भारतीय नदियों में जीवाणुओं की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के तरीकों की होगी खोज, नहीं हो सकेगा अब जहरीला पानी

यह शोध शुरू होने की जानकारी बर्मिघम यूनिवर्सिटी ने दी है। इस शोध में इस ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के अलावा आइआइटी हैदराबाद के विशेषज्ञ भी हिस्सा लेंगे।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Thu, 06 Aug 2020 07:52 PM (IST) Updated:Thu, 06 Aug 2020 07:52 PM (IST)
भारतीय नदियों में जीवाणुओं की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के तरीकों की होगी खोज, नहीं हो सकेगा अब जहरीला पानी
भारतीय नदियों में जीवाणुओं की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के तरीकों की होगी खोज, नहीं हो सकेगा अब जहरीला पानी

लंदन, प्रेट्र। भारत और ब्रिटेन के विशेषज्ञ मिलकर भारतीय नदियों और नहरों में पड़ रहे कीटनाशकों के असर का अध्ययन करेंगे। ये कीटनाशक कारखानों से बहाए जाने वाले अपशिष्ट में होते हैं। ये पदार्थ नदी और नहरों में ऑक्सीजन की मात्रा कम कर देते हैं जिसके कारण उनका परिस्थितिकी तंत्र चौपट हो जाता है। इसके चलते जल में रहने वाले तमाम तरह के जीव खत्म हो जाते हैं। इनमें लाभदायक जीव भी शामिल होते हैं। भारत में ज्यादातर नदियों-नहरों का पानी प्रदूषित हो गया है और वह बीमारियां पैदा करने की वजह बन गया है।

यह शोध शुरू होने की जानकारी बर्मिघम यूनिवर्सिटी ने दी है। इस शोध में इस ब्रिटिश यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के अलावा आइआइटी हैदराबाद के विशेषज्ञ भी हिस्सा लेंगे। विशेषज्ञों का यह दल 12 लाख पाउंड (1.15 करोड़ रुपये) के खर्च से नदियों में मौजूद जीवाणुओं में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के तरीकों की खोज करेगा। इससे नदियों का परिस्थितिकी तंत्र बरकरार रह सकेगा।

नदियों के पानी को जहरीला बनने से रोकने में सहायक साबित होगा

शोध कार्य का नेतृत्व कर रहे बर्मिघम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन केफ्ट ने कहा कि हम नहीं जानते कि कितनी मात्रा में वातावरण में कीटाणुनाशक आ रहे हैं। ..और वर्षा या किसी अन्य स्रोत से पानी आने पर वह उसमें किस तरह से घुल जाते हैं। हम अपने शोध में नदियों के इन जीवाणुओं को बचाए रखने का तरीका तलाशेंगे, जिससे वे नदियों के पानी को जहरीला बनने से रोकने में सहायक साबित हों।

हर साल 58 हजार बच्चे गवां देते हैं जान 

नदियों और नहरों का यह प्रदूषित पानी ही सिंचाई के लिए खेतों में प्रयुक्त होता है। इसका नतीजा है कि भारत में हर साल 58 हजार बच्चे सुपर बग के संक्रमण से जान गंवा देते हैं। जबकि यूरोप में इस कारण 28 हजार से 38 हजार लोग समय पूर्व मृत्यु के शिकार हो जाते हैं।

chat bot
आपका साथी