पाकिस्तानी अदालत ने सिख लड़की को अगवा करने वाले 'पति' के पास भेजा, ननकाना साहिब में तनाव
पाकिस्तान की अदालत ने अगवा सिख लड़की की मुसलमान के साथ कथित निकाह के मामले में विवादास्पद फैसला सुनाते हुए उसे पति के पास भेज दिया है।
लाहौर, पीटीआइ। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादतियों में एक और घटना जुड़ गई है। पाकिस्तान की अदालत ने सिख लड़की की मुसलमान के साथ कथित निकाह के मामले में विवादित फैसला सुनाते हुए कहा कि लड़की नाबालिग नहीं है। वह अपने पति के घर या किसी भी अन्य जगह पर रहने के लिए आजाद है। अदालत के फैसले के बाद ननकाना साहिब में दोनों समुदायों के बीच तनाव पैदा हो गया है क्योंकि परिजनों का कहना है कि उनकी बेटी को अगवा करके उसके साथ जबरन निकाह किया गया था।
स्कूली प्रमाण पत्र नहीं माना
लाहौर हाई कोर्ट के जस्टिस चौधरी शेहरम सरवर ने बुधवार को मुहम्मद हसन की याचिका पर यह फैसला सुनाया। हसन ने जगजीत उर्फ आयशा को अपनी पत्नी बताते हुए अदालत से उसे साथ में भेजने की मांग की थी जबकि सिख परिवार के वकील खालिद ताहिर सिंधू ने अदालत से कहा कि नाबालिग की उम्र को प्रमाणित करने के लिए स्कूली प्रमाण पत्र काफी था। अगर लड़की को उसके परिवार को नहीं सौंपा गया तो सिख समुदाय की भावनाएं आहत होंगी। पाकिस्तान में कई ऐसे वाकए हुए हैं जब अदालतों ने अपहरण करके निकाह की घटनाओं को वैध ठहराया है।
परिजनों ने अदालत के फैसले पर निराशा जताई
पंजाब के गवर्नर मुहम्मद सरवर के समक्ष दोनों पक्षों में समझौता हुआ था, जिसके अनुसार लड़की को उसके परिजनों को सौंपा जाना था। कोर्ट ने हालांकि नेशनल डाटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी (नाड्रा) और मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को स्वीकार किया, जिन्होंने लड़की को बालिग करार दिया है। अदालत ने मेहर की रकम 50 हजार से बढ़ाकर 10 लाख रुपये करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने जगजीत को पूरी सुरक्षा उपलब्ध कराने का भी आदेश दिया। अदालत के फैसले पर लड़की के परिवार ने निराशा जताई है।
भारत ने भी जताया था विरोध
यह घटना पिछले साल सितंबर में हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, ननकाना साहिब निवासी जगजीत कौर का अपहरण कर परिजनों की मर्जी के खिलाफ इलाके के मुहम्मद हसन के साथ शादी करवा दी गई थी। परिजनों और अल्पसंख्यक समाज के लोगों ने जगजीत के अपहरण एवं जबरन निकाह कराए जाने का विरोध किया था। भारत ने भी इस पर विरोध दर्ज कराते हुए पाकिस्तान सरकार को तत्काल कार्रवाई के लिए कहा था। इसके बाद से जगजीत लाहौर के दारुल अमन (आश्रय गृह) में रह रही थी।