श्रीलंका के संसदीय चुनाव में महिंदा राजपक्षे की पार्टी बड़ी जीत की ओर

एसएलपीपी के संस्थापक और सबसे छोटे बासिल राजपक्षे ने बड़े भाई और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के साथ घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी बिना किसी कठिनाई के अगली सरकार बनाएगी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Thu, 06 Aug 2020 10:22 PM (IST) Updated:Fri, 07 Aug 2020 02:02 AM (IST)
श्रीलंका के संसदीय चुनाव में महिंदा राजपक्षे की पार्टी बड़ी जीत की ओर
श्रीलंका के संसदीय चुनाव में महिंदा राजपक्षे की पार्टी बड़ी जीत की ओर

कोलंबो, प्रेट्र। श्रीलंका में संसदीय चुनाव के तहत हो रही मतगणना के रुझान से लग रहा है कि राजपक्षे परिवार की श्रीलंका पीपुल्स पार्टी (एसएलपीपी) भारी जीत की ओर बढ़ रही है। अभी तक घोषित 16 सीटों के चुनाव परिणामों में से एसएलपीपी ने 13 जीत ली हैं और उन पर उसे 60 प्रतिशत से ज्यादा मत प्राप्त हुए हैं। फिलहाल दक्षिण की सीटों के परिणाम आए हैं, जहां सिंहली आबादी ज्यादा है। गाले जिले की नौ संसदीय सीटों में से सात सीटें एसएलपीपी ने जीती हैं जबकि पड़ोसी मातरा जिले में उसे सात में से छह सीटें मिली हैं। एसएलपीपी के मुकाबले में दूसरे नंबर पर संजीत प्रेमदासा की नवगठित पार्टी है। उसे तीन सीटें मिली हैं। 

संजीत पूर्व में राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ चुके हैं। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) से अलग होकर नई पार्टी बनाई है। अभी तक की मतगणना के लिहाज से यूएनपी चौथे स्थान पर है जबकि जनता विमुक्ति पेरामुना (मा‌र्क्सवादी) तीसरे स्थान पर है। अन्य जिलों में भी मतगणना जारी है, वहां पर भी एसएलपीपी प्रभावी बढ़त बनाए हुए है। तमिल बहुल उत्तर के इलाके में एसएलपीपी को तमिल नेशनल एलायंस से चुनौती मिल रही है। यहां पर एसएलपीपी ने तमिलों की ईलम पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से गठजोड़ कर रखा है। 

बुधवार को हुए मतदान के बाद गुरुवार प्रात: से मतगणना शुरू हुई। मतगणना के शुरुआती रुझान आने के साथ ही एसएलपीपी के संस्थापक और सबसे छोटे बासिल राजपक्षे ने बड़े भाई और निवर्तमान प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के साथ घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी बिना किसी कठिनाई के अगली सरकार बनाएगी। दोनों के बीच के भाई गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं।

पार्टी और राष्ट्रपति को उम्मीद है कि 225 सदस्यों वाली संसद में उसे दो तिहाई बहुमत हासिल हो जाएगा। इससे वह संविधान में संशोधन करते हुए राष्ट्रपति पद की शक्तियों को बहाल कर सकेंगे। 2015 में संविधान में संशोधन करते हुए राष्ट्रपति के अधिकारों में कटौती की गयी थी। 

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