2030 तक भारत में 17 लाख बच्चे हो सकते हैं निमोनिया के शिकार

विश्व निमोनिया दिवस पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक निमोनिया की चपेट में आकर 2030 तक भारत में 17 लाख बच्चों की जान जा सकती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 13 Nov 2018 09:11 AM (IST) Updated:Tue, 13 Nov 2018 09:11 AM (IST)
2030 तक भारत में 17 लाख बच्चे हो सकते हैं निमोनिया के शिकार
2030 तक भारत में 17 लाख बच्चे हो सकते हैं निमोनिया के शिकार

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ब्रिटेन के अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन सेव द चिल्ड्रन द्वारा 12 नवंबर यानी विश्व निमोनिया दिवस पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक निमोनिया की चपेट में आकर 2030 तक भारत में 17 लाख बच्चों की जान जा सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक संक्रमण के आसान इलाज के बावजूद भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य जैसे देशों में निमोनिया से होने वाली मौतों का आंकड़ा सबसे ज्यादा है। वहीं दुनिया में 2030 तक पांच साल से कम उम्र के 1.10 करोड़ बच्चों की जान इस संक्रमण की वजह से जा सकती है।

आसान उपचार

मलेरिया, दस्त और खसरा की तुलना में दुनिया में बच्चों की सबसे अधिक मौतें निमोनिया की वजह से होती हैं। नियमित टीकाकरण, पोषक आहार और उपचार से निमोनिया संक्रमण की रोकथाम संभव है और इससे चार लाख मौतों को टाला जा सकता है।

जानकारी ही बचाव

निमोनिया के प्रति लोग सचेत नहीं है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निमोनिया को लेकर कोई अभियान या कार्यक्रम नहीं चलाए गए हैं। लिहाजा लोग इस बीमारी की गंभीरता को सजग नहीं है। लिहाजा आसानी से इलाज उपलब्ध होने के बावजूद हर साल लाखों बच्चे असमय काल-कवलित हो रहे हैं।

तो बच सकती हैं मासूम जानें

पांच साल से कम उम्र के 90 फीसद बच्चों में से 6.10 लाख जानें समय पर टीकाकरण से बचाई जा सकती है। सस्ती एंटीबॉयोटिक से 19 लाख जानें बचाई जा सकती हैं। पोषक आहार से 25 लाख जानें बचाई जा सकती हैं। अगर तीनों आयामों पर ध्यान दिया जाए तो 2030 तक वैश्विक स्तर पर 41 लाख मौतों को टाला जा सकेगा।

2030 है लक्ष्य

अमेरिका की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार लाइव्स सेव्ड टूल नामक मॉडल के आधार पर 2030 तक निमोनिया से होने वाली मौतों का पूर्वानुमान निकाला गया है। वैश्विक स्वास्थ्य और बच्चों की असामयिक मृत्यु में रोकथाम के लिए 2030 को लक्ष्य रखा गया है।

निमोनिया संक्रमण से बचाव के लिए बहुत कम दाम में दवाएं उपलब्ध हैं लेकिन लापरवाही और उपचार के अभाव में हर साल तकरीबन दस लाख बच्चों की मौत हो जाती है।

पॉल रोनाल्ड, सीईओ

(सेव द चिल्ड्रन, ऑस्ट्रेलिया) 

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