प्रकाश से भ्रूण भी होता है प्रभावित, जन्म के समय के आधार पर खोजा जा सकता है मनोरोगों का इलाज
उमेआ यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर लीना गुन्हागा ने बताया कि इस खोज से यह संभावना बनती है कि गर्भावस्था के दौरान सही तरीके से प्रकाश का उपयोग करके बच्चों के बड़े होने पर उनमें होने वाली तंत्रिका संबंधी विकृतियों के जोखिम को कम किया जा सकता है।
स्टाकहोम (स्वीडन), एएनआइ। जीवन में प्रकाश की अहमियत के बारे में तो बहुत कहा और सुना गया है। लेकिन हाल के एक अध्ययन में जन्म से पहले यानी गर्भावस्था में भी इसका महत्व सामने आया है। इसमें बताया गया कि गर्भावस्था के दौरान मां के पेट पर उचित प्रकाश पड़ने का संबंध भ्रूण के मस्तिष्क विकास से हो सकता है। यह अध्ययन 'ईन्यूरो' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
स्वीडन की उमेआ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा अमेरिकी सहयोगियों की मदद से किए गए इस अध्ययन के निष्कर्ष से तंत्रिकाओं से जुड़े कुछ रोगों के बारे में बेहतर जानकारी मिल सकती है।
उमेआ यूनिवर्सिटी के सेंटर फार मालीक्यूलर मेडिसिन की प्रोफेसर लीना गुन्हागा ने बताया कि इस खोज से यह संभावना बनती है कि गर्भावस्था के दौरान सही तरीके से प्रकाश का उपयोग करके बच्चों के बड़े होने पर उनमें होने वाली तंत्रिका संबंधी विकृतियों के जोखिम को कम किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने यह दर्शाया है कि सेंट्रल और पेरीफेरल नर्वस सिस्टम में मौजूद लाइट रिसेप्टर ओप्सिन 3 भ्रूण के शुरुआती विकास में भूमिका निभाता है। ओप्सिन 3 मालीक्यूल की विशिष्ट भूमिका इस बात का संकेत है कि यह विभिन्न प्रकार के तंत्रिका, तंत्रिका मार्ग तथा मस्तिष्क और मेरुदंड के निर्माण में महत्वपूर्ण है।
ओप्सिन 3 की भूमिका मोटर और संवेदी तंत्रिका मार्ग से जुड़ा हो सकता है, जो चाल (मूवमेंट), दर्द, दृष्टि तथा घ्राण के साथ ही स्मरण, मूड और भावना को नियंत्रित करता है।
यह बात अजीब लग सकती है कि प्रकाश शरीर के अंदर की कोशिकाओं, यहां तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है। लेकिन पूर्व के प्रयोगों में यह दिखाया जा चुका है कि प्रकाश त्वचा, नरम ऊत्तक तथा खोपड़ी को पार करते हुए फोटोरिसेप्टर को सक्रिय कर सकता है। ओप्सिन 3 ब्लू रेंज के प्रकाश की पहचान करता है, जिसका तरंगदैर्घ्य करीब 480 नैनोमीटर होता है।
न्यूरोलाजिकल समस्याओं के जोखिम का लग सकता है पता
उमेआ के शोधकर्ताओं द्वारा इस लाइट रिसेप्टर के पैटर्न की खोज से पता चलता है कि मस्तिष्क के विकास और बाद में उसके कामकाज में प्रकाश की अहम भूमिका होती है। इससे जन्म के समय के मौसम के आधार पर न्यूरोलाजिकल और मनोवैज्ञानिक समस्याओं के खतरे का विश्लेषण किया जा सकता है।
इससे पार्किसन्स, अल्जाइमर, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, बाइपोलर डिसआर्डर, आटिज्म, सिजोफ्रेनिया और मिर्गी जैसी बीमारियों के बारे में बेहतर जानकारी हासिल की जा सकती है। अभी इन बीमारियों के बारे में ज्यादा ब्योरा उपलब्ध नहीं है। इसलिए इन बीमारियों के अन्य कारकों के अलावा जन्म के समय के आधार पर भी जोखिम पर विचार किया जा सकता है।
लाइट थेरेपी के अभी करना होगा इंतजार
लीना गुन्हागा ने कहा कि हालांकि गर्भवतियों के लिए इस विशिष्ट लाइट थेरेपी की सलाह देने से पहले अभी और भी शोध जरूरी है। लेकिन हम स्पष्ट रूप से एक रोमांचक ट्रैक पर हैं, जो अंतत: अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यद्यपि यह नया निष्कर्ष चूहों के मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र के विकास के अवलोकन पर आधारित है, लेकिन यह इंसानों पर भी लागू हो सकता है, क्योंकि दोनों में कई तरह की समानताएं पाई जाती हैं।
शोधकर्ता अभी और भी पड़ताल में जुटे हैं कि ओप्सिन 3 किस प्रकार से मस्तिष्क के विकास और उसके कामकाज को प्रभावित करता है।