जानें- यूएस और यूक्रेन की आंखों में क्‍यों खटक रही है नॉर्ड स्‍ट्रीम-2 और किसको होगा इससे फायदा

रूस और जर्मनी के बीच सीधी तेल और गैस सप्‍लाई के‍ लिए नॉर्ड स्‍ट्रीम-2 पाइप लाइन का काम जोरों पर चल रहा है। ये पाइप लाइन बाल्टिक सागर से होकर जा रही है। इससे दोनों ही देशों को काफी फायदा होगा।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Mon, 12 Apr 2021 10:59 AM (IST) Updated:Mon, 12 Apr 2021 10:59 AM (IST)
जानें- यूएस और यूक्रेन की आंखों में क्‍यों खटक रही है नॉर्ड स्‍ट्रीम-2 और किसको होगा इससे फायदा
जर्मनी और रूस को होगा नॉर्ड स्‍ट्रीम-2 से फायदा

मास्‍को (एजेंसियां)। रूस और अमेरिका के रिश्‍तों में पिछले कुछ वर्षों से लगातार गिरावट का दौर जारी है। इसका असर हर जगह दिखाई भी दे रहा है। इस तनाव को रूस और जर्मनी के बीच बन रही तेल और गैस पाइपलाइन नॉर्ड स्‍ट्रीम पर भी देखा जा सकता है। आपको बता दें कि जर्मनी, रूस का सबसे बड़ा तेल और गैस का खरीददार है। हालांकि, जर्मनी के अलावा पूरे यूरोप में रूसी गैस और तेल की सप्‍लाई होती है। वहीं, जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है और लगभग संपूर्ण यूरोप ही तेल और गैस के लिए रूस पर निर्भर है। अभी तक रूस की ये सप्‍लाई लाइन यूक्रेन से होकर गुजरती है।

दो वर्ष पहले हुए एक समझौते के मुताबिक, यूक्रेन को इसके ऐवज में 2024 तक हर वर्ष 7 अरब डॉलर हासिल होंगे। रूस, यूरोप और खासकर जर्मनी को होने वाली सप्‍लाई का करीब 40 फीसद हिस्‍सा इसी पाइपलाइन से भेजता है। रूस की गैस और प्राकृतिक गैस पाइप लाइन करीब 53 हजार किमी लंबी हैं। रूस के सामने सबसे बड़ी समस्‍या ये है कि उसकी पाइपलाइन काफी पुरानी और जर्जर हो चुकी हैं, जिसकी वजह से उसको नुकसान उठाना पड़ता है। इन जर्जर लाइन में अक्‍सर गैस और तेल रिसाव की घटनाएं सामने आती हैं, जो उसके लिए बड़ी समस्‍या बन जाती हैं। इस समस्‍या से निजात पाने के लिए रूस ने नॉर्ड स्‍ट्रीम-2 की शुरुआत की है।

नार्ड स्‍ट्रीम दरअसल, रूस और जर्मनी के बीच समुद्र के नीचे से सीधी जाने वाली पाइपलाइन है। इसके जरिए रूस ज्‍यादा तेजी और अधिक मात्रा में अपनी गैस और तेल आपूर्ति कर सकेगा। ये पाइप लाइन बाल्टिक सागर से होकर गुजरेगी। इस पूरे प्रोजेक्‍ट की लागत करीब 10 अरब यूरो की है। इसके जरिए रूस हर वर्ष जर्मनी को 55 अरब क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस की आपूर्ति कर सकेगा। इसको लेकर जहां जर्मनी और रूस काफी उत्‍साहित हैं वहीं यूक्रेन और अमेरिका इस पाइप लाइन का जबरदस्‍त विरोध कर रहे हैं। यूक्रेन को डर है कि ये पाइपलाइन के बन जाने से उसको जो कमाई होती है वो बंद हो जाएगी जो उसके लिए आर्थिकतौर पर नुकसानदेह साबित होगी। वहीं, अमेरिका की मंशा जर्मनी समेत यूरोप को अपनी गैस और तेल बेचने की है। ऐसे में नॉर्ड स्‍ट्रीम-2 से उसकी मंशा पर पानी फिर सकता है।

बाल्टिक सागर से होकर जाने वाली इस नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन का 90 फीसद काम पूरा हो चुका है। इस बीच इसको लेकर विरोध के स्‍वर भी तेज हो गए हैं। अमेरिका यूरोप पर इसका विरोध करने को लेकर दबाव भी बना रहा है। इतना ही नहीं, जर्मनी के लिए भी अमेरिका इसको एक खराब सौदा बता रहा है। फ्रांस और पोलैंड समेत कुछ दूसरे यूरोपीय देश मानते हैं कि नॉर्ड स्‍ट्रीम-2 से जहां गैस का पारंपरिक ट्रांजिट रूट कमजोर होगा वहीं इससे रूस पर यूरोप की निर्भरता बढ़ जाएगी। इन विरोधी स्‍वरों के बीच जर्मनी ने साफ कर दिया है कि वो अपना फैसला नहीं बदलने वाला है। हालांकि, वहां की प्रमुख विपक्षी ग्रीन पार्टी और एफडीपी पार्टी भी इसका विरोध कर रही हैं। गौरतलब है कि पूरी दुनिया में रूस की गिनती दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्‍पादक देशों में होती है। साथ ही रूस दुनिया में प्राकृतिक गैस और तेल से सबसे अधिक कमाई करने वाले देशों में से एक भी है।

नॉर्ड स्‍ट्रीम-2 और नॉर्ड स्‍ट्रीम-1 दोनों का रूट काफी कुछ एक ही है। नॉर्ड स्‍ट्रीम-1 की शुरुआत वर्ष 2011 में हुई थी और 1222 किमी लंबी इस पाइप लाइन का उदघाटन अक्‍टूबर 2012 में किया गया था। ये उप-समुद्रीय क्षेत्र की अब तक की विश्‍व में सबसे लंबी पाइप लाइन भी है। वहीं, नॉर्ड स्‍ट्रीम-2 को यूं तो वर्ष 2018-19 में मंजूरी मिल गई थी, लेकिन रूस पर लगे प्रतिबंधों की वजह से इसके काम में रुकावट आ गई थी। इसके अलावा कोविड-19 महामारी की वजह से भी ये 2020 तक पूरी नहीं हो सकी।

chat bot
आपका साथी