आखिर इमरान खान सेना प्रमुख बाजवा से क्‍यों ले रहे हैं पंगा, जानें इसके बड़े राजनीतिक लिंक, क्‍या हैं एक्‍सपर्ट व्‍यू

पाकिस्‍तान में निर्वाचित सरकार और फौज के बीच मतभेद नया नहीं है। उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तान में सत्‍ता की असल चाबी सेना के पास ही होती है। उन्‍होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि अगर निर्वाचित सरकार ने फौज से पंगा लिया तो उसको भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

By Ramesh MishraEdited By: Publish:Fri, 15 Oct 2021 04:17 PM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 06:27 PM (IST)
आखिर इमरान खान सेना प्रमुख बाजवा से क्‍यों ले रहे हैं पंगा, जानें इसके बड़े राजनीतिक लिंक, क्‍या हैं एक्‍सपर्ट व्‍यू
आखिर इमरान सेना प्रमुख बाजवा से क्‍यों ले रहे हैं पंगा, जानें इसके बड़े राजनीतिक लिंक।

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। पाकिस्तान खुफिया एजेंसी (आइएसआइ) चीफ की नियुक्ति मामले में प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच विवाद गहरा गया है। इसके चलते पाकिस्‍तान में एक बार फ‍िर एक संवैधानिक संकट की स्थिति उत्‍पन्‍न हो गई है। इन दिनों पाकिस्तानी मीडिया में भी दोनों के बीच गहरे मतभेद सुर्खियों में है। दरअसल, इमरान खान की इच्‍छा के खिलाफ आर्मी चीफ बाजवा ने आइएसआइ के वर्तमान प्रमुख जनरल फैज अहमद को हटाकर पेशवा कोर का कमांडर बना दिया है। बाजवा के इस फैसले से पीएम इमरान खान सख्त नाराज हैं, क्योंकि संवैधानिक तौर पर उन्हें ही तबादले और नियुक्ति का अधिकार प्राप्‍त है। प्रधानमंत्री को हक है कि वह आइएसआइ का प्रमुख नियुक्‍त करें।

क्‍या है इस फसाद की जड़

दरअसल, इस फसाद की जड़ पाकिस्तान आम चुनाव में निहित है। 2018 में पाकिस्‍तान आम चुनाव में जनरल फैज पर यह आरोप लगे थे कि उन्होंने इस चुनाव में जमकर धांधली की और इमरान को प्रधानमंत्री बनने में काफी सहयोग किया। इमरान की इच्‍छा है कि बाजवा के बाद फैज पाकिस्‍तान के सेना प्रमुख बने। इसके पहले वह आइएसआइ के प्रमुख बने रहे। हालांकि, मौजूदा सेना प्रमुख बाजवा इमरान के इस फैसले से इत्तेफाक नहीं रखते। बाजवा जनरल अंजुम को आइएसआइ की कमान सौंपना चाहते हैं। बाजवा और इमरान के बीच तनातनी की प्रमुख वजह यही है।

पाकिस्‍तानी लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं हैं मतभेद

प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि पाकिस्‍तान में निर्वाचित सरकार और फौज के बीच मतभेद का सिलसिला नया नहीं है। उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तान में सत्‍ता की असल चाबी सेना के पास ही होती है। उन्‍होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि अगर निर्वाचित सरकार ने फौज से पंगा लिया तो उसको भारी नुकसान उठाना पड़ा है। इसके पूर्व नवाज शरीफ, बेनजीर भुट्टो, जुल्फिकार अली भुट्टो को सेना से पंगा लेने का अंजाम भुगतना पड़ा था। उन्‍होंने कहा सेना और सरकार के बीच यह संघर्ष एक संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहा है। यह पाक‍िस्‍तानी लोकतंत्र के लिए कतई शुभ नहीं है। प्रो. पंत ने कहा कि हालांकि, बाजवा एक बीच का रास्‍ता अपनाने के मूड में दिख रहे हैं। यही कारण है कि उन्‍होंने इमरान की भावनाओं की कद्र करते हुए आइएसआइ प्रमुख के लिए तीन नामों का पैनल उनके पास भेजा है। अब प्रधानमंत्री इमरान इस जिद पर अड़े हैं कि पैनल के सदस्‍यों का साक्षात्‍कार लिया जाएगा। पाकिस्‍तान के इतिहास में यह एक नई परंपरा कायम होने जा रही है। पाकिस्‍तान के इतिहास में यह पहली बार होगा कि जब आइएसआइ प्रमुख के लिए साक्षात्‍कार होंगे। प्रो. पंत ने कि अगर यह विवाद सुलझता नहीं है तो इसके दो परिणाम हो सकते हैं। पहला, पाकिस्‍तान में आम चुनाव कराए जाएं और दूसरा इमरान की जगह किसी अन्‍य को पाकिस्‍तान का नया प्रधानमंत्री बनाया जाए। अगर सेना इमरान को उनके पद से हटाती है तो इसका राजनीतिक लाभ निश्चित रूप से उनको मिल सकता है। वह जनता की निगाह में हीरो बन सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि यह हो सकता है कि इमरान जानबूझ कर सेना से पंगा ले रहे हो। इमरान शायद इसका अंत भी जान रहे हो। उन्‍होंने कहा कोरोना समेत कई अंतरराष्‍ट्रीय मुद्दों पर इमरान की विफलता और नाकामी को छिपाने के लिए यह सबसे आसान रास्‍ता हो सकता है। उन्‍होंने कहा कि इमरान अब एक चतुर और परिपक्‍व राजनेता बन चुके हैं। वर्ष 2018 के चुनाव में मिली जीत के बाद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ नीचे आया है। अगले चुनाव के लिए वह कुछ ऐसा जरूर करना चाहेंगे कि उनकी पार्टी की देश में अच्‍छी छवि बने। इसलिए यह हो सकता है कि वह प्रधानमंत्री के पद को सेना के हाथ बलि दे दे।

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