ष 2006 में 175, वर्ष 2007 में 91, 2008 में 86 , 2009 में 84, 2010 में 69 डॉल्फिन चम्बल नदी में थी। बीते वर्ष 2011 में गंगा डॉल्फिन की संख्या घटकर 69 रह गई थी, मगर अब यह आंकड़ा 58 पर पहुंचकर रह गया है।
गंगा डॉल्फिन की गणना करने वाले दल के सदस्य और मुरैना में तैनात शोध वन क्षेत्रपाल डॉ. ऋषिकेश शर्मा ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान हालात ठीक नहीं है। इस आशय की रिपोर्ट उन्होंने विभाग के प्रदेश मुख्यालय को भेजी है। इस रिपोर्ट में आवश्यक सुझाव भी दिए हैं।
तीन राज्यों से गुजरने वाली इस नदी की लंबाई 435 किलोमीटर है और इसमें गंगा डॉल्फिन का वास होता हैं। इस डॉल्फिन को सूस भी कहा जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि जब यह डॉल्फिन सांस लेने के लिए पानी के बाहर आती है तो सू की आवाज आती है, लिहाजा इसे सूस के नाम से भी पुकारा जाता है।
यहां बताना लाजिमी होगा कि अक्टूबर 2009 राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) की पहली बैठक में गंगा डॉल्फिन को राष्ट्रीय जल जीव घोषित किया गया था। यह बैठक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई थी।
गंगा डॉल्फिन की संख्या वर्ष 1980 में पांच हजार हुआ करती थी मगर अब यह घटकर सिर्फ 1500 ही रह गई है। यही कारण है कि इस जलीय प्राणी को 1996 में रेड डाटा बुक में रखा गया है। इस जीव का जीवन संकट में होने के कारण इसे वन्यप्राणी (सुरक्षा) अधिनियम 1972 की अनुसूची-एक में शामिल किया गया है।
सरकारी स्तर पर गंगा डॉल्फिन को बचाने के लिए उठाए गए तमाम कोशिशों के बाद भी उनकी संख्या लगातार घट रही है। जानकारों का कहना है चम्बल नदी में होने वाले खनन और शिकारियों की गतिविधियों के चलते गंगा डॉल्फिन का यह हाल हो रहा है।
अभी हाल में सामने आई रिपोर्ट से एक बात तो साफ हो गई है कि औसत तौर पर चम्बल में गंगा डॉल्फिन की संख्या 10 कम हो रही है, और यही हाल रहा तो आने वाले एक दशक के भीतर इसका यहां से इनका नामों निशान ही खत्म हो जाएगा।
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