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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पर जेल परिसर में उनकी यादों को सहेजने वाला संग्रहालय

आजाद हिंद फौज बनाकर अंग्रेजों को चुनौती देने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी को मनाई जाएगी। केंद्रीय जेल में संग्रहालय बनाया गया है। वे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दो बार जबलपुर की जेल में बंदी के रूप में रहे।

By Priti JhaEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 08:55 AM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 09:54 AM (IST)
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पर जेल परिसर में उनकी यादों को सहेजने वाला संग्रहालय
जेल परिसर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पर उनकी यादों को सहेजने वाला संग्रहालय

जबलपुर, जेएनएन। नेताजी की जयंती 23 जनवरी को है, आजाद हिंद फौज बनाकर स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को सीधे चुनौती देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस करोड़ों लोगों के दिलों की धड़कन हैं। नेताजी की 126वीं जयंती पर जेल परिसर में निर्मित नेताजी सुभाषचंद्र बोस संग्रहालय का लोकार्पण किया जा रहा है। इस संग्रहालय के माध्यम से लोगों को नेताजी के उन अनछुए पहलुओं के बारे में जानकारी प्रदान की जाएगी, जो नई पीढ़ी को प्रेरित कर सके।

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मालूम हो कि वे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दो बार जबलपुर की जेल में बंदी के रूप में रहे। अब वहां की सरकार ने जेल के उस हिस्से को संग्रहालय में बदल दिया है। नेताजी की जयंती 23 जनवरी को यह स्मारक आम आदमी के लिए लोकार्पित कर दिया जाएगा।

जानकारी हो कि यह देश में अपनी तरह का दूसरा संग्रहालय होगा। इससे पहले 2019 में नेताजी की याद में दिल्ली में एक संग्रहालय स्थापित किया गया था। नेताजी जबलपुर की इस केंद्रीय जेल में दो बार 1931 और 1933 में बंदी रहे। जिस काल-कोठरी में उन्होंने अपना स्याह वक्त गुजारा, उस काल-कोठरी को देश का हर नागरिक देख सकेगा। जिन बेड़ियों में यातनाओं के लिए नेताजी को जकड़ा जाता था, जो वर्दी उन्होंने गिरफ्तारी के वक्त पहनी थी, वो नई पीढ़ी के लिए आस्था और प्रेरणा का स्रोत बनेगी।

बताते हैं कि जबलपुर जेल में रात के वक्त उनको बेड़ियों में जकड़कर रखा जाता था। दिन में उनसे कोल्हू चलवाया जाता था। ओखली में मसाले कुटवाए जाते थे। उनसे आम मजदूरों की तरह गैंती चलवाई जाती थी। ऐसी सभी चीजों को जेल प्रशासन ने संरक्षित कर रखा है। इसी तरह से नेताजी की जेल-यात्रा के दौरान के अन्य सभी अभिलेख भी यहां लोग देख सकेंगे। बैरक को बिल्कुल वैसा ही स्वरूप देने का प्रयास किया है, जैसा नेताजी के समय था। यहां नेताजी की स्मृतियां देखने आने वालों से किसी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा।

मालूम हो कि पहले नेताजी की बैरक तक पहुंचने के लिए मुख्य द्वार से लगे दरवाजे से जाना पड़ता था, लेकिन अब इसे पूरी तरह से बंद किया जा रहा है। संग्रहालय तक पहुंचने के लिए एक नया द्वार और रास्ते का निर्माण हो चुका है। करीब सौ मीटर लंबे इस रास्ते के दोनों ओर फूल लगाए गए हैं। बैरक के बगल में ही नेताजी की प्रतिमा स्थापित है।

जानकारी के अनुसार संग्रहालय के पास ही स्थित एक बड़े हाल में नेताजी पर आधारित चित्र प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी। इसमें नेताजी के बचपन से लेकर आजाद हिंद फौज का संचालन करने तक की जीवंत झांकी प्रस्तुत होगी।


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