तालिबान का तरफदार रूस भी काबुल से निकालने लगा अपने नागरिक, चार विमानों से लाए गए 500 से ज्यादा लोग
रूस के रुख में यह बदलाव गंभीर खतरे का संकेत भी दे रहा है। पिछले हफ्ते ही अफगानिस्तान में रूस के राजदूत ने तालिबान की सराहना की थी और कहा था कि आतंकी संगठन ने पहले की सरकार की तुलना में काबुल को ज्यादा सुरक्षित बनाया है।
मास्को, रायटर। अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को लेकर रूस के रुख में बदलाव आया है। अब तक तालिबान की तारीफ करने वाला रूस राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आदेश पर काबुल से अपने नागरिकों को निकालने लगा है। बुधवार को सेना के चार विमानों से पांच सौ से ज्यादा लोगों को निकाला गया। यही नहीं अफगानिस्तान के पड़ोसी देश ताजिकिस्तान में उसने अपने टैंक भी तैनात कर दिए हैं और युद्धाभ्यास कर रहा है।
रूस के रुख में यह बदलाव गंभीर खतरे का संकेत भी दे रहा है। पिछले हफ्ते ही अफगानिस्तान में रूस के राजदूत ने तालिबान की सराहना की थी और कहा था कि आतंकी संगठन ने पहले की सरकार की तुलना में काबुल को ज्यादा सुरक्षित बनाया है। राजदूत का यह बयान इसलिए भी हैरान करने वाला था, क्योंकि रूस ने तालिबान को एक आतंकी संगठन माना है।
इससे उलट बुधवार को रूस ने कहा कि अफगानिस्तान में हालात बहुत ही तनावपूर्ण और गंभीर हैं। तालिबान के साथ ही साथ इस्लामिक स्टेट की मौजूदगी से आतंकी हमले का खतरा भी बढ़ा है।
नागरिकों की निकासी पर रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि 500 से ज्यादा लोगों को निकाला गया है, जिनमें रूस के साथ ही बेलारूस, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और उक्रेन के नागरिक शामिल हैं।
सैन्य हस्तक्षेप से भी इन्कार :
अफगानिस्तान की तरफ से किसी भी तरह के खतरे से निपटने के लिए रूस ने ताजिकिस्तान में अपनी सैन्य क्षमता भी बढ़ाई है। उसके रक्षा मंत्रालय ने कहा कि ताजिकिस्तान के पहाड़ों पर दूर तक मार करने वाले टी-72 टैंकों को तैनात किया गया है और महीने भर चलने वाला युद्धाभ्यास शुरू किया है। रूस ने साफ कहा है कि उसने अफगानिस्तान में 1980 के आस पास तत्कालीन सोवियत संघ के सैन्य हस्तक्षेप से सबक लेते हुए मौजूदा समय में काबुल में अपनी सेना को नहीं भेजने का फैसला भी किया है।
आखिर करना क्या चाहता है रूस?
रूस के इस रुख में बदलाव इसलिए बेहद हैरान करने वाला है, क्योंकि बुधवार को ही पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच अफगानिस्तान को लेकर लंबी बातचीत हुई थी और दोनों ने साथ मिलकर वहां अपना प्रभाव जमाने की बात कही थी। चीनी अखबार पीपुल्स डेली की रिपोर्ट के मुताबिक पुतिन ने चीनी राष्ट्रपति से कहा था कि वह अफगानिस्तान को उन विदेशी सेनाओं से बचाना चाहते हैं जो उसमें दखलअंदाजी कर उसे नष्ट कर रहे हैं। चीन और रूस ने काबुल में अपने दूतावास भी बंद नहीं किए हैं।
अमेरिका-नाटो ने अब तक 70 हजार से ज्यादा नागरिक निकाले
अमेरिकी और नाटो सैनिकों की अफगानिस्तान से निकासी की आखिरी तारीख 31 अगस्त करीब आने के साथ ही पश्चिमी देशों में काबुल से अपने नागरिकों को निकालने में आपाधापी बढ़ गई है। अमेरिका और नाटो देशों ने अब तक 70 हजार से ज्यादा लोगों को बाहर निकाला है, जिनमें इनके अपने नागरिकों के साथ ही सहयोगी अफगान भी शामिल हैं। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया समेत तमाम देश निकासी अभियान को तेज कर रहे हैं।
अमेरिका को आत्मघाती हमले का डर
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन लगातार कह रहे हैं कि जितनी जल्दी हम अपने नागरिकों को निकाल लेंगे, उतना ही हमारे लिए बढ़िया होगा। अमेरिका के एक अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि काबुल एयरपोर्ट पर आइएस की तरफ से आत्मघाती हमले के खतरे ने चिंता बढ़ा दी है।