तालिबान की घोषणा- अफगानिस्तान में इस्लामिक कानून लागू करना है मकसद, महिलाओं की बढ़ी चिंंता
अफगानिस्तान में तालिबान इस्लामिक कानून लागू करना चाहता है। इतना ही नहीं उसने साफ किया है कि वो महिलाओं को भी इसी कानून के तहत ही अधिकार देना चाहता है। इससे उसकी नीति और नियत दोनों ही साफ हो गई हैं।
काबुल (रॉयटर्स)। अफगानिस्तान में तालिबान ने अपनी नीति और नियत को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है। उसने दो टूक कहा है कि वो वो अफगानिस्तान शांति वार्ता के लिए वचनबद्ध है, लेकिन वो अफगानिस्तान में इस्लामिक कानून लागू करना चाहता है। साथ ही ये भी कहा है कि वो देश में इस्लामिक नियमों के मुताबिक ही महिलाओं को अधिकार देने का पक्षधर है। तालिबान ने रविवार को ये बयान दिया है।
हालांकि तालिबान के इस बयान ने उन महिलाओं और सरकार की परेशानी को बढ़ा दिया है जो पहले से ही तालिबान के हक में नहीं है। वहीं अफगानिस्तान की महिलाएं पहले से ही इस बात को लेकर आशंकित हैं कि अमेरिका के यहां से वापसी के बाद तालिबान का दायरा काफी बढ़ जाएगा और उन्हें भविष्य में उन्हीं मुश्किलों से गुजरना होगा जिनसे वो पहले भी दो चार हो चुकी हैं।
आपको बता दें कि तालिबान की हुकूमत में सबसे अधिक मार महिलाओं पर ही गिरी थी। तालिबानी सरकार ने महिलाओं की पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद, संगीत आदि पर पूरी तरह से रोक लगा रखी थी। इतना ही नहीं कोई भी महिला तालिबानी हुकूमत में अकेले सड़क पर या कहीं भी नहीं निक सकती थी। तालिबान के कट्टरपंथियों की जमात में महिलाओं के ऊपर अत्याचार करने वालों की कोई कमी नहीं थी। 9/11 हमले के बाद जब अमेरिकी फौज की यहां पर आमद बढ़ी तो तालिबान की न सिर्फ हुकूमत खत्म हुई बल्कि लोगों को भी खुली हवा में सांस लेने का अधिकार मिला था।
वहीं अब जबकि अमेरिका 9/11 की बरसी से पहले अपनी फौज को यहां से वापस ले जाने का एलान कर चुका है तो तालिबान एक बार फिर से अपने पांव पसार रहा है। धीरे-धीरे वो यहां के कुछ इलाकों पर अपना कब्जा जमा चुका है। तालिबान की मंशा पहले की ही तरह काबुल में सत्ता हथियाना है। रॉयटर्स के मुताबिक अमेरिका के यहां से जाने के बाद अफगानिस्तान की सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा तालिबान और दूसरे आतंकी संगठनों से ही है, जो इस मौके की वर्षों से तलाश में थे। अमेरिका की गैर मौजूदगी में तालिबान के अलावा दूसरे आतंकी संगठन एक बार फिर से सिर उठा सकते हैं।