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Sakat Chauth 2022: सकट चौथ आज- जानें व्रत का महत्‍व, चंद्रोदय समय और पूजा की विधि

Sankashti Chaturthi 2022 आज सकट चौथ है जिसे संकष्टी चतुर्थी तिलकुट चौथ माघी चौथ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है। महिलाएं अपने बच्चों के सुख समृद्धि स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए भगवान गणेश की पूजा करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 08:55 AM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 08:55 AM (IST)
Sakat Chauth 2022: सकट चौथ आज- जानें व्रत का महत्‍व, चंद्रोदय समय और पूजा की विधि
आज सकट चौथ है जिसे संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट चौथ, माघी चौथ भी कहा जाता है।

भोपाल, जेएनएन। आज माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है। इसे संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट चौथ, माघी चौथ भी कहा जाता है। इस दिन विघ्नेश्वर गणेश भगवान की विशेष पूजा की जाती है। महिलाएं इस दिन अपने बच्चों के सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए भगवान गणेश की पूजा करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं। संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रोदय के दौरान भगवान गणेश की पूजा विशेष महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रोदय के बाद विधि के अनुसार अर्घ्य देकर भगवान गणेश की पूजा करने से बच्चे के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उन पर आने वाली परेशानियां टल जाती हैं।

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पंडित विष्णु राजौरिया के अनुसार सनातन संस्कृति में माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है। चतुर्थी तिथि 21 जनवरी को सुबह 7:26 से शनिवार 22 जनवरी को सुबह 7:24 बजे तक रहेगी। रात्रि 8:39 बजे चंद्रोदय होगा। चतुर्थी तिथि में चंद्रोदय होने के कारण 21 तारीख को माताएं व्रत रखेंगी। पुराणों के अनुसार संकट चौथ के दिन भगवान गणेश के जीवन पर सबसे बड़ा संकट आया था। उन्हें एक हाथी का सिर लगाया गया था। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है। मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन इसकी कथा सुनने से गणपति की विशेष कृपा होती है।

जानें व्रत की पूजा विधि

इस दिन सूर्योदय से पहले ब्रह्ममुहूर्त में उठ स्नान करें। इस विशेष दिन पर पीले या लाल रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। स्नान से निवृत्त होने के बाद पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ कर लें, फिर भगवान गणेश की मूर्ति को लाल रंग के आसन पर स्थापित करें। भगवान गणेश के आसन के सामने घी का दीपक जलाएं, उन्हें सिंदूर से तिलक करें। इसके बाद भगवान को फल और फूल और मोदक और तिल के बने लड्डू चढ़ाएं। पूजा के दौरान दूर्वा की 21 गांठें गणेश जी को उनके अलग-अलग नामों का उच्चारण करके चढ़ाएं। चंद्रदेव को शाम के समय चंद्रोदय काल में अर्घ्य दें और उसके बाद व्रत तोड़ें।


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