मध्यप्रदेश के ये ग्रामीण समुदाय मनाते हैं पांडवों से जुड़े एक अनूठी परंपरा, कांटों पर लेटकर देते हैं सत्य की परीक्षा
परंपरा के जानकारों का कहना है कि हमारे गांव में रज्जड़ समाज के लोग निवास करते हैं। वे अपने आप को पांडव का वंशज बताते हैं और ये त्योहार मनाते आ रहे हैं। इसमें ये लोग कांटो की झाड़ियों को बिछा कर उस पर लेटते हैं।
बैतूल, जेएनएन । मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के सेहरा गांव में अगहन मास पर रज्जड़ समाज के लोग एक परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं। स्वयं को पांडवों का वंशज मानने वाले इस समाज के लोग कांटों पर लेटकर सत्य की परीक्षा देते हैं और इस परंपरा को सालों से निभाते चले आ रहे हैं ।
परंपरा के जानकारों का कहना है कि हमारे गांव में रज्जड़ समाज के लोग निवास करते हैं। वे अपने आप को पांडव का वंशज बताते हैं और ये त्योहार मनाते आ रहे हैं। इसमें ये लोग कांटो की झाड़ियों को बिछा कर उस पर लेटते हैं। ग्राम के नत्थू रज्जड़ का कहना है कि हम पांच पांडवों के वंशज हैं। बहन की विदाई के लिए ये आयोजन होता है। नाचते हैं, गाते हैं और कांटो पर लेटते हैं।
इस मान्यता के पीछे एक कहानी बताई जाती है कि एक बार पांडव पानी के लिए भटक रहे थे। बहुत देर बात उन्हें एक नाहल समुदाय का एक व्यक्ति दिखाई दिया। पांडवों ने उस नाहल से पूछा कि इन जंगलों में पानी कहां मिलेगा। नाहल ने पानी का स्रोत बताने से पहले पांडवों के सामने एक शर्त रख दी। नाहल ने कहा कि, पानी का स्रोत बताने के बाद उनको अपनी बहन की शादी भील से करानी होगी।
सेहरा गांव में रज्जड़ समाज के लोगों ने कांटों की सेज बनाई और उस पर लेटकर परंपरा को निभाया। इन लोगों का मानना है कि कांटों की सेज पर लेटकर वो अपनी आस्था, सच्चाई और भक्ति की परीक्षा देते हैं। ऐसा करने से भगवान खुश होते हैं और उनकी मनोकामना भी पूरी होती है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि इस कार्यक्रम के बाद वे अपनी बहन की विदाई करते हैं । रज्जड़ समाज के ये लोग पूजा करने के बाद नुकीले कांटों की झाड़ियां तोड़कर लाते हैं और फिर उन झाड़ियों की पूजा की जाती हैं । इसके बाद एक-एक करके ये लोग नंगे बदन इन कांटों पर लेटकर सत्य और भक्ति का परिचय देते हैं ।
इस संदर्भ में जिला अस्पताल के आरएमओ का कहना है कि ऐसे नंगे बदन कांटों पर लेटना किसी भी लिहाज से सही नहीं है। इससे गंभीर चोट लग सकती है और कई तरह के संक्रमण हो सकते हैं और इससे किसी की जान भी जा सकती है।
पांडवों की कोई बहन नहीं थी, इस पर पांडवों ने एक भोंदई नाम की लड़की को अपनी बहन बना लिया और पूरे रीति-रिवाजों से उसकी शादी नाहल के साथ करा दी। विदाई के वक्त नाहल ने पांडवों को कांटों पर लेटकर अपने सच्चे होने की परीक्षा देने का कहा। इस पर सभी पांडव एक-एक कर कांटों पर लेट और खुशी-खुशी अपनी बहन को नाहल के साथ विदा किया। इसलिए रज्जड़ समाज के लोग अपने आपको पांड़वों का वंशज कहते हैं और कांटों पर लेटकर परीक्षा देते हैं। परंपरा पचासों पीढ़ी से चली आ रही है, जिसे निभाते वक्त समाज के लोगों में खासा उत्साह रहता है। ऐसा करके वे अपनी बहन को ससुराल विदा करने का जश्न मनाते हैं। यह कार्यक्रम पांच दिन तक चलता है और आखिरी दिन कांटों की सेज पर लेटकर खत्म होता है।