वैज्ञानिकों ने लैब में डेवलप किया नए प्रकार का 'मिनी ब्रेन', लकवा डिमेंशिया जैसे रोगों के बारे में बढ़ेगी जानकारी

ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में एक ऐसा नया मिनी ब्रेन विकसित किया है जिससे लकवा और डिमेंशिया जैसे घातक व लाइलाज तंत्रिका संबंधी विकृतियों के बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल की जा सकेगी। पढ़ें यह रिपोर्ट ...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Sat, 23 Oct 2021 07:09 PM (IST) Updated:Sun, 24 Oct 2021 01:07 AM (IST)
वैज्ञानिकों ने लैब में डेवलप किया नए प्रकार का 'मिनी ब्रेन', लकवा डिमेंशिया जैसे रोगों के बारे में बढ़ेगी जानकारी
ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में एक ऐसा नया 'मिनी ब्रेन' विकसित किया है...

लंदन, आइएएनएस। मस्तिष्क की जटिल कार्यप्रणाली की गुत्थी सुलझाने के मकसद से शोध सतत जारी हैं। इसी क्रम में ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने प्रयोगशाला में एक ऐसा नया 'मिनी ब्रेन' विकसित किया है, जिससे लकवा और डिमेंशिया जैसे घातक व लाइलाज तंत्रिका संबंधी विकृतियों के बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल की जा सकेगी और इन रोगों से बचाव के उपाय करना तथा इलाज ढूंढ़ना ज्यादा आसान होगा।

काफी कम समय में मिली सफलता 

हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं है कि विज्ञानियों ने न्यूरोडिजनेरिटिव रोगों से ग्रस्त लोगों की कोशिकाओं से मिनी ब्रेन विकसित किया है लेकिन अब तक जितने भी प्रयास हुए हैं उनसे अपेक्षाकृत कम समय के लिए उन्हें विकसित करने में सफलता मिली है। इस मायने में यह पहला मौका है जब यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज के विज्ञानी इसे छोटे अंग जैसे माडल (आर्गेनायड्स) ब्रेन विकसित किया है, जो लगभग एक साल तक चलेगा।

ऐसे बीमारी का शिकार होता है इंसान 

सामान्य तौर पर होने वाला मोटर न्यूरान डिजीज एमायोट्राफिक लैटेरल स्क्लेरोसिस अक्सर फ्रंटोटेंपोरल डिमेंशिया (एएलएस/एफटीडी) से ओवरलैप होता है। यह रोग आमतौर पर 40-45 साल की उम्र के बाद होता है। इस रोग में मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं और याददाश्त, व्यवहार तथा व्यक्तित्व में बदलाव आ जाता है।

240 दिनों के लिए बनाए माडल

नेचर न्यूरोसाइंस जर्नल में प्रकाशित कैंब्रिज के विज्ञानियों के शोध निष्कर्ष में बताया गया है कि टीम ने स्टेम सेल से ये माडल 240 दिनों के लिए बनाए, जिसमें एएलएस/एफटीडी में सामान्य आनुवंशिक उत्परिवर्तन (जीनेटिक म्यूटेशन) हुए। पहले के शोधों में यह संभव नहीं था। इतना ही नहीं एक अप्रकाशित शोध में इसे 340 दिनों के लिए विकसित करने की बात बताई गई है।

ऐसे बढ़ती जाती है बीमारी 

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट आफ क्लिनिकल न्यूरोसाइंसेज के डाक्टर एंड्रास लकाटोस बताते हैं कि न्यूरोडिजनेरिटिव विकृतियां बड़ी ही जटिल होती हैं और ये कई प्रकार की कोशिकाओं को प्रभावित करती हैं, जिसमें समय के साथ कोशिकाओं की प्रतिक्रियाओं की वजह से बीमारी बढ़ती जाती है।

ताकी बदलाव को गहराई से समझा जा सके 

लकाटोस बताते हैं कि इन जटिलताओं को समझने के लिए हमें ऐसे माडलों की जरूरत होती है, जो ज्यादा समय तक चले और इंसानी मस्तिष्क की कोशिकीय संरचना को दोहराए ताकि उनमें होने वाले बदलाव को गहराई से समझा जा सके। हमारे माडल से इसका अवसर मिलेगा।

इस माडल में क्या है खास

लकाटोस का कहना है कि हम इस माडल से यह तो समझ पाएंगे ही कि रोग के लक्षण उभरने से पहले क्या कुछ होता है, साथ ही यह देखने को भी मिलेगा कि समय के साथ कोशिकाओं में किस प्रकार के बदलाव आते हैं।आमतौर पर आर्गेनायड्स कोशिकाओं के गेंद जैसे रूप में विकसित होते हैं, लेकिन इस शोध टीम ने रोगियों की कोशिकाओं वाला आर्गेनायड्स प्रयोगशाला में स्लाइस कल्चर में विकसित किया है।

ऐसे मिली मदद 

इस तकनीक से यह सुनिश्चित होता है कि माडल की अधिकांश कोशिकाओं को जीवित रहने के लिए जरूरी पोषण मिलता रहता है। इस वजह से टीम को आर्गेनायड्स की कोशिकाओं में होने वाले शुरुआती बदलाव भी देखने को मिले।

ऐसे प्रभावित होता है मांसपेशियों का संचालन 

इससे कोशिकीय तनाव, डीएनए को होने वाले नुकसान और डीएनए के प्रोटीन में अभिव्यक्त होने की क्रियाविधि को भी परखा जा सकता है। ये बदलाव तंत्रिका कोशिकाएं और मस्तिष्क की अन्य कोशिकाओं को भी प्रभावित करते हैं, जिसे एस्ट्रोग्लिया कहते हैं और यह मांसपेशियों का संचलन तथा मानसिक क्षमता को नियोजित करता है।

इलाज विकसित करने में मिलेगी मदद

इस नए शोध से विकसित आर्गेनायड्स से न सिर्फ बीमारी होने के बारे पता चलेगा, बल्कि इसका इस्तेमाल संभावित दवाओं की स्क्रीनिंग में भी हो सकता है। इसके आधार पर नई दवाएं विकसित करने का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है। शोध टीम ने दर्शाया है कि जीएसके 2606414 नामक ड्रग एएलएस/एफटीडी में होने वाली सामान्य कोशिकीय समस्याओं से राहत देने में प्रभावी रहा है। इससे टाक्सिक प्रोटीन के संचयन, कोशिकीय तनाव तथा तंत्रिका कोशिकाओं के क्षय जैसी प्रक्रियाओं को रोक कर इलाज का नया तरीका ढूंढ़ा जा सकता है। 

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