रूस को था तालिबान की जीत का इंतजार ! सत्ता परिवर्तन के बाद दिए सकारात्मक संकेत

अमेरिका ब्रिटेन समेत कई अन्य देशों के विपरीत रूस ने कहा कि वह काबुल में अपने दूतावास को खाली नहीं करेगा। रूसी राजदूत ने भी आनन-फानन में तालिबान से मुलाकात कर ली और इसे काबुल में हुई सकारात्मक बातचीत करार दिय

By Manish PandeyEdited By: Publish:Thu, 19 Aug 2021 02:37 PM (IST) Updated:Thu, 19 Aug 2021 02:37 PM (IST)
रूस को था तालिबान की जीत का इंतजार ! सत्ता परिवर्तन के बाद दिए सकारात्मक संकेत
आधिकारिक रूप से उसने तालिबान को आतंकी संगठन ही करार दिया है

मास्को, एपी। तालिबान ने जब बिना किसी अड़चन के अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया तो रूस भी तेजी से बदलते घटनाक्रम को देखते हुए इस हिंसक संगठन के साथ जमीनी स्तर पर संबंध बनाने की ओर काम कर रहा है। हालांकि आधिकारिक रूप से उसने अभी भी तालिबान को आतंकी संगठन ही करार दे रखा है। लेकिन वह लंबे समय से इस आतंकी संगठन से बातचीत करता रहा है और अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन के उसने सकारात्मक संकेत ही दिए हैं।

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इसी हफ्ते कहा था कि रूप को तालिबान को अफगानिस्तान के नए शासक के रूप में मान्यता देने की कोई जल्दी नहीं है। हालांकि तालिबान ने यह उत्साहवर्धक संदेश दिए हैं कि वह सरकार में अन्य राजनीतिक दलों को शामिल करेंगे और लड़कियों को भी स्कूल जाने की अनुमति देंगे।

तालिबान का नाम आतंकियों की सूची में रूस ने वर्ष 2003 में डाला था। लेकिन रूस ने अभी तक उसका नाम इस सूची से हटाने की कोई कोशिश नहीं की है। रूसी कानून के मुताबिक ऐसे संगठनों से किसी भी तरह का संपर्क दंडनीय है। लेकिन विदेश मंत्रालय ने इसके विपरीत सवालों के जवाब दिए हैं। उनका कहना है कि अफगानिस्तान में स्थिरता कायम करने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के तहत तालिबान से उनका लेना-देना बनता है।

वैसे कई अन्य देशों के विपरीत रूस ने कहा कि वह काबुल में अपने दूतावास को खाली नहीं करेगा। रूसी राजदूत ने भी आनन-फानन में तालिबान से मुलाकात कर ली और इसे काबुल में हुई सकारात्मक बातचीत करार दिया।

अफगानिस्तान में क्रेमलिन के दूत जामिर काबोलोव ने इस हफ्ते की शुरुआत में कहा था कि अगर उन्हें सत्ता पूरी तरह से नहीं मिली तो भी हम उन्हें ऐसी ताकत के रूप में देखते हैं जो अफगानिस्तान में भविष्य में अहम भूमिका निभाएंगे। इसीतरह काबुल में रूस के राजदूत दिमित्री जिरनोव ने भी तालिबान को वाजिब लोग कह कर सराहा है। उन्होंने कहा कि तालिबान ने उनके दूतावास के सुरक्षा की गारंटी दी है।

उल्लेखनीय है कि सोवियत संघ ने दस साल तक अफगानिस्तान में अपना दखल रखा और उसकी सेनाएं वहां से वर्ष 1989 में लौंटीं। तब से अफगानिस्तान के साथ अंतर्राष्ट्रीय बातचीत में रूस को अहम माना जाता रहा है। उसने तब से तालिबान के साथ कई स्तर पर मुलाकातें जारी रखी हैं और द्विपक्षीय व बहुपक्षीय बैठकें की हैं।

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