ब्रिटेन में होने वाला जलवायु शिखर सम्मेलन पर कोरोना वायरस का ग्रहण, अहम बैठक टली

इस शिखर सम्‍मलेन के लिए अभी किसी नई तारीख की घोषणा नहीं की गई है। यह कहा गया है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र की जलवायु परिवर्तन के लिए गठित टीम इस पर निर्णय लेगी।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Wed, 27 May 2020 03:50 PM (IST) Updated:Wed, 27 May 2020 03:56 PM (IST)
ब्रिटेन में होने वाला जलवायु शिखर सम्मेलन पर कोरोना वायरस का ग्रहण, अहम बैठक टली
ब्रिटेन में होने वाला जलवायु शिखर सम्मेलन पर कोरोना वायरस का ग्रहण, अहम बैठक टली

लंदन, एजेंसी। कोरोना महामारी के चलते 2021 मे होने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु शिखर सम्मेलन काे भी टाल दिया गया है। यह शिखर सम्‍मेलन 2021 में ब्रिटेन की मेजबानी में प्रस्‍तावित था। दो सप्‍ताह तक चलने वाले इस शिखर सम्‍मेलन में सौ से अधिक देशों के प्रतिनिधियों को भाग लेना था। यह शिखर सम्‍मेलन इस लिहाज से उपयोगी था, क्‍योंकि इस बार ग्‍लोबल वार्मिंग को रोकने लिए प्रमुख देशों द्वारा एक संकल्‍प लेने की प्रक्रिया इसमें शामिल थी। दुनिया के नेता ग्‍लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए मिलकर शपथ लेते। इस शिखर वार्ता में एक नई पहल की उम्‍मीद की जा रही थी। यह उम्‍मीद की जा रही थी कि पेरस समझौते पर कोई ठोस कदम लिया जाएगा। 

गुरुवार को संयुक्‍त राष्‍ट्र की टीम के सदस्‍य बैठक करेंगे

हालांकि, इस शिखर सम्‍मलेन के लिए अभी किसी नई तारीख की घोषणा नहीं की गई है। यह कहा गया है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र की जलवायु परिवर्तन के लिए गठित टीम इस पर निर्णय लेगी। उम्‍मीद है कि गुरुवार को टीम के सदस्‍य बैठक करेंगे। इस बैठक में ब्रिटेन के प्रस्‍ताव पर विचार किया जाएगा। सदस्‍य इसके बाद ही किसी नई तारीख का ऐलान करेंगे।

क्‍या है पेरिस समझौता 

जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में पेरिस समझौता काफी अहम माना जाता है। जलवायु परिवर्तन और उसके नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिये वर्ष 2015 में दुनिया के लगभग प्रत्येक देश द्वारा अपनाया गया था। इसका मकसद वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है, ताकि इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके। इसके साथ ही आगे चलकर तापमान वृद्धि को और 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रत्येक देश को ग्रीनहाउस गैसों के अपने उत्सर्जन को कम करना होगा।  यह समझौता विकसित राष्ट्रों को उनके जलवायु से निपटने के प्रयासों में विकासशील राष्ट्रों की सहायता हेतु एक मार्ग प्रदान करता है।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस समझौते पर जताई थी आपत्ति 

वर्ष 2016 के चुनाव प्रचार के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस समझौते को अमेरिका के हितों के खिलाफ बताया था। उन्‍होंने अपने चुनावी वादों में इस बात पर ज़ोर दिया था कि यदि वे राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो अमेरिका को इस समझौते से अलग करना उनकी प्राथमिकता होगी। राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद जून 2017 में उन्होंने अमेरिका के इस समझौते से अलग होने की घोषणा की लेकिन तब तक पेरिस समझौते को तीन वर्ष पूरे नहीं हुए थे। पेरिस समझौते में की गई प्रतिबद्धता के अनुसार अमेरिका को अपने 2005 के उत्सर्जन स्तर को 2025 तक घटाकर 26-28 फीसद तक कम करना था।

पेरिस समझौते का इतिहास

वर्ष 2015 में 195 देशों ने फ्रांस की राजधानी पेरिस में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से जलवायु परिवर्तन पर एक नए वैश्विक समझौते को संपन्न किया। जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करने की दृष्टि से एक प्रभावी कदम था। वर्तमान में पेरिस समझौते में कुल 197 देश हैं। सीरिया इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाला आखिरी देश था। इनमें से 179 देशों ने इस समझौते को औपचारिक रूप से अपनी अनुमति दी है, जबकि रूस, तुर्की और ईरान जैसे कुछ प्रमुख देश अभी तक समझौते में औपचारिक रूप से शामिल नहीं हुए हैं।

जलवायु परिवर्तन के खतरे

बता दें जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर समस्‍या बन चुका है। आधुनिक समाज के लिए इसकी चुनौती से इंकार नहीं किया जा सकता है। मौजूदा समय में यह दुनिया भर के सभी क्षेत्रों को यह प्रभावित कर रहा है। समुद्री जल के बढ़ते स्तर और मौसम के बदलते पैटर्न ने हज़ारों लोगों के जन जीवन को प्रभावित किया है। तमाम प्रयासों के बावजूद भी दुनियाभर के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि जारी है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आने वाले कुछ वर्षों में पृथ्वी की सतह का औसत तापमान में काफी तेजी से इजाफा होगा। तापमान में वृद्धि के दुष्प्रभाव भी सामने आएंगे।

जलवायु  परिवर्तन से खाद्य उत्पादन पर संकट बढ़गा। समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है और इससे प्राकृतिक आपदाओं में तेजी आएगी। कई देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र जैसे कृषि और पर्यटन प्रभावित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त विश्व के कुछ हिस्सों में अनवरत सूखे की स्थिति बनती जा रही है और वह पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं।   

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