जानें- मौजूदा जर्मनी और यूरोप के एकीकरण में किसने निभाई थी अहम जिम्मेदारी, भारत से भी थी घनिष्ठता
सोवियत संघ के अंतमि राष्ट्रपति के रूप में मिखाइल गोर्बाचोव का नाम बड़ी इज्जत के साथ लिया जाता है। उन्होंने वर्षों से विभाजन की मार झेल रहे जर्मनी को एक करने और यूरोप को एकजुट करने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। जर्मनी के जिस रूप को आज हम देखते हैं 1990 से पहले वो ऐसा था। उससे पहले ये पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी कहा जाता था। इन दोनों के बीच एक मजबूत दीवार थी जिसका निर्माण 13 अगस्त 1961 को शुरु हुआ था, जिसे सोवियत संघ के निकिता खुश्र्चेक का समर्थन हासिल था। 28 वर्षों तक इस दीवार ने लोगों को एक दूसरे से मिलने और आने जाने से रोके रखा था।
दरअसल, जर्मनी का विभाजन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हुआ था। विभाजन के साथ ही लाखों की तादाद में लोगों ने पश्चिमी जर्मनी का रुख किया था। पूर्वी जर्मनी को इसकी आर्थिक और राजनीतिक कीमत भी चुकानी पड़ी थी। इसको देखते हुए पश्चिमी जर्मनी का भी रुख सख्त हुआ और बाद में यहां पर गैरकानूनी रूप से सीमा पार करने वालों को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। सीमा पर लगे सुरक्षाकर्मियों को ऐसे लोगों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए। 1980 में सोवियत संघ के पतन के साथ ही यहां पर भी बदलाव की बयार बही। सीमा पर नियमों में ढील दी गई और नवंबर 1989 को ये दीवार ढहा दी गई गई। इसके साथ ही जर्मनी फिर से एक हो गया।
इतिहास में दर्ज हो चुकी ये घटना केवल यहीं पर खत्म नहीं हुई बल्कि यूरोप के सबसे बड़े इस देश के एक होने से यूरोप के एकीकरण का भी रास्ता साफ हो गया। इस तरह से उस यूरोप और जर्मनी का उदय हुआ जिसको हम आज देखते हैं। 1990 में मास्त्रिख संधि द्वारा मौजूदा यूरोपीय संघ की नींव पड़ी थी। मौजूदा यूरोपीय संघ में 27 राष्ट्र शामिल हैं। इसके बाद भी इनकी एक संसद, एक मुद्रा और एक समान ही नियम भी हैं। इस पूरी कवायद में जिस शख्स से सबसे अहम जिम्मेदारी निभाई थी उनका नाम था मिखाइल गोर्बाचोव। उनके बिना ये सबकुछ काफी हद तक नामुकिन था। वो सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति थे। उन्होंने जर्मन चांसलर हेल्मेट कोल के साथ मिलकर इस काम को अंजाम तक पहुंचाया था।
गोर्बाचोव का योगदान सिर्फ जर्मनी और यूरोप के एकीकरण तक ही सीमित नहीं था बल्कि इससे भी कहीं आगे था। उन्होंने अमेरिका और रूस के साथ वर्षों से चल रहे शीतयुद्ध को खत्म किया। इसका श्रेय उनको और उनके द्वारा किए गए अथक प्रयासों को ही जाता है। शालीन, हंसमुख और गंभीर चिंतन वाले गोर्बाचोव को उनकी उपलब्धियों की वजह से 6 जून को 1990 नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया था।
गोर्बाचोव 1985 में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने थे उन्होंने पद पर आसिन होने के बाद से ही देश में कई क्रांतिकारी बदलाव किए। उन्होंने पहली बार देश के नागरिकों को अपनी बात रखने की आजादी दी। इस तरह की आजादी की कल्पना पहले कभी लोगों ने नहीं की थी। उनके लिए ये बेहद हैरान करने जैसा था। इतना ही नहीं नागरिकों को विदेशों में जाने की छूट के अलावा उन्होंने सैकड़ों राजनीतिक बंदियों को रिहा किया। गोर्बाचोव को इस पूर्व कम्युनिस्ट देश में पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोस्ट के जरिए सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक बदलाव का भी श्रेय दिया जाता है।
वर्ष 1991 में गोर्बाचोव सरकार के खिलाफ एक असफल तख्तापलट की कोशिश को भी अंजाम दिया गया था। ऐसा करने वालों में अंतिम रूसी मार्शल दिमित्री याजोव थे। इस घटना के बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया और 1994 में उन्हें माफी दे दी गई। हालांकि तख्तापलट की ये कोशिश नाकाम जरूर रही लेकिन इसने ही आज के सोवियत रूस का रास्ता भी साफ किया था। 191 में ही तत्कालीन सोवियत संघ को भंग कर दिया गया था। गोर्बाचोव के काल में भारत और सोवियत संघ के बीच मजबूत संबंध बने रहे। नवंबर 1986 में वो भारत की यात्रा पर भी आए थे। खाइल गोर्बाचोव का नाम बड़ी इज्जत के साथ लिया जाता है। उन्होंने वर्षों से विभाजन की मार झेल रहे जर्मनी को एक करने और यूरोप को एकजुट करने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।