दक्षिण एशिया में पैर जमाने की कोशिश में IS, पाकिस्तान दे रहा संरक्षण, अफगानिस्तान को ज्यादा खतरा

दक्षिण एशिया में पैर जमाने के लिए आइएसआइएस को तालिबान से अलग हुए कमांडर दे रहे हैं ताकत। पाकिस्तान भी दे रहा है हर तरह का संरक्षण। अब वेबिनार में विशेषज्ञों ने अफगानिस्तान की स्थिति को चिंताजनक माना।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2020 08:17 AM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2020 08:17 AM (IST)
दक्षिण एशिया में पैर जमाने की कोशिश में IS, पाकिस्तान दे रहा संरक्षण, अफगानिस्तान को ज्यादा खतरा
दक्षिण एशिया में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाह रहा IS। फोटो- एएफपी

जिनेवा, एएनआइ। सीरिया और इराक से पांव उखड़ने के बाद आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आइएस) अब दक्षिण एशिया में पैर जमाने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए उसे पाकिस्तान का पूरा संरक्षण मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 45 वें सत्र से इतर आयोजित वेबिनार में यह बात विशेषज्ञों की राय से पुख्ता हुई। दक्षिण एशिया में आइएस का उभार विषय पर इस वेबिनार का आयोजन यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज ने किया था।

वेबिनार में विशेषज्ञों ने अफगानिस्तान की स्थिति को चिंताजनक माना। कहा कि वहां पर तालिबान से अलग हुए कुछ कमांडर आइएस से जुड़ गए हैं और वे उसके लिए लड़ाकों की भर्ती कर रहे हैं। उन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ का परोक्ष समर्थन भी मिल रहा है। आइएसआइ आइएस के जरिये अफगानिस्तान में रह रहे सिखों और हिंदुओं पर हमले करा रही है। जो काम तालिबान उतना खुलकर नहीं कर पाया, पाकिस्तान के इशारे पर वह काम आइएस कर रहा है। आइएस की खोरासान प्रांतीय इकाई में ज्यादातर पाकिस्तान में पैदा हुए लड़ाके हैं। ये आतंकी पाकिस्तान की अफगानिस्तान से लगने वाली सीमा के गांवों-कस्बों के हैं, जहां पर बहुत ज्यादा गरीबी और अशिक्षा है।

वेबिनार में राजनीतिक और सैन्य मामलों के स्वतंत्र शोधकर्ता टिमोथी फॉक्सले ने कहा, आइएस खोरासान प्रांतीय इकाई अमेरिका और तालिबान की शांति वार्ता में खलल डालेगी और अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के हालात भी बिगाडे़गी। फॉक्सले का अनुमान है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान में इस समय करीब दो हजार आइएस के लड़ाके हैं और इनकी संख्या बढ़ रही है। इनमें 70 फीसद पाकिस्तानी हैं, बाकी अफगान और थोड़े से अन्य देशों के। वेबिनार में संस्था के शोधकर्ता डॉ. पॉल स्टॉट ने कहा, वह आइएस, ब्रिटेन और दक्षिण एशिया के बीच जिहादियों का त्रिकोण बनता देख रहे हैं। आइएस का उद्देश्य दुनिया भर के सुन्नी मुस्लिमों को खुद से जोड़ना है। वह उनके भीतर असुरक्षा और अन्याय की भावना भरना चाहता है जिससे बेचैन होकर वे आतंकी संगठन से जुड़ें। स्टॉट का अनुमान है कि 800 से 1000 ब्रिटिश नागरिक आइएस से जुड़े हुए हैं। पाकिस्तान अपने हितों के लिए तालिबान और आइएस का एक साथ इस्तेमाल कर रहा है। वह एक-दूसरे पर दबाव बनाने के लिए उनके इस्तेमाल की रणनीति पर चल रहा है।

chat bot
आपका साथी