Taliban in Afghanistan: अफगानिस्तान में बढ़ता तालिबान का प्रभाव, जानें-कौन हैं ये लड़ाकू और चाहते क्या हैं
नब्बे के दशक की शुरुआत में जब सोवियत संघ अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था उसी दौर में तालिबान अस्तित्व में आया। पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है। पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा और इसके लिए सऊदी अरब ने फंडिंग की।
काबुल, एजेंसी। अफगानिस्तान में तनाव बढ़ता जा रहा है। अफगान सुरक्षा बलों की कोशिश के बाद भी तालिबान की ताकत बढ़ रही है। पिछले 24 घंटे में कंधार के महत्वपूर्ण जिले पंजवेई पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। आतंकियों की साफ मंशा है कि किसी भी कीमत पर पूरे मुल्क को अपने कब्जे में ले लिया जाए। तालिबान ने जून माह में ही अफगान सुरक्षा बलों से करीब सात सौ ट्रक और बख्तरबंद वाहनों को छीनकर अपने कब्जे में ले लिया है। इनमें काफी संख्या में टैंक भी हैं। ऐसे सवाल यह उठता है कि आखिर कौन हैं तालिबान और ये क्या चाहते हैं? अमेरिका की अफगानिस्तान में क्या है दिलचस्पी? आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पूर्व में तालिबानी हुकूमत को किन तीन देशों ने मान्यता भी दे दी थी, जिनमें पाकिस्तान भी एक था।
US नेतृत्व वाली सेना ने तालिबान को 2001 में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया
अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना ने तालिबान को वर्ष 2001 में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था। हालांकि, धीरे-धीरे ये समूह खुद को काफी मजबूत करता गया और अब एक बार फिर से अफगानिस्तान के बड़े हिस्से में दबदबा देखने को मिल रहा है। बता दें कि करीब दो दशक बाद अमेरिका 11 सितंबर, 2021 तक अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को हटाने की तैयारी कर रहा है। वहीं, तालिबानी लड़ाकों का नियंत्रण क्षेत्र बढ़ता जा रहा है। आशंका यह भी उभरने लगी है कि वे सरकार को अस्थिर कर सकते हैं।
ऐसे हुई थी तालिबान की शुरुआत
नब्बे के दशक में जब सोवियत संघ अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, उसी दौर में तालिबान अस्तित्व में आया। दरअसल, पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है। पश्तो आंदोलन पहले धार्मिक मदरसों में उभरा और इसके लिए सऊदी अरब ने फंडिंग की। इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था। जल्दी ही तालिबानी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच फैले पश्तून इलाके में शांति और सुरक्षा की स्थापना के साथ-साथ शरिया कानून के कट्टरपंथी संस्करण को लागू करने का वादा करने लगे थे। इसी दौरान दक्षिण पश्चिम अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव तेजी से बढ़ा। सितंबर, 1995 में उन्होंने ईरान की सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्जा किया। इसके ठीक एक साल बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा जमाया।
शुरुआत में काफी लोकप्रिय हुए तालिबान
तालिबान हुकूमत को तीन देशों ने थी मान्यता
अफगानिस्तान पर जब तालिबान की हुकूमत थी, तब पाकिस्तान दुनिया के उन तीन देशों में शामिल था, जिसने तालिबान सरकार को मान्यता दी थी। पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने भी तालिबान सरकार को स्वीकार किया था। भारत ने तालिबान हुकूमत को मान्यता नहीं दी थी।