40 लाख अफगानों को तत्काल खाद्य सामग्री की जरूरत, लोगों को मुश्किल से मिल रही दो वक्त की रोटी

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अफगानिस्तान में 40 लाख ऐसे लोग हैं जिन्हें दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिल रहा है। इनमें से अधिकांश आबादी हिंसाग्रस्त देश के ग्रामीण क्षेत्रों की है। पढ़ें यह रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Wed, 15 Sep 2021 06:51 PM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 01:14 AM (IST)
40 लाख अफगानों को तत्काल खाद्य सामग्री की जरूरत, लोगों को मुश्किल से मिल रही दो वक्त की रोटी
अफगानिस्तान में 40 लाख ऐसे लोग हैं जिन्हें दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिल रहा है।

न्यूयार्क, एजेंसियां। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अफगानिस्तान में 40 लाख ऐसे लोग हैं, जिन्हें दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिल रहा है। इनमें से अधिकांश आबादी हिंसाग्रस्त देश के ग्रामीण क्षेत्रों की है। जहां सर्दियों में लोगों के लिए गेहूं, पशुओं के लिए चारा और नकद सहायता की आवश्यकता है। खाद्य संकट से जूझ रहे परिवार, बुजुर्ग और दिव्यांगों की शीघ्र ही मदद करना जरूरी हो गया है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के आपात सहायता कार्यालय ने बताया कि अफगानिस्तान की 70 फीसद आबादी गांवों में खेतीबाड़ी करके गुजारा करती है।

रीन पालसन के अनुसार, कृषि अफगानिस्तान की जीडीपी का 25 फीसद है और इससे सीधेतौर पर 45 फीसद लोगों को रोजगार मिलता है। 80 फीसद आबादी इससे लाभान्वित होती है। समाचार एजेंसी एपी की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में 34 प्रांतों में से 25 में सूखे के हालात हैं, इससे 73 लाख आबादी प्रभावित है। 40 लाख लोग ऐसे हैं, जिनके हालात भुखमरी तक पहुंच गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतेरेस ने भी विश्व समुदाय से 60 करोड़ डालर से अधिक की सहायता राशि अफगान लोगों को देने के लिए अपील की है। बताया जाता है कि मानवीय सहायता बंद होने की सूरत में अफगानिस्‍तान में अस्थिरता बढ़ेगी और माहौल खराब होगा। यही नहीं सूखे के चलते बड़े पैमाने पर लोगों की मौत होने की आशंका भी बनी हुई है।

वहीं अमेरिकी अखबार 'द न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स' की रिपोर्ट के मुताबिक, जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा कि अफगानिस्तान में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चरमराकर ढहने की कगार पर है। इससे लाखों लोगों की जान का संकट हो सकता है। मौजूदा वक्‍त में अफगानिस्‍तान की स्वास्थ्य सेवाएं जैसे-तैसे अंतरराष्ट्रीय दानकर्ताओं के दम पर चल रही हैं। मामलू हो कि कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने तालिबान को प्रतिबंधित आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है। 

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