पाकिस्‍तान के नामी अखबार में छपे लेख ने खोला वैश्विक आतंकी घोषित मसूद का कच्‍चा चिट्ठा

वैश्विक प्रतिबंध लगने से कुछ दिन पहले ही मसूद अजहर ने एक जनसभा को संबोधित किया था। इस सभा ने पाकिस्‍तान की आतंक के प्रति नीतियों को भी उजागर कर दिया।

By Kamal VermaEdited By: Publish:Fri, 03 May 2019 11:29 AM (IST) Updated:Sat, 04 May 2019 08:58 AM (IST)
पाकिस्‍तान के नामी अखबार में छपे लेख ने खोला वैश्विक आतंकी घोषित मसूद का कच्‍चा चिट्ठा
पाकिस्‍तान के नामी अखबार में छपे लेख ने खोला वैश्विक आतंकी घोषित मसूद का कच्‍चा चिट्ठा

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। पाकिस्‍तान में मौजूद आतंकियों की जानकारी पूरी दुनिया को है। पूरी दुनिया ये भी जानती है कि पाकिस्‍तान किस तरह से अपने यहां पर आतंक की खेती कर उसको दुनिया भर में एक्‍सपोर्ट करता है। एक दिन पहले ही जैश-ए-मुहम्‍मद के आका मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किया गया है। मसूद अजहर भी उन आतंकियों में से एक है जिसने आतंक का पहला पाठ पाकिस्‍तान में पढ़ा और बाद में भारत समेत दूसरे देशों हमले करवाए। बहरहाल, अब जबकि भारत ने उसको वैश्विक आतंकी घोषित करवाने में सफलता पा ली है, तो पाकिस्‍तान के ही एक अखबार में छपे लेख में उसको लेकर कुछ खुलासे किए गए हैं।

प्रतिबंध से पहले की थी रैली
यह लेख पाकिस्‍तान के अखबार डॉन की वेबसाइट पर मौजूद है। 'रिटर्न ऑफ मसूद अजहर' की हेडिंग से प्रकाशित इस लेख में लिखा गया है कि प्रतिबंध से कुछ दिन पहले ही मसूद ने मुजफ्फराबाद में एक जनसभा को संबोधित किया था। अखबार ने लिखा है कि भले ही इस रैली को संबोधित करने खुद मसूद वहां पर मौजूद नहीं था और उसने यह संबोधन फोन से किया था, लेकिन इससे जैश-ए-मुहम्‍मद समेत अन्‍य आतंकी आकाओं के प्रति पाकिस्‍तान की नीतियों का काला सच पूरी दुनिया के सामने उजागर जरूर हो गया है। इस रैली में मसूद ने भारत को जमकर कोसा था।

हाफिज भी करता है खुलेआम सभाएं
यूं तो इस तरह का भाषण पाकिस्‍तान में कोई नई बात नहीं है। हाफिज सईद, जिसको मसूद से पहले वैश्विक आतंकी घोषित किया गया था, भी भारत के खिलाफ खुलेआम इसी तरह से आग उगलता दिखाई देता है। मसूद की तरह उसकी भी राजनीतिक गलियारों में जबरदस्‍त पैठ हैं। ये दोनों आतंकी सेना की निगरानी में खुलेआम घूमते हैं और रैलियां करने के साथ ही भारत में हमलों की साजिश भी रचते हैं। इन दोनों की ही तरह हरकत उल मुजाहिद्दीन का फजलुर रहमान खलील भी है, जो अब पाकिस्‍तान के टीवी चैनलों पर चल रही डिबेट में हिस्‍सा लेता है। यह सब कुछ उसी तरफ इशारा करता है जिसपर अखबार में अंगुली उठाई है। यह सब कुछ ये बताने के लिए काफी है कि आखिर पाकिस्‍तान की सरकार में आतंकियों की क्‍या हैसियत है।

प्रशासन की मिलीभगत
लेख में लिखा है कि इस तरह की गतिविधियां न सिर्फ देश और दुनिया के विकास में बाधक हैं, बल्कि राष्‍ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरनाक है। मुजफ्फराबाद की रैली की ही बात करें तो यह पहले से ही तय थी और इसमें बड़ी संख्‍या में लोगों ने हिस्‍सा लिया था। इसके लिए कई जगहों से बसें सभास्‍थल तक पहुंची थी। यह सब कुछ वहां के प्रशासन की सहभागिता के बिना संभव नहीं था। लेख में लिखा है कि ऐसा भी नहीं हो सकता है कि प्रशासन ये न जानता हो कि इस रैली को क्‍यों और किसने आयोजित किया है।

हाई सिक्योरिटी एरिया
प्रशासन की भागीदारी का जिक्र करना यहां पर इसलिए भी जरूरी है, क्‍योंकि इसमें काफी हाई सिक्‍योरिटी थी। सभा में कैमरा और टेप रिकॉ‍र्डर तक ले जाने की इजाजत नहीं दी गई थी। इस सभा को मसूद के भाई अब्‍दुल रऊफ असगर ने भी संबोधित किया था। वह जैश और मूसद का बेहद करीबी है। इस रैली में भारतीय संसद पर हमले के दोषी रहे अफजल गुरु की लिखी किताब का भी विमोचन किया गया था। अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को दिल्‍ली के तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। इस दौरान मसूद ने प्रशासन से जिहाद से प्रतिबंध हटाने तक की मांग कर डाली। इस लेख के मुताबिक, मसूद के परिवार के कई लोग काबुल में सरकारी नौकरी में हैं।

बदस्‍तूर जारी मसूद के आतंक का कारोबार
जहां तक जैश-ए-मुहम्‍मद के गठन की बात है तो दिसंबर 1999 में भारत से रिहाई के बाद मसूद ने इसका गठन किया था। इसका अफगानिस्‍तान की तत्‍का‍लीन तालिबान सरकार से भी गठजोड़ था। इतना ही नहीं, जैश के आतंकियों को अफगानिस्‍तान में बने कई कैंपों में ट्रेनिंग दी जाती है। इन कैंपों का सीधा संबंध अलकायदा से है। वहीं, अलकायदा के मुखपत्र जर्ब-ए-मोमिन में मसूद भी लेख लिखता है। देश के पूर्व राष्‍ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में जैश को अंतरराष्‍ट्रीय आतंकी संगठनों की सूची में डाला गया था। यह बात अलग है कि प्रतिबंध के बाद भी संगठन का कामकाज ज्‍यों का त्‍यों चलता रहा। लश्‍कर ए झांगवी से भी जैश का सीधा संबंध है। प्रतिबंधों के बावजूद मसूद को कभी हिरासत में नहीं लिया गया। यही वजह थी कि वह दक्षिण पंजाब जहां जैश की मजबूत जड़ें हैं, खुलेआम घूमता था।

पाकिस्‍तान के चेहरे से उतरा नकाब
अंतरराष्‍ट्रीय दबाव के चलते मसूद ने एक बार कहा था कि वह अपने बनाए संगठन से पकड़ खो बैठा है और किसी भी तरह के हमलों में वह शामिल नहीं है। हालांकि, मुजफ्फराबाद की रैली ने यह साफ कर दिया कि न सिर्फ संगठन पर उसकी पकड़ मजबूत है, बल्कि वह अपनी काली करतूतों को बादस्‍तूर जारी रखे हुए है। इस रैली में उसके ऑडियो कैसेट और जिहाद से जुड़ी किताबें और लेख खूब बांटे गए। इस रैली ने जहां पाकिस्‍तान की आतंक के प्रति नीतियों को पूरी दुनिया के सामने उजागर कर दिया। वहीं, पाकिस्‍तान के चेहरे से नकाब भी उतार दिया।

पश्‍तूनों पर अत्‍याचार के खिलाफ एक आवाज है पश्‍तून तहफूज मूवमेंट, जिसे कुचलना चाहती है पाक सेना

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप

chat bot
आपका साथी