Nobel Prize 2019: जानिए कैसे अभिजीत, एस्थर और क्रेमर ने गरीबी से लड़ने की दिशा में निभाई अहम भूमिका

भारतीय मूल के अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी एस्थर डुफ्लो को इस साल अर्थशास्त्र के नोबेल के लिए चुना गया। उनके साथ अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर भी विजेता चुने गए हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Mon, 14 Oct 2019 10:10 PM (IST) Updated:Tue, 15 Oct 2019 12:11 AM (IST)
Nobel Prize 2019: जानिए कैसे अभिजीत, एस्थर और क्रेमर ने गरीबी से लड़ने की दिशा में निभाई अहम भूमिका
Nobel Prize 2019: जानिए कैसे अभिजीत, एस्थर और क्रेमर ने गरीबी से लड़ने की दिशा में निभाई अहम भूमिका

 स्टॉकहोम, प्रेट्र। जिस आदमी के पास पेट भरने को भोजन नहीं है, वह टीवी क्यों खरीदेगा? क्या ज्यादा बच्चे होना आपको ज्यादा गरीब बना देता है? अर्थव्यवस्था से जुड़े ऐसे ही कई जमीनी सवाल उठाने वाले और दो दशक से वैश्विक स्तर पर गरीबी से लड़ने की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाने वाले भारतीय मूल के अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और उनकी फ्रांसीसी पत्नी एस्थर डुफ्लो को इस साल अर्थशास्त्र के नोबेल के लिए चुना गया है। उनके साथ अमेरिकी अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर भी विजेता चुने गए हैं। अर्थशास्त्र के नोबेल विजेताओं के एलान के साथ इस साल के नोबेल विजेताओं के नामों के एलान का क्रम भी पूरा हो गया। विजेताओं को 10 दिसंबर को पुरस्कार दिए जाएंगे। पीएम नरेंद्र मोदी ने बधाई देते हुए कहा कि अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबेल जीतने पर बधाई। उन्होंने गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। मैं एस्थर डुफ्लो और माइकल क्रेमर को भी नोबेल जीतने की बधाई देता हूं।

 जानिए रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने क्‍या कहा

नोबेल पुरस्कारों की जिम्मेदारी संभालने वाली रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने कहा, 'इस साल अर्थशास्त्र के नोबेल विजेताओं ने जो शोध किया है, उससे वैश्विक गरीबी से निपटने की हमारी क्षमता उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। मात्र दो दशक में उनके प्रयोग आधारित नए तरीके ने विकास की अर्थव्यवस्था में आमूलचल बदलाव किया है, जो आज व्यापक शोध का विषय है।' उन्होंने वैश्विक गरीबी के खिलाफ भरोसेमंद जवाब खोजने का नया तरीका दिया है। उनकी खोज ने और इन पर काम करने वाले अन्य अर्थशास्‍त्रियों ने गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता को निखारा है। उन्होंने मुद्दे को छोटे और ज्यादा आसानी से समझे जा सकने वाले सवालों में बांटा है। आज भी 70 करोड़ से ज्यादा आबादी बहुत कम आय में गुजारा करती है। हर साल 50 लाख से ज्यादा बच्चे पांच साल की उम्र से पहले जान गंवा देते हैं। इनमें से ज्यादातर की जान ऐसी बीमारियों से जाती है, जिनसे अपेक्षाकृत कम खर्च वाले और साधारण इलाज से निपटा जा सकता है।

तीनों कहा हैं कार्यरत

58 वर्षीय बनर्जी की शिक्षा यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से हुई है। वह फिलहाल एमआइटी में फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनल प्रोफेसर ऑफ इकोनॉमिक्स के तौर पर जुड़े हैं। 1972 में जन्मी डुफ्लो एमआइटी के इकोनॉमिक्स विभाग में में अब्दुल लतीफ जमील प्रोफेसर ऑफ पॉवर्टी एलीविएशन एंड डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स के रूप में जुड़ी हैं। 54 वर्षीय क्रेमर एक डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट हैं और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में गेट्स प्रोफेसर ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज के तौर पर कार्यरत हैं। पुरस्कार के तौर पर मिलने वाली 90 लाख स्वीडिश क्रोनर (करीब 6.46 करोड़ रुपये) की राशि को तीनों विजेताओं में बराबर बांटा जाएगा।

शोध का भारत में दिखा है असर

एकेडमी ने उदाहरण देते हुए कहा कि उनके अध्ययन का सीधा नतीजा भारत में देखा जा सकता है, जहां स्कूलों में रेमेडियल ट्यूटरिंग के सफल कार्यक्रम के जरिये 50 लाख से ज्यादा बच्चों को फायदा मिला है। इसके तहत स्कूलों में कमजोर बच्चों की पहचान करते हुए उनकी खामी का पता लगाया जाता है और विशेषतौर पर उसे निखारने पर मेहनत की जाती है। कई देशों में प्रीवेंटिव हेल्थकेयर पर दी जा रही भारी-भरकम सब्सिडी भी इसका उदाहरण है।

अर्थशास्त्र का नोबेल जीतने वाली दूसरी महिला हैं डुफ्लो

डुफ्लो अर्थशास्त्र का नोबेल जीतने वाली दूसरी महिला और सबसे कम उम्र की अर्थशास्त्री हैं। उनसे पहले 2009 में अमेरिका की एलिनोर ऑस्ट्रोम को अर्थशास्त्र का नोबेल मिला है। पुरस्कार की घोषणा के बाद डुफ्लो ने कहा, 'यह दिखाता है कि एक महिला के लिए सफल होना और उसकी सफलता को सम्मान मिलना संभव है। मुझे उम्मीद है कि इससे कई महिलाएं अपना काम जारी रखने के लिए प्रेरित होंगी और पुरुष उन्हें उचित सम्मान देंगे।'

'पुअर इकोनॉमिक्स' ने बजाया है डंका

बनर्जी और डुफ्लो की किताब 'पुअर इकोनॉमिक्स : ए रेडिकल रीथिंकिंग ऑफ द वे टू फाइट ग्लोबल पॉवर्टी' ने दुनियाभर में डंका बजाया है। इस किताब को 2011 में फाइनेंशियल टाइम्स एंड गोल्डमैन सैक्श बिजनेस बुक ऑफ द ईयर पुरस्कार मिल चुका है। इसका 17 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हुआ है। इसमें अभिजीत लिखते हैं : मोरक्को में जिस आदमी के पास पर्याप्त भोजन नहीं है, वह टेलीविजन क्यों खरीदेगा? गरीबी वाले क्षेत्रों में स्कूल पहुंचने के बाद भी बच्चों के लिए पढ़ाई मुश्किल क्यों है? क्या बहुत ज्यादा बच्चे होना आपको ज्यादा गरीब बना देता है? अगर हम वैश्विक गरीबी के खिलाफ लड़ना चाहते हैं तो इन सवालों के जवाब मिलना जरूरी है।

'न्याय' योजना के रहे सूत्रधार

लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी की तरफ से पेश की गई 'न्याय' के मुख्य परामर्शदाता अभिजीत बनर्जी की थे। कांग्रेस ने नोबेल विजेता की बधाई देते हुए 'न्याय' योजना में उनकी भूमिका जिक्र किया। इस योजना के तहत कांग्रेस ने देश के गरीबों को सालाना 72,000 रुपये देने का वादा किया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व राहुल गांधी ने भी अभिजीत को बधाई दी।

इस हफ्ते आएगी नई किताब

अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो की नई किताब 'गुड इकोनॉमिक्स फॉर हार्ड टाइम्स - बेटर आंसर्स टू अवर बिगेस्ट प्रॉब्लम्स' 19 अक्टूबर को बाजार में आएगी। प्रकाशक जगरनॉट बुक्स ने सोमवार को यह एलान किया। प्रकाशक ने बताया, 'क्या प्रवासी लोग गरीब स्थानीय लोगों का रोजगार छीन लेते हैं? क्या अंतरराष्ट्रीय कारोबार असमानता बढ़ाता है, जो इस समय चिंताजनक तरीके से बढ़ रही है? विकास और जलवायु परिवर्तन के बीच कैसे संतुलन बनाया जाए? क्या पश्चिम में विकास का क्रम पूरा हो गया है? किताब में इसी तरह के कई प्रश्नों के उत्तर देने की कोशिश की गई है।'

भारतीयों की बढ़ती धमक

अभिजीत बनर्जी को अर्थशास्त्र का नोबेल मिलने के साथ वैश्विक स्तर पर अर्थशास्त्र की दुनिया में भारतीय चेहरों की धमक और बढ़ गई है। इनसे पहले कई भारतीय नाम अपनी मेधा का लोहा मनवा चुके हैं। बात चाहे नोबेल विजेता अम‌र्त्य सेन की हो या व‌र्ल्ड बैंक ग्रुप की चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर व मैनेजिंग डायरेक्टर अंशुला कांत की, दुनिया में डंका बजाने वाली ऐसी भारतीय हस्तियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। रघुराम राजन, विरल आचार्य, अरविंद पानगडि़या और आइएमएफ की चीफ इकोनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ का नाम इनमें प्रमुखता से रखा जा सकता है।

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