जानें कौन हैं मंजूर पश्तीन जो पश्तून मूवमेंट को हवा देकर बने पाकिस्तान सरकार के आंखों की किरकिरी
पीटीएम के समर्थक और उनके नेता मंजूर की गिरफ्तारी के बाद से भड़के हुए हैं। वह इस गिरफ्तारी को पाकिस्तान सरकार और आर्मी की तानाशाही करार दे रहे हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पाकिस्तान में पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (PTM) को हवा देने वाले बड़े नेता मंजूर पश्तीन की गिरफ्तारी से एक बार फिर सारे पश्तून भड़के हुए हैं। वह लगातार मंजूर की गिरफ्तारी और उन पर लगे सभी आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं। पीटीएम सांसद मोहसिन डावर ने नॉर्थ वजीरिस्तान ट्राइबल डिस्ट्रिक्ट में पत्रकारों से वार्ता के दौरान उन्होंने पाकिस्तान आर्मी पर कई तरह के आरोप लगाए। उनका कहना था कि पश्तून मूवमेंट को दबाने के लिए आर्मी कई तरह के हथकंडे अपना रही है। इसके तहत वह झूठे मामलों में लोगों फंसाकर उन्हें गिरफ्तार कर रही है। इस पत्रकार वार्ता के दौरान पीटीएम के नेता अली वजीर और आफ्रासियाब खटक भी मौजूद थे। महज 25 वर्ष के मंजूर की गिरफ्तारी ने पश्तूनों को भड़का दिया है। उनकी गिरफ्तारी के बाद वजीरिस्तान में कई जगहों पर हिंसक प्रदर्शन भी हुए हैं। उनके ऊपर राजद्रोह के आरोप लगाए गए हैं।
पीटीएम का समय पूरा
मंजूर की गिरफ्तारी को सेना के उस बयान से जोड़कर देखा जा रहा है जो पिछले वर्ष दिया गया था। यह बयान आईएसपीआर के पूर्व प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने मई में दिया था। इसमें उन्होंने कहा था कि पीटीएम के दिन अब पूरे हो गए हैं। उस वक्त उन्होंने भारत को भी इस मामले में घसीटते हुए यहां तक कह डाला था कि इसको भारत धन मुहैया करवा रहा है। इस बयान के बाद पीटीएम सांसद ने उन्हें खुली चुनौती दी थी कि वह मूवमेंट को मिलने वाले पाई-पाई की जांच करवा लें। उन्होंने यहां तक कहा था कि वह इस मूवमेंट से जुड़ी फंडिंग के सभी कागजात सदन में रखने को भी तैयार हैं।
यूं बने बड़े नेता
बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले मंजूर दक्षिणी वजीरिस्तान के रहने वाले हैं। यह वो इलाका है जो तालिबान का गढ़ माना जाता है। मंजूर उस वक्त मीडिया की सूर्खियां और पश्तून मूवमेंट के नेता बनकर उभरे थे जब वर्ष 2019 में यहां के ही एक युवक नकीबुल्ला की कराची में पुलिस एनकाउंटर में हत्या कर दी गई थी। उस वक्त देश के अलग-अलग हिस्सों में पुलिस और सेना के खिलाफ जबर्दस्त प्रदर्शन हुए। उस वक्त इन प्रदर्शनों का जिम्मा मंजूर ने ही संभाला था। उनके नेतृत्व में न सिर्फ नकीबुल्ला हत्या मामले में, बल्कि पश्तूनों के कई दूसरे मुद्दों को लेकर प्रदर्शन किए गए। आज मंजूर पश्तून मूवमेंट के बड़े नेताओं में गिने जाते हैं।
क्या है पीटीएम
पीटीएम पश्तूनों के मानवाधिकारों के लिए चलाया जाने वाला एक मूवमेंट है। यह मूवमेंट खासतौर पर खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में रहने वाले पश्तूनों के लिए शुरू किया गया था। इसकी शुरुआत मई 2014 में डेरा इस्माइल खान में गोमाल यूनिवर्सिटी के आठ छात्रों ने की थी। इस मूवमेंट का मकसद वजीरिस्तान में बिछी लैंड माइन को हटाना था, जो आए दिन लोगों की मौत की वजह बन रही थी। यह इलाका फेडरल एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरिया या फाटा के अंतर्गत आता है। जनवरी 2018 में इस मूवमेंट में नया मोड़ उस वक्त आया जब एक फर्जी मुठभेड़ में नकीबुल्ला मेहसूद नाम के शख्स की बेरहमी से हत्या कर दी गई।
हिरासत में हुई थी मेहसूद की हत्या
मूवमेंट से जुड़े लोगों का आरोप है कि मेहसूद की हिरासत में लेकर हत्या की गई थी, जिसको बेहद चालाकी से मुठभेड़ दिखा दिया गया था। इसके बाद इस आंदोलन में मेहसूद नाम को जोड़ लिया गया, जिसका अर्थ वजीरिस्तान में रहने वाली मेहसूद जाति से संबंधित था। वहीं पश्तून पाकिस्तान में रहने वाले सभी पश्तूनों से संबंधित था। इस आंदोलन के तहत मांग की गई की मेहसूद के हत्यारे पुलिसवाले राव अनवर को गिरफ्तार कर उसको नियमानुसार सजा दी जाए। नवंबर 2018 में फिर इस आंदोलन में नया मोड़ आया। पुलिस ने पश्तो कवि ताहिर द्वार को इस्लामाबाद से हिरासत में लिया और उसे इस कदर पीटा गया कि उसकी मौत हो गई।
ताहिर का मामला
ताहिर की लाश अफगानिस्तान के दर बाबा जिले में उसके गायब होने के 18 दिन बाद मिली। ताहिर के परिजनों के साथ मिलकर पीटीएम ने उसकी हत्या की अंतरराष्ट्रीय एजेंसी से कराने की मांग की। 2019 में यह मूवमेंट फिर तब दुनिया के सामने आया जब मूवमेंट के एक सदस्य अरमान लोरालाइ की हिरासत में मौत हो गई। इसको लेकर जबर्दस्त प्रदर्शन हुआ और पुलिस ने मूवमेंट से जुड़े करीब 20 कार्यकर्ताओं को नजरबंद कर दिया। इसमें मूवमेंट से जुड़े बड़े नेता गुलालाई इस्माइल और अब्दुल्ला नंगयाल भी शामिल थे।
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