जी-7 ने किया कोरोना वायरस के खिलाफ दुनियाभर में टीकाकरण करने और जलवायु परिवर्तन रोकने का वादा

डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि दुनिया की कम से कम 70 प्रतिशत आबादी के टीकाकरण के लिए और 11 अरब और खुराकों की जरूरत है। जी-7 समूह के नेताओं के बीच जलवायु परिवर्तन लोकतांत्रिक मूल्यों और कोरोना वायरस महामारी से लड़ने को लेकर शिखर सम्मेलन में शानदार सामंजस्य रहा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 11:52 PM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 07:01 AM (IST)
जी-7 ने किया कोरोना वायरस के खिलाफ दुनियाभर में टीकाकरण करने और जलवायु परिवर्तन रोकने का वादा
दुनिया की 70 प्रतिशत आबादी के टीकाकरण के लिए और 11 अरब खुराकों की जरूरत है: डब्ल्यूएचओ।

कार्बिस बे (इंग्लैंड), एजेंसियां। दुनिया के सबसे अमीर सात देशों के नेताओं ने कोरोना वायरस के खिलाफ दुनियाभर में टीकाकरण करने, जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अपने हिस्से की बड़ी राशि और तकनीक देने के प्रभावशाली वादे किए हैं। समूह ने टीके की एक अरब से ज्यादा खुराकें मुहैया कराने का संकल्प लिया है, इनमें 50 करोड़ खुराकें अमेरिका दान करेगा।

'कोवैक्स' पहल: जानसन ने कहा- दुनिया को टीकों की आपूर्ति की जाएगी

शिखर सम्मेलन के समापन पर मेजबान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन ने कहा कि देशों को सीधे और अंतरराष्ट्रीय 'कोवैक्स' पहल, दोनों तरीकों से टीकों की आपूर्ति की जाएगी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि कोरोना से दुनिया की लड़ाई में मदद लगातार एवं लंबे समय तक चलने वाली परियोजना है।

जी-7 ने टीके की खुराकें दान करने का लिया संकल्प 

जी-7 नेताओं के बीच स्पष्ट रूप से सहमति है कि टीके की खुराकें दान करने की उनकी प्रतिबद्धता खत्म नहीं होगी। इस प्रतिबद्धता के बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि दुनिया की कम से कम 70 प्रतिशत आबादी के टीकाकरण के लिए 11 अरब और खुराकों की जरूरत है।

चीन से बेहतर दिखाने की कोशिश

जी-7 नेताओं ने शिखर बैठक से यह दिखाने की कोशिश की कि महामारी के कारण मची उथल-पुथल और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अस्थिर स्वभाव के बाद अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग फिर बढ़ने लगा है। इन नेताओं ने संदेश दिया कि अमीर लोकतांत्रिक देशों का यह समूह गरीब देशों के लिए अधिनायकवादी चीन के मुकाबले बेहतर मित्र हैं।

छाया रहा ब्रेक्जिट का मसला

दक्षिण पश्चिम इंग्लैंड के तटीय शहर में हुए इस सम्मेलन पर ब्रेक्जिट के बादल छाए रहे। यूरोपीय संघ के नेता और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने ब्रिटेन-यूरोपीय संघ व्यापार नियमों पर चिंता जताई जिसकी वजह से उत्तरी आयरलैंड में तनाव का माहौल है। वैसे सम्मेलन में कुल मिलाकार माहौल सकारात्मक रहा। नेता कैमरे के सामने मुस्कुराते हुए नजर आए।

ब्रिटिश महारानी ने दिया भोज

पिछली बार जी-7 सम्मेलन 2019 में फ्रांस में हुआ था। पिछले साल यह सम्मेलन अमेरिका में होना था, लेकिन महामारी की वजह से नहीं हो पाया। सम्मेलन की पहली शाम महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने भोज दिया जिसमें सभी नेता बातचीत करते नजर आए।

अमेरिका के लौटने से मित्र देशों में राहत

सम्मेलन में साफ तौर पर देखा गया कि अमेरिका की वापसी से उसके मित्र देश राहत महसूस कर रहे हैं। ट्रंप प्रशासन की 'अमेरिका पहले' की नीति को छोड़कर अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय मामलों में वापसी की है। बाइडन ने कहा, 'अमेरिका वापस आ गया है और दुनिया के लोकतंत्र साथ हैं।' फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने कहा, 'बाइडन को इस क्लब का हिस्सा देखकर अच्छा लगा है और वह सहयोग के इच्छुक हैं।' सम्मेलन में भारत, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया को बतौर मेहमान आमंत्रित किया गया था।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के न्यूनतम कर को लेकर सहमति

जी-7 देशों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर वैश्विक न्यूनतम कर का समर्थन किया और सहमति जताई कि वे चीन की बाजार विरोधी आíथक नीतियों से मुकाबला के लिए मिलकर काम करेंगे। अमेरिका ने न्यूनतम कर की पैरवी की।

जानसन ने जी-7 में सामंजस्य को लोकतंत्र के लिए वरदान बताया

ब्रिटिश प्रधानमंत्री जानसन ने कहा है कि जी-7 समूह के नेताओं के बीच जलवायु परिवर्तन, लोकतांत्रिक मूल्यों और कोरोना वायरस महामारी से लड़ने को लेकर शिखर सम्मेलन में शानदार सामंजस्य रहा। जानसन ने कहा कि धनी लोकतंत्रों का समूह बाकी दुनिया के लिए लोकतंत्र और मानवाधिकारों के मूल्य का प्रदर्शन करेगा और दुनिया के सबसे गरीब देशों को खुद को इस तरह से विकसित करने में मदद करेगा जो स्वच्छ, हरित और टिकाऊ हो।

कोरोना प्रभावित देशों के लिए 100 अरब डालर के आवंटन पर मतभेद

कोरोना संकट से जूझ रहे देशों की मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 100 अरब डालर (7.20 लाख करोड़ रुपये) आवंटित करने के प्रस्ताव पर जी-7 देशों में मतभेद सुलझाने की कोशिश होती रही। बताते हैं कि जर्मनी और इटली ने इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया है।

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