Citizenship Amendment Act 2019 को मालदीव ने बताया भारत का आंतरिक मामला
मालदीव की संसद के स्पीकर (Speaker of Maldives Parliament) मोहम्मद नशीद (Mohamed Nasheed) ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 पर कहा है कि यह भारत का आंतरिक मसला है।
नई दिल्ली, एएनआइ। मालदीव की संसद के स्पीकर (Speaker of Maldives Parliament) मोहम्मद नशीद (Mohamed Nasheed) ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (Citizenship Amendment Act 2019) पर कहा है कि यह भारत का आंतरिक मसला है। हमें भारत के लोकतंत्र (Indian democracy) पर विश्वास है। यह कानून भारत के दोनों सदनों से बहुमत से सभी प्रक्रियाओं के अनुपालन के साथ पारित हुआ था।
समाचार एजेंसी पीटीआइ के मुताबिक, मोहम्मद नशीद (Mohamed Nasheed) ने यह भी कहा कि भारत प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए हमेशा से एक सुरक्षित पनाहगाह रहा है। नई दिल्ली की यात्रा पर आए मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद एक संसदीय शिष्टमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने भारत के साथ अपने देश के तीन प्रमुख मसले उठाए। इनमें इस्लामी देश, चीन के कर्ज का जाल और जलवायु परिवर्तन का मसला शामिल है।
संशोधित नागरिकता अधिनियम 2019 पर मालदीव के रुख पर पूछे गए सवाल के जवाब में नशीद ने कहा कि यह भारत का आतंरिक मामला है। मुझे भारत के लोकतंत्र में पूरा यकीन है। मालदीव की संसद पीपुल्स मजलिस (people's majlis) के अध्यक्ष मोहम्मद नशीद ने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की। वह राज्यसभा के सभापति एवं लोकसभा स्पीकर के संयुक्त न्योते पर भारत दौरे पर आए हैं।
वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद से मुलाकात के दौरान कहा था कि भारत शांतिपूर्ण, समृद्ध, लोकतांत्रिक, मजबूत मालदीव के निर्माण के लिए वहां की सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। दूसरी ओर मालदीव के विदेश मंत्री शाहिद ने भारत और मालदीव संबंधों को आगे बढ़ाने में प्रधानमंत्री मोदी के नजरिए के लिए धन्यवाद दिया।
बता दें कि बीते दिनों संसद के दोनों सदनों से पास नागरिक संशोधन विधेयक 2019 पर राष्ट्रपति द्वारा मुहर लगाए जाने के बाद अब यह कानून (Citizenship amended Act 2019) बन गया है। इसके खिलाफ पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। संशोधित नागरिकता कानून के तहत 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ्गानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को अवैध नहीं माना जाएगा।
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