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Water Harvesting System: जहां लगाया पुरातन पद्धति का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, वहां 250 से 73 फीट पर आ गया पानी

Madhya Pradesh पंकज ने रेन वाटर प्यूरीफिकेशन एंड रीचार्जिग सिस्टम तैयार किया। भवन की छत से बरसात का पानी जमीन तक लाने वाले पाइप से यह सिस्टम फिट किया जाता है। इसका निकास द्वार बोरिंग से जुड़ा होता है जिसमें बरसात का पानी शुद्ध होकर भूजल स्तर को बढ़ाता है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Published: Sat, 04 Jun 2022 06:13 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jun 2022 06:13 PM (IST)
Water Harvesting System: जहां लगाया पुरातन पद्धति का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, वहां 250 से 73 फीट पर आ गया पानी
जहां लगाया पुरातन पद्धति का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, वहां 250 से 73 फीट पर आ गया पानी। फाइल फोटो

ग्वालियर, प्रियंक शर्मा। मध्य प्रदेश के ग्लालियर में पुरातन पद्धति से बनाए गए वाटर हार्वेस्टिम सिस्टम ने सुखद परिणाम देना शुरू कर दिया है। सूखे बोरवेल न सिर्फ पानी देने लगे हैं बल्कि जल स्तर में अप्रत्याशित उछाल आया है। इस वाटर हार्वेस्टिम सिस्टम को ग्वालियर के युवा पंकज तिवारी ने तैयार किया है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जल प्रहरी व वाटर हीरो के सम्मान से सम्मानित पंकज तिवारी का पुरातन पद्धति पर आधारित वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम देश में एक हजार से अधिक स्थानों पर लगाया गया है। जिन जगहों पर यह सिस्टम लगा हुआ है, वहां भूमिगत जलस्तर बढ़ गया है। ग्वालियर में एक स्थान पर 250 फीट की जगह वाटर लेवल 73 फीट पर आ गया है।

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ऐसे काम करता है सिस्टम

सदियों पुरानी पद्धति से प्रेरणा लेकर पंकज ने रेन वाटर प्यूरीफिकेशन एंड रीचार्जिंग सिस्टम तैयार किया। इसका पेटेंट उनके नाम पर है। भवन की छत से बरसात का पानी जमीन तक लाने वाले पाइप के साथ यह सिस्टम फिट किया जाता है। सिस्टम का निकास द्वार नजदीकी बोरिंग से जुड़ा होता है, जिसमें बरसात का पानी शुद्ध होकर भूजल स्तर को बढ़ाता है। बरसात के पानी को बोरिंग तक पहुंचाने के लिए पाइपनुमा सिस्टम बनाया है। इसमें चार चैंबर हैं। पहले चैंबर में कोयले की परत बिछाई गई है। इसमें बरसात का पानी सीधे पहुंचता है। दूसरे चैंबर की चौड़ाई अपेक्षाकृत कम है, जिसमें चारकोल की परत से पानी का दूसरी बार शुद्घिकरण किया जाता है। तीसरा चैंबर और संकरा हो जाता है। इसमें संगमरमर के टुकड़ों से पानी में मौजूद मोटी गंदगी दूर हो जाती है। चौथा चेंबर सबसे पहले चेंबर जितना चौड़ा होता है और इसमें कंकड़ की परतें होती हैं। चेंबर की चौड़ाई इस कारण कम की जाती है, ताकि बरसात के पानी का दबाव कम होता जाए और पानी का शुद्धीकरण धीरे-धीरे हो सके।

मिले बेहतर परिणाम

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय में सभा कक्ष के पीछे सूखी बोरिंग में अब 102 फीट पर पानी है। इसी तरह महाराजपुरा थाने में 150 फीट गहरे सूखे बोर में पांच फीट गहराई पर पानी मिलने लगा है। इसका टोटल डिजाल्व सालिड (टीडीएस) स्तर 158 और पीएच स्तर 9.5 है, जो पेयजल मानकों पर खरा है। आरोग्यधाम अस्पताल में भी सूखे बोरवेल में अब पानी आ गया है। बोरवेल में मोटर पड़ी होने के कारण भूजल स्तर नापा नहीं जा सका।

यहां भी बढ़ाया जलस्तर

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रैपिड एक्शन फोर्स परिसर में भी यह सिस्टम लगाया गया था। अब यहां भी लगभग 100 फीट पर पानी उपलब्ध है।

200 रुपये सालाना रख-रखाव का खर्चा

पंकज के इस सिस्टम के रखरखाव का खर्च सिर्फ 200 रपये सालाना है। इसमें साल में एक बार सिर्फ कोयला और चारकोल को बदला जाता है। ढाई-ढाई किलो कोयला व चारकोल खरीदकर चेंबरों में डाला जाता है। बाकी के दो चेंबरों में मौजूद संगमरमर के टुकड़ों और कंकड़ों को घिसकर साफ कर लिया जाता है।

यहां भी लगेगा

पहली बार विभागीय भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग कराई गई। इसमें सभी पिछले दिनों हमने इसे जांचा था, तो इसमें 73 फीट पर पानी है और संस्थान का औसतन जल स्तर 120 फीट पर है। हम इसे अपने अन्य केंद्रों पर भी लगवाने का विचार कर रहे हैं।

- प्रो. आलोक शर्मा, डायरेक्टर, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रैवल- टूरिज्म एंड मैनेजमेंट (आइआइटीटीएम)। 


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