खास जीन के कारण कुछ लोगों में नहीं दिखते कोरोना के लक्षण, टीकाकरण की प्राथमिकताएं तय करने में मिल सकती है मदद

यूके की इनोवेशन एजेंसी इनोवेट यूके द्वारा वित्त पोषित इस अध्ययन में बिना लक्षण वाले 69 लोगों की तुलना उस समुदाय के 49 रोगियों से की गई जिनमें कोरोना के गंभीर लक्षण विकसित हुए थे। ये लोग सांस लेने में दिक्कत के कारण अस्पताल में भर्ती कराए गए थे।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Sun, 06 Jun 2021 08:17 PM (IST) Updated:Sun, 06 Jun 2021 08:17 PM (IST)
खास जीन के कारण कुछ लोगों में नहीं दिखते कोरोना के लक्षण, टीकाकरण की प्राथमिकताएं तय करने में मिल सकती है मदद
ब्रिटिश विज्ञानियों ने अध्ययन में पता लगाई एसिम्टोमेटिक मरीजों के पीछे की वजह

लंदन, एजेंसी। कोरोना की चपेट में आए कुछ लोगों पर बीमारी का कम असर होने या उनके एसिम्टोमेटिक बने रहने का पता लग गया है। इसके लिए अनुवांशिकी कारण जिम्मेदार है। एक ताजा रिसर्च के अनुसार जिन लोगों में एक खास किस्म का जीन एचएलए डीआरबी1-04-01 (HLA-DRB1*04:01) पाया गया उनमें कोरोना से मुकाबला करने की अतिरिक्त क्षमता देखी गई। ऐसे लोगों का शरीर न केवल कोरोना से आसानी से पार पा लेता है बल्कि उनमें इस बीमारी के लक्षण भी बहुत कम देखने को मिलते दिखते हैं।

इस रिसर्च के नतीजे हमें एक ऐसे अनुवांशिक परीक्षण की ओर ले जा सकते हैं जिससे यह संकेत मिल सकता है कि हमें भविष्य में टीकाकरण के लिए किस तर के लोगों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

ब्रिटेन की न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के ट्रांसलेशनल एंड क्लिनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़े डा कार्लोस एचेवरिया के नेतृत्व में एक वैज्ञानिक और चिकित्सा दल ने अपने अध्ययन में पाया कि कोरोना की चपेट में आकर जो लोग एसिम्टोमैटिक बने रहे या जिनमें बीमारी का कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा उनमें यह खास किस्म का जीन सामान्य लोगों की तुलना में तीन गुना तक अधिक पाया गया। इससे साफ होता है कि यह खास जीन उन लोगों को कोरोना से कुछ स्तर तक सुरक्षा देता है।

यूके की इनोवेशन एजेंसी, इनोवेट यूके द्वारा वित्त पोषित इस अध्ययन में बिना लक्षण वाले 69 लोगों की तुलना उस समुदाय के 49 रोगियों से की गई जिनमें कोरोना के गंभीर लक्षण विकसित हुए थे। ये लोग सांस लेने में दिक्कत के कारण अस्पताल में भर्ती कराए गए थे।

एचएलए जीन के अध्ययन के लिए अगली पीढ़ी की जीन सिक्वेंशिन मशीनों का इस्तेमाल किया गया। इस अध्ययन की रिपोर्ट एचएलए पत्रिका में प्रकाशित हुई है। अध्ययन दल का मानना है कि यह अनुवंशिक प्रतिरोध का पहला स्पष्ट प्रमाण है। यह जीन भौगोलिक परिस्थितियों (अक्षांश-देशांतर) पर भी निर्भर है। उत्तर और पश्चिम यूरोप में बड़ी संख्या में ऐसे लोग पाए गए जिनमें यह विशिष्टिता देखी गई। ब्रिटेन में हर पांच यूरोपीय लोगों में कम से कम एक व्यक्ति में यह खासियत पाई गई।

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