नेपाल में बाढ़ और भूस्खलन से भारी तबाही, 48 से ज्यादा लोगों की मौत, प्रधानमंत्री ने की आपात बैठक

नेपाल में रविवार से लगातार बारिश के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन ने तबाही मचा दी है। इसमें कम से कम 48 लोगों की मौत हो गई और 31 लोग लापता हो गए हैं। इसके मद्देनजर प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कैबिनेट की आपातकालीन बैठक बुलाई है।

By TaniskEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 04:17 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 06:47 PM (IST)
नेपाल में बाढ़ और भूस्खलन से भारी तबाही, 48 से ज्यादा लोगों की मौत, प्रधानमंत्री ने की आपात बैठक
नेपाल में बाढ़ और भूस्खलन से भारी तबाही। (फोटो- एएफपी)

काठमांडू, आइएएनएस। नेपाल में रविवार को मूसलाधार बारिश के बाद आई बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं से कम से कम 48 लोगों की मौत हो गई है और 31 लोग लापता हैं। नेपाल के गृह मंत्रालय के मुताबिक देश के हजारों किसानों की इस साल फसल बर्बाद हो गई है। नेपाल की अर्थव्यवस्था के लिए धान की फसल खराब होना बहुत बड़ा झटका है।

नेपाल के गृह मंत्री शेर बहादुर देउबा ने बताया कि धान देश के राष्ट्रीय घरेलू उत्पाद में सात फीसद का योगदान देता है और करीब आधी आबादी का यही प्रमुख आय स्रोत भी है। उन्होंने बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के मसले पर बुलाई आपात कैबिनेट बैठक में कहा कि देश के 11 जिलों में मौतें हुई हैं और लोग लापता भी हैं।

गृह मंत्रालय के अनुसार नेपाल के कुछ पुल और राजमार्ग नष्ट हो गए हैं। कुछ शहर और कुछ जिलों में हवाई अड्डे जलमग्न हैं। बाढ़ के कारण कई बस्तियां भी डूब चुकी हैं। स्थानीय प्रशासन ने कुछ लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम किया है। कई शहरों में बारिश लगातार जारी है। नेपाली एयरलाइंस के अधिकारियों के अनुसार खराब मौसम के कारण काठमांडु से आने-जाने वाली करीब सौ उड़ानों को निलंबित करना पड़ा है। 

गृह मंत्रालय के अनुसार बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए बचाव और राहत का काम जारी है। अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में भी अनवरत बारिश जारी रहने से नदियों में बाढ़ की स्थिति है और पर्वतीय स्थानों में कई जगहों पर भूस्खलन हो रहे हैं। नेपाल की अर्थव्यवस्था मुख्यत: कृषि आधारित है और यहां की दो-तिहाई जमीन पर खेती होती है। लेकिन असमय बरसात और बारिश ने फसलों को चौपट कर दिया है। मानसून प्राय: 23 सितंबर तक ही रहता है। लेकिन इस बार अक्टूबर भर जारी रही बरसात ने नेपाल की कृषि पर ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी पानी फेर दिया है।

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