कोरोना संक्रमण से स्वस्थ होने के बाद भी कमजोर हो जाती है कार्यक्षमता, साल भर बाद भी फेफड़ों पर रहता है खतरा

लैंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार कोरोना संक्रमण में फेफड़ों पर असर पड़ने यानी कोविड-19 न्यूमोनिया की स्थिति में लोगों को आमतौर पर अस्पतालों में भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है। एक तिहाई मरीजों के फेफड़ों की कार्यक्षमता में गिरावट पाई गई।

By Monika MinalEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 04:51 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 04:51 PM (IST)
कोरोना संक्रमण से स्वस्थ होने के बाद भी  कमजोर हो जाती है कार्यक्षमता, साल भर बाद भी फेफड़ों  पर रहता है खतरा
कोरोना संक्रमण से स्वस्थ होने के बाद भी कमजोर हो जाती है कार्यक्षमता

लंदन, आइएएनएस। कोरोना संक्रमण से जूझ रही दुनिया के हर कोने में इस घातक कोरोना वायरस पर अध्ययन जारी है। इस क्रम में एक नवीनतम रिसर्च में पता चला है कि शरीर से जाने के बाद भी यह अपने चिन्ह और प्रभाव छोड़ जाता है। संक्रमण से स्वस्थ हुए लोगों के फेफड़ों में एक साल बाद भी खतरा बना रहता है और तो और कार्यक्षमता में भी गिरावट आ जाती है।

कोरोना वायरस (कोविड-19) की चपेट में आने वाले लोगों के फेफड़ों पर इस घातक वायरस के पड़ने वाले प्रभाव को लेकर एक नया अध्ययन किया गया है। इसका दावा है कि अस्पताल में भर्ती होने वाले ज्यादातर कोरोना पीड़ित पूरी तरह स्वस्थ हो जा रहे हैं, लेकिन इनमें से हर तीसरे व्यक्ति के फेफड़ों को संक्रमण के सालभर बाद भी नुकसान पहुंचने का खतरा हो सकता है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह जोखिम ज्यादा पाया गया है।

लैंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, कोरोना संक्रमण में फेफड़ों पर असर पड़ने यानी कोविड-19 न्यूमोनिया की स्थिति में लोगों को आमतौर पर अस्पतालों में भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है। ब्रिटेन की साउथैंप्टन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अध्ययन से जाहिर हुआ कि कोरोना संक्रमण से उबरने के एक साल बाद भी एक तिहाई मरीजों के फेफड़ों की कार्यक्षमता में गिरावट पाई गई। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह समस्या अधिक पाई गई है। सीटी स्कैन में करीब एक चौथाई मरीजों में फेफड़ों के कुछ हिस्सों में बदलाव दिखाई दिया। करीब पांच फीसद ने सांस में तकलीफ की शिकायत की। कोरोना संक्रमित लोगों के एक समूह पर किए गए एक अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है।

साउथैंप्टन यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर मार्क जोंस ने कहा, 'कोविड-19 न्यूमोनिया से गंभीर रूप से पीडि़त ज्यादातर मरीज पूरी तरह उबरे प्रतीत हुए। हालांकि कुछ मरीजों को ठीक होने में कई महीने लग गए। जबकि महिलाओं में फेफड़ों की कार्यक्षमता में गिरावट पाई गई। पीड़ित के उबरने में आ रहे इस अंतर को समझने के लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है।' 

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