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Madhya Pradesh: रतलाम में जुड़वां बहनें पलक-तनिष्का और साढ़े नौ वर्ष के ईशान लेंगे दीक्षा

Madhya Pradesh रतलाम में चाणोदिया परिवार की 14 वर्षीय जुड़वां बहनें पलक और तनिष्का के साथ ही कोठारी परिवार के ईशान 26 मई को जैन दीक्षा लेकर संयम पथ पर अग्रसर होंगे। ईशान की उम्र महज साढ़े नौ वर्ष है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Sat, 21 May 2022 07:25 PM (IST)Updated: Sat, 21 May 2022 07:25 PM (IST)
Madhya Pradesh: रतलाम में जुड़वां बहनें पलक-तनिष्का और साढ़े नौ वर्ष के ईशान लेंगे दीक्षा
मप्र के रतलाम में जुड़वां बहनें पलक-तनिष्का और साढ़े नौ वर्ष के ईशान लेंगे दीक्षा। फाइल फोटो

रतलाम, जेएनएन। मध्य प्रदेश के रतलाम में चाणोदिया परिवार की 14 वर्षीय जुड़वां बहनें पलक और तनिष्का के साथ ही कोठारी परिवार के ईशान 26 मई को जैन दीक्षा लेकर संयम पथ पर अग्रसर होंगे। ईशान की उम्र महज साढ़े नौ वर्ष है। शहर के टाटानगर निवासी जुड़वां बहनों के माता-पिता संतोष-शोभा चाणोदिया, ईशान के माता-पिता विशाल-पायल कोठारी ने बताया कि दीक्षा के लिए आचार्य जिनचंद्र सागर सूरीश्वर के साथ श्रमण-श्रमणी वृंद का 22 मई को रतलाम में मंगल प्रवेश होगा। इसके बाद पांच दिवसीय आयोजन होंगे।

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नौवीं तक पढ़ी हैं जुड़वां बहनें

रतलाम में टाटानगर निवासी संतोष-शोभा चाणोदिया की पुत्री पलक व तनिष्का ने नौवीं तक पढ़ाई की है। चाणोदिया दंपती की चार पुत्रियां और एक पुत्र हैं। इनमें से बड़ी पुत्री दीपाली वर्ष 2014 में बंधु-बेलड़ी आचार्यद्वय से दीक्षा लेकर संयम पथ पर अग्रसर हो चुकी हैं। अब 31 मार्च, 2007 को महावीर जन्म कल्याणक के दिन जन्मी जुड़वां बहनें पलक व तनिष्का दीक्षा ग्रहण कर जिनशासन का मान बढ़ाएंगी। परिवार में बहन के अलावा कई अन्य स्वजन भी दीक्षा ग्रहण कर चुके हैं।

दूसरी कक्षा तक ईशान ने की है पढ़ाई

इसी प्रकार मोहन टाकीज निवासी विशाल-पायल कोठारी के साढ़े नौ वर्षीय पुत्र ईशान ने कक्षा दूसरी तक पढ़ाई की है। 2019 में ईशान ने साबरमती के हेमचंद्राचार्य गुरकुलम में प्रवेश लिया। पिता मेडिकल स्टोर पर कार्यरत है। ईशान की बचपन से ही धर्म-आराधना में रचि रही और धीरे-धीरे वैराग्य भाव जागृत हो गए।

गौरतलब है कि इससे पहले गत दिनों इंदौर में खेलने-कूदने की उम्र में दस वर्षीय सिद्धम जैन ने वैराग्य की कठिन राह चुनी थी। चौथी कक्षा में पढ़ने वाले सिद्धम ने इंदौर के हिंकारगिरी तीर्थ में मुनि दीक्षा ली। उनके इस फैसले से माता-पिता खुश हैं। बोरी (आलीराजपुर) के रहने वाले के पिता व्यवसायी हैं और माता गृहिणी। पिता मनीष जैन ने कहा कि यह हमारे लिए सौभाग्य का क्षण है, जब बेटा स्वयं के साथ समाज के कल्याण के लिए दीक्षा ले रहा है। वह बताते हैं कि वैराग्य के पथ पर अग्रसर होने के बीज सिद्धम के मन में बहुत कम उम्र में ही पड़ गए थे। सिर्फ तीन साल की उम्र में जब बच्चे खिलौनों की जिद करते हैं, तब सिद्धम जैन मुनि के पास जाने की रट लगाए रहते थे। परिवार को तभी से लगने लगा था कि यह बालक धर्म के कार्य के लिए जन्मा है। वह पांच साल की उम्र से ही संतों के सानिध्य में धर्म की शिक्षा लेने लगे थे। इस परिवार में अब तक सात लोग दीक्षा ले चुके हैं। सिद्धम ने साधु वेश धारण कर जैन मुनि श्रीचंदसागर महाराज बन वैराग्य की कठिन डगर को चुना। हाथों में किताबें तो अब भी होंगी लेकिन स्कूली पाठ्यक्रम की नहीं बल्कि जैन धर्म की शिक्षा देने वाली। उनके दीक्षा गुरु गणिवर्य आनंद चंद्र सागर महाराज बने जो उनके सांसारिक जीवन के मामा हैं।


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